
सीबीआई को इस मामले की जांच दो महीने एक हफ्ते बाद मिली है. इस दौरान एक लंबा अरसा गुजर गया. ऐसे में ये जरूरी नहीं कि सीबीआई को तमाम सबूत मिले. खासकर उस कमरे से, जहां सुशांत की लाश मिली थी. उस कमरे को मुंबई पुलिस ने 14 और 15 जून को सील तो किया था. लेकिन 16 जून को वो कमरा खोल भी दिया गया था. अब उसी कमरे में सीबीआई को क्राइम सीन क्रिएट करना है. अब उस कमरे से क्या अहम सबूत मिलेंगे, ये सीबीआई की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा.
सीबीआई के सामने सुशांत की मौत का मायाजाल सुलझाने के रास्ते में एक नहीं कई चुनौतियां हैं. जिसने वो एक-एक कर निपटना चाहती है. जांच के दौरान जिस चुनौती से सीबीआई का सबसे पहला वास्ता पड़ने जा रहा है, वो है सुशांत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट. जाहिर है सुशांत का दोबारा पोस्टमार्टम मुमकिन नहीं. इसलिए जांच टीम को उसी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस गुत्थी को सुलझाना होगा कि सुशांत की मौत खुदकुशी है या फिर कत्ल?
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पोस्टमार्टम का 'पंचनामा'
जाहिर है अगर सुशांत की मौत खुदकुशी है तो इस केस का रुख कुछ और होगा. लेकिन अगर इसमें जरा भी शक की गुंजाइश है. तो सीबीआई को पहला सुराग और सबूत इसी रिपोर्ट से मिलेगा. हालांकि सुशांत के घरवालों के वकील ही इस पोस्टमार्टम रिपोर्ट में झोल बता रहे हैं. वकील विकास सिंह की मानें तो मुंबई पुलिस की इस पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सुशांत की मौत का वक्त ही दर्ज नहीं है. और तो और इस रिपोर्ट में उस जूस का भी जिक्र नहीं है, जो मरने से पहले सुशांत ने पीया था. जाहिर है इतनी अहम चीज वो भी इतने हाईप्रोफाइल एक्टर की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से नदारद होना, शक तो पैदा करता ही है.
'लावारिस' सीन ऑफ क्राइम
मामला हत्या का हो या आत्महत्या का, सीन ऑफ क्राइम वो अहम कड़ी है जो नुक्ते को नुक्ते से मिलाती है. आसान लफ्जों में यही सीन ऑफ क्राइम मामले को सुलझाने में मदद करता है. मगर सुशांत जैसे हाईप्रोफाइल केस में मुंबई पुलिस ने जो लापरवाही दिखाई वो यकीन समझ से बाहर है. 14 जून को खबर आई कि सुशांत ने खुदकुशी कर ली. 14 और 15 की छानबीन के बाद 16 जून से ही मुंबई पुलिस ने सुशांत के कमरे को सील करने के बजाए खुला छोड़ दिया था. जिसमें ना सिर्फ पुलिसवाले, बल्कि सुशांत के घरवाले, उसके दोस्त वगैहर भी आते जाते रहे. ऐसे में इस सीन ऑफ क्राइम में सीबीआई को एविडेंस के तौर पर कुछ मिलना तो मुश्किल है. हां, ये जरूर है कि सीबीआई चश्मदीदों के बयान के आधार पर इस कमरे में क्राइम सीन को रिक्रिएट कर सकती है.
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14 जून की मिस्ट्री!
सीबीआई की जांच में ये तारीख सबसे अहम है. सुशांत जिस फंदे से लटके मिले वो फंदा, सुशांत ने जो कपड़े पहने थे वो कपड़े, कमरे में उस वक्त मौजूद बेडशीट और कंबल, सुशांत का वो गिलास जिसमें उन्हें आखिरी बार जूस दिया गया, और इनके साथ-साथ वो तमाम चीजें जो आखिरी वक्त में उनके साथ थीं. हालांकि बकौल मुंबई पुलिस उसने इन तमाम चीजों की फोरेंसिक जांच करा ली है. मगर चूंकि सुशांत के घरवालों को मुंबई पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं और सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला उससे लेकर सीबीआई को सौंपा है, लिहाजा इन तमाम चीजों की जांच दोबारा की जाएगी. मगर अब सुशांत की मौत के 2 महीने बाद सीबीआई के हाथ क्या लगेगा. ये देखने वाली बात है.
सुशांत के छोड़े गए 'डिजिटल सबूत'
जब सुशांत की मौत हुई, तब मुंबई समेत पूरे देश में कोरोना की वजह से लॉकडाउन था. खुद सुशांत भी पिछले करीब दो महीने से घर पर ही थे. फिल्मों की या विज्ञापनों की शूटिंग हो नहीं रही थी. यानी सुशांत के सबसे करीब जो चीज़ें थीं, वो थीं सुशांत का मोबाइल, लैपटाप और डायरी. कहने को तो मुंबई पुलिस इन तमाम चीज़ों की जांच कर चुकी है और उसे इसमें कोई फाउल प्ले नजर नहीं आया. मगर फिर भी सीबीआई के लिए इन डिजिटल सबूतों को दोबारा खंगालना जरूरी है. इसी फोरेंसिक जांच से ये भी साफ हो जाएगा कि सुसाइड के दो महीने बीत जाने के बाद इन तमाम चीजों के साथ कोई छेड़छाड़ की गई या नहीं. अगर की गई, तो किसने की और क्यों. कुल मिलाकर इन आधे अधूरे सबूतों और गवाहों को कड़ियों को जोड़ कर मामले की तह तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं है.