
कानपुर मुठभेड़ में 8 पुलिसकर्मियों की मौत का जिम्मेदार कुख्यात अपराधी विकास दुबे जुर्म की दुनिया का पुराना खिलाड़ी है. यही वजह है कि उसके खिलाफ दर्जनों संगीन मामले चल रहे हैं. हत्या और हत्या की कोशिश के कई केस इसमें शामिल हैं. विकास दुबे का नाम उस वक्त चर्चाओं में आया था. जब उस पर एक पुलिस स्टेशन में घुसकर यूपी के दर्जा प्राप्त मंत्री की हत्या करने का इल्जाम लगा था.
बात वर्ष 2001 की है. तब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे. राजनाथ सिंह ने उस वक्त बीजेपी नेता संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बनाया था. संतोष शुक्ला को श्रम संविदा बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया गया था. उनकी इस उपलब्धि पर इलाके में खासा उत्साह था.
अब थोड़ा और पीछे चलते हैं. वो साल 1996 था. यूपी में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. कानुपर की चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और संतोष शुक्ला चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में हरिकृष्ण श्रीवास्तव को जीत हासिल हुई थी. इसी दौरान हरिकृष्ण का विजय जुलूस निकाला जा रहा था. इसी बात को लेकर हरिकृष्ण और संतोष के बीच विवाद हो गया था.
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इस मामले में विकास दुबे का नाम भी आया था. पुलिस ने उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया था. बस यहीं से विकास दुबे की भाजपा नेता संतोष शुक्ला से दुश्मनी शुरू हो गई थी. विकास बदले की आग में जल रहा था. वो संतोष को सबक सिखाना चाहता था. वो कई साल इंतजार करता रहा. और उसे बदला लेने का मौका साल 2001 में मिला.
संतोष शुक्ला को राज्यमंत्री का दर्जा हासिल था. वो पार्टी के लोगों का कोई काम कराने के मकसद से 11 नवंबर 2001 को कानपुर के थाना शिवली में मौजूद थे. आरोप है कि जैसे ही वे थानेदार के कमरे से बाहर निकले, वहां विकास दुबे हथियार के साथ मौजूद था. उसने वहीं संतोष शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी थी. हत्या के आरोपी विकास दुबे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
उसके खिलाफ हत्या का मुकदमा अदालत में विचाराधीन था. इस दौरान लगातार विकास दुबे वादी और गवाहों को धमाकाता रहा. कोर्ट में काफी लंबा ट्रायल चला. लेकिन सबूतों और गवाहों की कमी के चलते विकास दुबे पर इल्जाम सिद्ध नहीं हो सका और अदालत ने उसे हत्या के इस मामले में बरी कर दिया. यही वो वक्त था, जब संतोष शुक्ला की हत्या करने के बाद विकास का नाम सुर्खियों में आया. लोग उसके नाम से घबराने लगे थे.
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बताते चलें कि संतोष शुक्ला की हत्या के मामले में तो विकास बच गया लेकिन उसके खिलाफ अभी भी 60 केस दर्ज हैं. साल 2000 में विकास दुबे पर कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या का आरोप लगा था. इसके अलावा साल 2000 में ही उस पर कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में रामबाबू यादव की हत्या मामले में जेल के भीतर रहकर साजिश रचने का आरोप लगा था.
साल 2004 में केबल व्यवसायी दिनेश दुबे हत्या मामले में भी विकास पर आरोप है. वहीं 2018 में अपने ही चचेरे भाई अनुराग पर विकास दुबे ने जानलेवा हमला करवाया था. इस दौरान भी विकास जेल में बंद था और वहीं से सारी साजिश रची थी. इस मामले में अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों को नामजद किया था.
बताया जाता है कि सभी राजनीतिक दलों में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की पकड़ है. साल 2002 में मायावती के मुख्यमंत्री रहते हुए विकास दुबे ने कई जमीनों पर अवैध कब्जे किए. गैर कानूनी तरीके से काफी सारी संपत्ति बनाई. इस दौरान बिल्हौर, शिवराजपुर, रिनयां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में विकास दुबे का खासा दबदबा था. विकास दुबे ने जेल में रहते हुए शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव भी जीता था.