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..जब भारतीयों की तलाश में ढह गए बगदादी के किलों के बीच पहुंचा आजतक

मोसुल से वो ख़बर आ चुकी है, जिसे सुनकर हर भारतीय का दिल दहल उठा. जिसे हम सुनना नहीं चाहते थे. मगर सच यही है कि मोसुल में फंसे 39 भारतीय अब इस दुनिया में नहीं हैं. आजतक के वरिष्ठ संवाददाता शम्स ताहिर खान और गौरव सावंत जब जमीनी हकीकत को सबके सामने लाने के लिए जान पर खेलकर आईएसआईएस के गढ़ मोसुल और बगदाद में पहुंचे थे. उनके जेहन में कई सवाल थे. उन्हें केवल 39 भारतीयों को ही तलाश नहीं थी, बल्कि वे आतंक के आका बगदादी का पता भी ढूंढ रहे थे. खुद शम्स ताहिर खान इस लेख में बता रहे हैं, उनकी जोखिमभरी मोसुल यात्रा के अनुभव.

मोसुल के पास कई ऐसे मौके भी आए जब आजतक की टीम ने जान पर खेलकर रिपोर्टिंग की मोसुल के पास कई ऐसे मौके भी आए जब आजतक की टीम ने जान पर खेलकर रिपोर्टिंग की
परवेज़ सागर/शम्स ताहिर खान
  • मोसुल,
  • 20 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 1:08 PM IST

मोसुल से वो ख़बर आ चुकी है, जिसे सुनकर हर भारतीय का दिल दहल उठा. जिसे हम सुनना नहीं चाहते थे. मगर सच यही है कि मोसुल में फंसे 39 भारतीय अब इस दुनिया में नहीं हैं. आजतक के वरिष्ठ संवाददाता शम्स ताहिर खान और गौरव सावंत जब जमीनी हकीकत को सबके सामने लाने के लिए जान पर खेलकर आईएसआईएस के गढ़ मोसुल और बगदाद में पहुंचे थे. उनके जेहन में कई सवाल थे. उन्हें केवल 39 भारतीयों को ही तलाश नहीं थी, बल्कि वे आतंक के आका बगदादी का पता भी ढूंढ रहे थे. खुद शम्स ताहिर खान इस लेख में बता रहे हैं, उनकी जोखिमभरी मोसुल यात्रा के अनुभव.

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कहां है बगदादी?

इराक पहुंचने के बाद पहला सवाल यही ज़ेहन में कौंधा. आखिर कहां हैं लापता 39 भारतीय? बगदादी कहां है? कहां हो सकता है? कहां मिल सकता है? वो है भी या नहीं? फिर अचानक एक ख्याल सवाल बन कर सामने आया कि क्या ये मुमकिन है कि बग़दादी से हमारा आमना-सामना हो जाए? हम उस शख्स का इंटरव्य़ू कर सकें जो पूरी दुनिया के लिए छलावा बना हुआ है. हम उसी से ये जान सकें कि आखिर काट कार, जला कर, डुबो कर और बारूद से उड़ा कर जान लेना कैसा जेहाद है?

बगदादी को तलाश करने का मकसद

सच तो ये है कि ये ख्याल आया जरूर पर साथ ही ये डर भी उसी पल डरा गया कि बगदादी से आमने-सामने होने का मतलब ही मौत है. वैसे भी विदेशी मीडिया उसका सबसे बड़ा निशाना और खास शिकार है. क्योंकि उन्हें मार कर उसे सबसे ज्यादा सुर्खियां मिलती हैं. बगदादी के वहशीपन का पहला वीडियो ही एक जर्नलिस्ट का सिर कलम करने का था. उसी के बाद बगदादी का वहशीपन और मारने से पहले नारंगी रंग का कपड़ा पहनाने का उसका चलन पूरी दुनिया ने जाना. पर फिर सोचा कि क्या पता हजारों लोगों को मारने के बाद बगदादी अब बदल चुका हो. दुनिया तक अपनी बात पहुंचाने के लिए हमसे मिल ले. हमसे बात कर ले और फिर हमें जाने दे.

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पहचान छुपाकर रखने की नसीहत

मगर बगदाद पहुंचने के 24 घंटे के अंदर-अंदर हमारी इस सोच का खुद हमने ही गला घोंट दिय़ा. क्या करते? बगदादी तो दूर हमें तो हर कोई वहां जाने से रोक रहा था, जहां कभी बगदादी के पांव भी पड़े थे. हमारी भलाई चाहने वाले तमाम लोग बगदाद से लेकर मोसुल तक हमें हमारा कैमरा, माइक, हमारी पहचान, सब छुपा कर रखने की नसीहत दे रहे थे. ताकि बगदादी के किसी गुर्गे या शहर में भेष बदल कर छुपे उसके स्लीपर सेल की नजर हम पर ना पड़ जाए. और उन्हें ये खबर ना लग जाए कि हम हिंदी सहाफी यानी भारतीय जर्नलिस्ट हैं.

कैमरे का डर

खैर बगदादी ना सही. मगर उसकी खबर तो ढूंढनी ही थी. पर दिक्कत ये थी कि पूरे इराक में आम इराकी, पुलिस, सेना सब आपसे बहुत प्यार से बात करेंगे. मगर जैसे ही आप कैमरा निकालते हैं या माइक उनकी तरफ बढ़ाते हैं तो सभी गूंगे बन जाते हैं. हमें बाद में पता चला कि सद्दाम के दौर से शक का जो माहौल इस देश में बना है. उसका खौफ आज भी है. उन्हें लगता है कि पता नहीं कैमरे पर कुछ बोल दिय़ा तो उनके साथ कौन सी सरकारी एजेंसी क्या कर बैठे?

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एक सुर में सबने कहा- मर चुका है बगदादी

फिर भी हमें जहां जैसा मौका मिलता और जरा सी भी उम्मीद लगती उसी से बगदादी का सच जानने की कोशिश शुरू कर देते. पर हर बार ये कोशिश एक ही अंजाम पर जाकर खत्म हो जाती. बगदागी मर चुका है. जी हां, हमने आम इराकी, इराकी इंटेलिजेंस, इराकी स्पेशल फोर्सेज, इराकी सेना और यहां तक कि इराकी पुलिस से भी अलग-अलग तरीके से बात की. पूछताछ की. पर हरेक ने हमें पूरे यकीन से एक ही जवाब दिया कि बगदादी अब जिंदा नहीं है. वो मर चुका है. पर बगदादी कैसे मरा. कहां मरा. कब मरा. किसने उसे मारा? हमें ये भी जानना था. क्योंकि इससे पहले भी हम लोग 6 बार बगदादी की मौत के बारे में सुन चुके थे. लिहाजा हमने जब गहराई में जाकर उन्हें टटोला तो उनका कहना था कि बगदादी को रूसी बम ने मारा है और वो भी इसी साल.

बगदादी की मौत का दावा

आम इराकियों को इस बात का यकीन है कि इसी साल 11 जून को सीरिया के रक्का शहर में हुए बमबारी में बगदादी मारा जा चुका है. उनका कहना था कि रक्का शहर में सीरिया और रूसी सेना की सफेद फॉसफोरस बॉम्बिंग में अबू बकर अल बगदादी पहले घायल हुआ और फिर उसकी मौत हो गई. इराकी लोकल मीडिया ने भी जून में ये खबर दिखाई थी कि रक्का शहर के जिस इलाके को निशाना बनाया गया वहां न सिर्फ आईएसआईएस के हथियारों का ज़खीरा था बल्कि खुद उसका सरगना अबू बकर अल बग़दादी भी तब वहीं मौजूद था.

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बगदादी को अभी भी तलाश कर रहा है अमेरिका

मगर बगदादी की मौत का दावा करने वालों के उलट हमें कुछ लोग ऐसे भी मिले जिनका कहना था कि बगदादी अब भी जिंदा है. पर घायल है. अब सवाल ये था कि अगर बगदादी जिंदा है तो कहां छुपा हो सकता है? क्या अब भी इराक में है या फिर सीरिया के किसी इलाके में? आपको बता दें कि बगदादी की मौत के रूसी दावे पर अमेरिका ने भी अभी तक मुहर नहीं लगाई है. अमेरिका का कहना है कि उसके पास बगदादी की मौत के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं. इसीलिए दस मीलियन डॉलर के इनामी बगदादी की तलाश अमेरिका अभी भी कर रहा है.

अल-बाज में छुपा हो सकता है बगदादी!

अमेरिकी इंटेलिजेंस सूत्रों का कहना है कि आईएसआईएस का चीफ अबू बकर अल बगदादी इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल से करीब दो सौ किलोमीटर पश्चिम में अल-बाज नाम की जगह पर छुपा हो सकता है. ये जगह बेहद कम आबादी वाली और अलग-थलग है. साथ ही आईएसआईएस के असर वाली भी. अल बाज के अलावा सुरक्षा एजेंसियां रक्का की कुछ खास बिल्डिंग्स पर भी नजरें गड़ाए हैं. शक है बगदादी यहां भी हो सकता है.

ढह गए बगदादी के किले

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वैसे बगदादी अगर सचमुच जिंदा है तो भी उसके छुपने की जगह अब लगातार सिकुड़ती जा रही है. क्योंकि उसके जीते हुए एक-एक किले लगातार ढहते जा रहे हैं. फलूजा, रमादी, समारा, तिकरीत, बैजी, सादिया, जलावला, मोसुल, तल-अफ़र, अबू कमाल, हवीज़ा और अनाह को इराकी फौज वापस जीत चुकी है. ये इराक के वो छोटे-बड़े शहर हैं, जहां पर आईएसआईएस का पूरी तरह खात्मा हो चुका है.

आईएसआईएस के कई नेता फरार

अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में इराकी फोर्सेज ने हवीजा से भी आईएस को उखाड़ फेंका है. दो हफ्ते तक चले जबरदस्त संघर्ष के दौरान इराकी स्पेशल फोर्सेज ने हवीजा से सैकड़ों आतंकियों को मार भगाया. अब हवीजा पर भी पूरी तरह से इराकी सेना का कब्जा है. खबर है कि हवीजा हारने के बाद आईएसआईएस के कई बड़े नेता दूसरी जगह भाग गए हैं या फिर सरेंडर कर दिया है.

रवा और कईम शहर को मुक्त कराने की तैयारी

इराक के एक-एक इलाके से खदेड़े जाने और आईएस के बड़े नेताओं और कमांडर के भाग जाने के बाद बचे हुए आतंकियों में जबरदस्त घबराहट है. लड़ने के लिए उनके पास हथियारों की कमी के साथ पैसों की कमी भी हो गई है. जिसकी वजह से बचे हुए आतंकी जान बचाने के लिए सरेंडर कर रहे हैं. कुल मिला कर अब इराक में दो ही ऐसे शहर बचे हैं, जो आईएस के कब्जे में हैं. एक रवा और दूसरा क़ईम. इन इलाकों की तरफ भी अब इराकी सेना कूच कर रही है और यहां से भी जल्दी ही आईएस के सफाए की खबर सामने आ सकती है.

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