
साल 2018 अपने अंतिम पड़ाव पर है. इस साल देश में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने लोगों को हैरान कर दिया. इनमें सबसे बड़ा मामला है सीबीआई के अंदरूनी बवाल का. जिसने देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया. दो बड़े अफसरों के बीच ऐसी जंग छिड़ी कि वो सड़कों तक जा पहुंची. सीबीआई ने जहां खुद अपने दफ्तर में छापेमारी की, वहीं सीबीआई मुख्यालय का एक फ्लोर तक सील करने की नौबत तक आ गई.
सीबीआई में चली कलह की आंच घूसकांड से लेकर पीएमओ तक जा पहुंची. दो शीर्ष अधिकारियों में चल रही जंग के कारण सीबीआई की खूब किरकरी हुई. विवाद के बीच सरकार ने सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया. इसके बाद ज्वाइंट डायरेक्टर नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बनाया गया.
दरअसल, राकेश अस्थाना पर चर्चित मीट कारोबारी मोईन कुरैशी को बचाने का इल्जाम लगा. साथ ही अस्थाना पर 3 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप था. जब ये मामला खुला तो अस्थाना ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर ही 2 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप जड़ दिया. उसमें भी मोईन कुरैशी का नाम आया.
ऐसे शुरू हुआ था विवाद
ये मामला पिछले कई माह से सरकार के गले की फांस बना हुआ था. उधर, सीबीआई के दोनों शीर्ष अधिकारी एक दूसरे को घेरने की कोशिश में जुटे थे. दरअसल, इस विवाद की शुरुआत अक्टूबर 2016 से हुई. सरकार ने उस वक्त राकेश अस्थाना को सीबीआई में विशेष निदेशक के पद पर तैनाती दी. ये बात सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को बेहद नागवार गुजरी. उन्होंने अस्थाना की नियुक्ति का खुलकर विरोध किया.
वर्मा ने आरोप लगाते हुए खुलासा किया कि राकेश अस्थाना गुजरात की स्टर्लिंग बायोटेक कंपनी से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में शामिल थे. आलोक वर्मा ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए सीबीआई की सिलेक्शन कमेटी के सामने एक रिपोर्ट पेश की. जिसमें भ्रष्टाचार में लिप्त कई अधिकारियों के नाम दर्ज थे. उसी रिपोर्ट में राकेश अस्थाना का नाम भी शामिल था.
बावजूद इसके मुख्य सतर्कता आयुक्त के.वी. चौधरी ने आलोक वर्मा के आरोपों को दरकिनार कर दिया. उन्होंने राकेश अस्थाना की नियुक्ति को सही माना. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने राकेश अस्थाना की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. मगर अदालत ने उसे खारिज कर दिया. इसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया. आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच दुश्मनी की खाई और गहरी हो गई.
आलोक वर्मा ने जुलाई 2018 में सीवीसी को एक पत्र लिखा. जिसमें कहा गया कि अस्थाना उनकी गैरमौजूदगी चार्ज नहीं ले सकते. वर्मा ने पत्र में लिखा कि उन्हें अधिकारियों की पोस्टिंग में अस्थाना की सलाह की कोई जरूरत नहीं है. एक तरफ आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना पर इल्जाम लगाते रहे, तो दूसरी तरफ अस्थाना ने भी वर्मा को घेरने की पूरी कोशिश की.
राकेश अस्थाना ने भी सीवीसी को पत्र लिखा. पत्र में शिकायत करते हुए राकेश ने वर्मा पर कई संवेदनशील जांच के मामलों में दखल देने का इल्जाम लगाया. उनमें लालू यादव से जुड़ा आईआरसीटीसी घोटाला केस भी शामिल था. लेकिन सीवीसी ने पूरे मामले की छानबीन के बाद अस्थाना के आरोपों को खारिज कर दिया.
राकेश और आलोक पर एक दूसरे की जासूसी कराने के आरोप भी लगे. दोनों के खिलाफ मोइन कुरैशी से रिश्वत लेने का मामला भी दर्ज हुआ. सीबीआई को ही जांच में पता चला कि दिसंबर, 2017 और अक्टूबर, 2018 के बीच कुरैशी से कम से कम पांच बार रिश्वत ली गई. इसी मामले में सीबीआई ने अचानक डीएसपी देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार कर लिया था.
सीबीआई के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ कि एजेंसी के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई पूरे देश ने देखी. उनके आरोप मीडिया में छाए रहे. लेकिन इस पूरे विवाद और रिश्वतखोरी के खुलासे ने देश की सबसे बड़ी एजेंसी के दामन पर एक बदनुमा दाग लगा दिया. जिसे धो पाना अधिकारियों के लिए मुश्किल होगा.