Advertisement

कानून की इस धारा के तहत मिल सकती है सजा-ए-मौत

हम अक्सर सुनते और पढ़ते हैं कि हत्या के मामले में अदालत ने आईपीसी यानी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के तहत मुजरिम को हत्या का दोषी पाया है. ऐसे में दोषी को सज़ा-ए-मौत या फिर उम्रकैद की सजा दी जाती है. लेकिन धारा 302 के बारे में अभी भी काफी लोग नहीं जानते. आइए संक्षेप में जानने की कोशिश करते हैं कि क्या है भारतीय दण्ड संहिता यानी इंडियन पैनल कोड और उसकी धारा 302.

IPC की इस धारा के तहत मुजरिम को सजा-ए-मौत या उम्रकैद दी जाती है IPC की इस धारा के तहत मुजरिम को सजा-ए-मौत या उम्रकैद दी जाती है
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 25 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 12:15 PM IST

हम अक्सर सुनते और पढ़ते हैं कि हत्या के मामले में अदालत ने आईपीसी यानी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के तहत मुजरिम को हत्या का दोषी पाया है. ऐसे में दोषी को सज़ा-ए-मौत या फिर उम्रकैद की सजा दी जाती है. लेकिन धारा 302 के बारे में अभी भी काफी लोग नहीं जानते. आइए संक्षेप में जानने की कोशिश करते हैं कि क्या है भारतीय दण्ड संहिता यानी इंडियन पैनल कोड और उसकी धारा 302.

क्या भारतीय दण्ड संहिता
भारतीय दण्ड संहिता यानी Indian Penal Code, IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा औ दण्ड का प्राविधान करती है. लेकिन यह जम्मू एवं कश्मीर और भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती है.

अंग्रेजों ने बनाई थी भारतीय दण्ड संहिता
भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् 1862 में लागू हुई थी. इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे. विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमें बड़ा बदलाव किया गया. पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही अपनाया. लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के अधीन आने वाले बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि में भी लागू कर दिया गया था.

भारतीय दंड संहिता की धारा 302
आईपीसी की धारा 302 कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है. कत्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है. अगर किसी पर हत्या का दोष साबित हो जाता है, तो उसे उम्रकैद या फांसी की सजा और जुर्माना हो सकता है. कत्ल के मामलों में खासतौर पर कत्ल के इरादे और उसके मकसद पर ध्यान दिया जाता है. इस तरह के मामलों में पुलिस को सबूतों के साथ ये साबित करना होता है कि कत्ल आरोपी ने किया है. आरोपी के पास कत्ल का मकसद भी था और वह कत्ल करने का इरादा भी रखता था.

कई मामलों में नहीं लगती धारा 302
हत्या के कई मामले मामलों में इस धारा को इस्तेमाल नहीं किया जाता. यह ऐसे मामले होते हैं जिनमें किसी की मौत तो होती है पर उसमें किसी का इरादतन दोष नहीं होता. ऐसे केस में धारा 302 की बजाय धारा 304 का प्रावधान है. इस धारा के तहत आने वाले मानव वध में भी दंड का प्रावधान है.

आईपीसी की धारा 299 में है मानव वध की परिभाषा
भारतीय दंड संहिता की धारा 299 में अपराधिक मानव वध को परिभाषित किया गया है. अगर कोई भी आदमी किसी को मारने के इरादे से या किसी के शरीर पर ऐसी चोटें पहुंचाने के इरादे से हमला करता है जिससे उसकी मौत संभव हो, या जानबूझकर कोई ऐसा काम करे जिसकी वजह से किसी की मौत की संभावना हो, तो ऐसे मामलों में उस कार्य को करने वाला व्यक्ति आपराधिक तौर पर 'मानव वध’ का अपराध करता है.  

धारा 299 में कुछ स्पष्टीकरण

1. कोई व्यक्ति किसी विकार रोग या अंग शैथिल्य से ग्रस्त दूसरे व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुंचाता है और इस से उस व्यक्ति की मौत हो जाती है, तो यह समझा जाएगा कि पहले व्यक्ति ने दूसरे की हत्या की है.

2. जिस मामले शारीरिक क्षति की वजह से किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है, और अगर मारे गए व्यक्ति को उचित चिकित्सा सहायता मिलने पर बचाया जा सकता था, तो भी यह माना जाएगा कि उस व्यक्ति की हत्या की गई है.

भारतीय दंड संहिता के तहत धारा 299 के अलावा धारा 300 में भी हत्या के मामलों को परिभाषित किया गया है. जिनका विवरण अदालती कार्रवाई के दौरान मिल जाता है. लेकिन हत्या के मामलों में धारा 302 को सबसे अधिक गंभीर और मजबूत मानी जाती है. जिसके तहत दोषी को दंडित किया जाता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement