इंडियन आर्मी के वेस्टर्न कमांड यानी पश्चिमी कमांड में इन दिनों युद्धाभ्यास चल रहा है. फील्ड फायरिंग ड्रिल्स चल रही हैं. ताकि सेना की तैयारी की जांच की जा सके. इस दौरान सेना के मुख्य युद्धक टैंक टी-90 के ऊपर टॉप अटैक प्रोटेक्शन केज (TAPC) लगा देखा गया. जिसे एंटी-ड्रोन केज, कोप केज या स्लेट ऑर्मर भी कहते हैं. (फोटोः विकिपीडिया)
टी-90 टैंक रूस का मुख्य युद्धक टैंक है, जिसे भारत ने अपने हिसाब से बदलकर उसका नाम भीष्म रख दिया है. 2078 टैंक सेवा में है. 464 का ऑर्डर दिया गया है. भारत ने रूस के साथ डील किया है कि वह 2025 तक 1657 भीष्म को ड्यूटी पर तैनात कर देगा. इस टैंक में तीन लोग ही बैठते हैं. यह 125 मिलिमीटर स्मूथबोर गन है. (फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)
इस टैंक पर 43 गोले स्टोर किए जा सकते हैं. यह 60 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से चल सकता है. इसकी ऑपरेशनल रेंज 550 किलोमीटर है. इस टैंक के रूसी वर्जन का उपयोग कई देशों में किया जा रहा है. इस टैंक ने दागेस्तान के युद्ध, सीरियन नागरिक संघर्ष, डोनाबास में युद्ध, 2020 में हुए नागोमो-काराबख संघर्ष और यूक्रेन में हो रहे रूसी घुसपैठ में काफी ज्यादा मदद की है. (फोटोः विकिपीडिया)
रूस-यूक्रेन जंग के दौरान रूसी टैंकों पर लोहे की एक जालीदार छत दिखती थी. ऐसी छतरियां इजरायली टैंक्स पर भी दिखाई पड़ी. इन छतरियों को एंटी-ड्रोन केज या एंटी-ड्रोन ग्रिल कहते हैं. ये टैंक के ऊपर सवार मशीन गन चलाने वाले जवान को आत्मघाती ड्रोन, एंटी-टैंक मिसाइल, ग्रैनेड और हेलिकॉप्टर से आने वाली गोलियों के हमलों से बचाता है.
इस पर अगर छोटे-मोटे आत्मघाती ड्रोन से हमला करें तो ये केज या ग्रिल संभाल लेते हैं. जवान इसमें जख्मी हो सकते हैं लेकिन मरते नहीं. हालांकि ज्यादा ताकतवर ड्रोन, बम या एंटी-टैंक मिसाइल या रॉकेट से यह बचा नहीं सकता. इससे पहले ऐसे केज या ग्रिल रूस और यूक्रेन युद्ध के समय रूसी टैंकों पर देखने को मिले थे.
कुछ लोग इन्हें कोप केज (Cope Cages) भी कहते हैं. ये छोटो-मोटो ड्रोन्स और क्वॉडकॉप्टर्स से बचाता है. खासतौर से ग्रैनेड फेंकने वाले ड्रोन्स और आत्मघाती ड्रोन्स. ड्रोन्स की वजह से अब जंग का चेहरा बदल गया है. बड़े ड्रोन्स जैसे अमेरिकन रीपर या तुर्की का बेरक्तार तो बड़े हमलों के लिए इस्तेमाल होते हैं. लेकिन टैंकों और जवानों पर हमले के लिए सस्ते ड्रोन्स और क्वॉडकॉप्टर्स का इस्तेमाल होता है. (फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)
इस मामले में इस्लामिक स्टेट (ISIS) काफी आगे निकल गया था. वह सस्ते ड्रोन्स लेकर उन्हें हवाई हथियार में बदल देता था. इसके बाद यही टैक्टिक यूक्रेन में इस्तेमाल हुआ. तब रूसी टैंक्स के ऊपर एंटी-ड्रोन केज लगाए गए. अब यह तरीका इजरायल-हमास युद्ध में इस्तेमाल हो रहा है. हमास अपने देसी और सस्ते ड्रोन्स के जरिए इजरायल के टैंक्स और जवानों पर हमला कर सकता है. इसलिए इजरायली टैंक्स पर ये कवच लगाए जा रहे हैं. (फोटोः एएफपी)
Cope Cages शब्द तब प्रचलन में आए जब इन्हें रूसी टैंक्स के ऊपर लगा हुआ देखा गया. यूक्रेन में घुसपैठ के समय रूस ने इस तकनीक का इस्तेमाल किया था. हालांकि इसका पहला इस्तेमाल 2020 में नोगर्नो-काराबख युद्ध के दौरान किया गया था. यह जंग आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चल रही थी. बाद में इसके और नाम भी पड़ गए. जैसे- एंटी-यूएवी, रूफ स्क्रीन्स. अब इजरायल ने अपने टैंकों पर इसे लगाना शुरू कर दिया है. (फोटोः विकिपीडिया)