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लौह पुरुष वल्लभ भाई पटेल से सीखें जिंदगी में सफल होने के गुर...

लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है. भारत के वर्तमान भौगोलिक स्वरूप में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. जानें कि आखिर वे क्यों थे खास और उनकी जयंती के मौके पर आम जन उनसे क्या-क्या सीख ले सकते हैं...

Vallabh Bhai Patel Vallabh Bhai Patel
विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 6:50 PM IST

वल्लभ भाई पटेल. भारत के आजादी आंदोलन का एक ऐसा नाम जो गांधी से प्रेरित होकर राजनीति में तो आए लेकिन गांधी से मतभेदों के बावजूद वे राष्ट्रनिर्माण के कार्य में लगे रहे. जिनके लिए राष्ट्र हमेशा से ही सर्वोपरि था. स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अद्भुत भूमिका अदा की. भारत के वर्तमान भौगोलिक स्वरूप का अधिकांश श्रेय उन्हें ही जाता है.
उन्होंने आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभायी. इन्हीं वजहों से उन्हें भारत का बिस्मार्क और लौहपुरुष भी कहा जाता है. आप भी जानें कि आखिर कौन सी चीजें उन्हें सामान्य से विशेष बनाती हैं और एक आम भारतीय व छात्र उनसे क्या सीखते हुए आगे बढ़ सकता है.

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1. जमीन से जुड़े रहना...
ऐसा अक्सर होता है कि लोगों को थोड़ी सी सफलता और प्रसिद्धि मिलते ही लोगों के भाव नहीं मिलते. बचपन के दिनों में अपने पिता के साथ खेत में काम किया करते थे. खुद एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने के कारण वे हमेशा ही देश की आम जनता के सुख-दुख में भागीदार रहे.

2. राष्ट्र को हमेशा रखा आगे...
महात्मा गांधी के नेहरू के प्रति जाहिर लगाव के बावजूद किसी भी कांग्रेस कमिटी के सदस्य ने साल 1946 में उनका नाम नहीं प्रस्तावित किया. दूसरी ओर सरदार पटेल का नाम पूरे बहुमत के साथ प्रस्तावित किया गया. नेहरू को किसी के मातहत काम करने में आपत्ति थी. गांधी को लगा कि ऐसे में कांग्रेस टूट न जाए. अंग्रजों को एक और बहाना मिल जाएगा. सरदार पटेल ने गांधी के सम्मान में अपना नामांकन वापस ले लिया.

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3. सच्ची मित्रता...
जब साल 1930 में गुजरात में प्लेग फैला तो वे लोगों की सलाह को दरकिनार करते हुए अपने पीड़ित मित्र की सेवा में लग गए. परिणामस्वरूप वे भी इस बीमारी की चपेट में आ गए. ठीक न होने तक एक मंदिर में रहे.

4. उनकी लाजवाब दूरदृष्टि...
उन्होंने साल 1950 में प्रधानमंत्री नेहरू को पत्र लिखकर चीन से आगाह रहने की सलाह दी थी. दुर्भाग्य से पंडित नेहरू इस खतरे को भांप नहीं पाए. भारत को साल 1962 में युद्ध का सामना करना पड़ा.

5. अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण...
साल 1909 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया. जब उन्हें यह खबर मिली तब वे कोर्ट मे जिरह कर रहे थे. खबर पर प्रतिक्रिया देने के बजाय वे अपने काम में लगे रहे. दो घंटे की जिरह के बाद उन्होंने यह खबर दूसरों से साझा की.

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