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पुण्यतिथि: जानें, भारतीय सिनेमा के 'पितामह' दादा साहेब फाल्के के बारे में ये खास बातें

आज दादा साहेब फाल्के की पुण्यतिथी है. जानें उनसे जुड़ी खास बातें.

 दादा साहेब फाल्के दादा साहेब फाल्के
प्रियंका शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 16 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 11:15 AM IST

आज दादा साहेब फाल्के की पुण्यतिथी है. भारतीय सिनेमा के 'पितामह' का खिताब पाने वाले दादा साहेब फाल्के उर्फ 'धुंदीराज' फाल्के ने सिनेमा की दुनिया में उस वक्त कदम रखा, जब सिनेमा का कोई अस्तित्व नहीं था. दादासाहेब ने ही फिल्मों को नई पहचान दी. वहीं आज हर कलाकार का एक ही सपना है कि उसकी कला को एक दिन दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा जाए. भारतीय फिल्म जगत के सबसे मजबूत स्तम्भ दादासाहेब फाल्के का निधन 16 फरवरी 1944 को हुआ था.

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जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातेें

दादा साहेब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 को हुआ था. बचपन से ही उनमें कला के प्रति रुझान था. साल 1885 में उन्होंने मुंबई के सर. जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में प्रवेश लिया. 1890 में पास होने के बाद फाल्के साहेब ने बड़ौदा के कला भवन में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने मूर्तिशिल्प, इंजीनियरिंग, ड्राइंग, पेंटिंग और फोटोग्राफी का ज्ञान प्राप्त किया. इसके बाद उन्होंने एक फोटोग्राफर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की. साल 1903 में वह भारतीय पुरातत्व विभाग में ड्राफ्ट्समैन के तौर पर काम करने लगे.

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फिल्मों की दुनिया में करियर की शुरुआत

वह मंच के एक अनुभवी अभिनेता थे और शौकिया जादूगर भी. फिल्मों की दुनिया में उन्होंने रुख उस वक्त किया जब पहली बार ईसा मसीह के जीवन पर बनी एक फिल्म 'लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखी. उसके बाद फाल्के साहेब ने अपनी पहली मूक फिल्म (साइलेंट मूवी) बनाई. जिसका नाम 'राजा हरिश्चंद्र' है. कहा जाता है कि इस फिल्म को बनाने के लिए 15 हजार रुपये खर्च हुए थे. जो उस समय एक बहुत बड़ी राशि थी.

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'राजा हरिश्चंद्र'फिल्म लोगों के बीच पॉपुलर करवाना एक मुश्किल बात थी. क्योंकि उस समय नाटकों का बोलबाला था. दो आने में लोग छह घंटे के नाटक का आनंद लेते थे. ऐसे में तीन आने खर्च कर एक घंटे की फिल्म कौन देखता. लेकिन फाल्के साहेब हार मानने वाले नहीं थे. दर्शकों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने सिर्फ तीन आने में दो मील लंबी फिल्म चलाई जिसमें 57 हजार चित्र थे. ये 'राजा हरिश्चंद्र' का विज्ञापन था.

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अपने यादगार फिल्मी सफर के तकरीबन 25 सालों में 'राजा हरिश्चंद्र' के अलावा उन्होंने 95 फिल्में और 26 शॉर्ट फिल्में बनाई. जिसमें उनकी कुछ खास फिल्म हैं :- सत्यवान सावित्री (1914), लंका दहन (1917), श्रीकृष्ण जन्म (1918), कालिया मर्दन (1919), कंस वध (1920), शकुंतला (1920), संत तुकाराम (1921), और भक्त गोरा (1923). बता दें, फिल्मों के अलावा दादा साहेब फाल्के लिथोग्राफी और ऑयलियोग्राफ करना जानते थे. उन्होंने मशहूर पेंटर राजा रवि वर्मा के साथ भी काम किया.

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दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है, को कि किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सिनेमा में उसके आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है. इस पुरस्कार की शुरुआत साल 1969 में दादा साहेब की सौवीं जयंती पर हुई थी. शशि कपूर, मनोज कुमार, गुलजार, देव आनंद, यश चौपड़ा, आशा भोंसले , राजकपूर जैसे दिग्गज हस्तियों को फाल्के अवार्ड से नवाजा गया है.बता दें, पहला फाल्के पुरस्कार अभिनेत्री देविका रानी को दिया गया था. भले ही दादा हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन दादा साहेब फाल्के अवार्ड से दिया जाने वाला भारतीय सिनेमा का सबसे बड़े पुरस्कार ने आज हर कलाकार के दिल में उन्हें जिंदा रखा हुआ है.

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