
अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में भारत ने 5 नवंबर 2013 को एक नया अध्याय लिख दिया था, जब आज ही के दिन आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से 'मंगलयान' लॉन्च किया गया. 5 नवंबर को भेजे गए 'अंतरग्रहीय मिशन मंगलयान' ने 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचकर इतिहास रच दिया था और इसके साथ मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई देश और पहले प्रयास में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बना गया.
जानें मंगलयान से जुड़ी बातें
मंगलयान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था. दोपहर 2 बजकर 39 मिनट पर PSLV C-25 'मार्स ऑर्बिटर' नाम के उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष रवाना किया गया. इस मंगल मिशन को 28 अक्टूबर को ही लॉन्च किया जाना था लेकिन खराब मौसम की वजह से वैज्ञानिकों ने लॉन्चिंग 5 नवंबर तक टाल दी थी. 72 घंटे 51 मिनट और 51 सेकंड तक मंगलयान कक्षा में रहा.
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भारत के मंगल अभियान की पहली औपचारिक घोषणा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2012 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में की थी. उन्होंने कहा था, 'मंगलयान विज्ञान और टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक बड़ा कदम होगा'. उसके बाद से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में सैटेलाइट विकसित किया.
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रंग लाई भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत
इसरो ने इस मानवरहित सैटेलाइट को 'मार्स ऑर्बिटर' मिशन नाम दिया है. इसकी कल्पना, डिजाइन और निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों ने किया. और इसे भारत की धरती से भारतीय रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया. भारत के पहले मंगल अभियान पर 450 करोड़ रुपये का खर्च आया और इसके विकास पर 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने काम किया था.
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ISRO के पूर्व चेयरमैन के. राधाकृष्णन का कहना था कि भारत का मंगल अभियान वास्तव में 'टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन' करने वाला है, जिससे दुनिया को यह दिखाया जा सकेगा कि भारत दूसरे ग्रहों तक भी छलांग लगा सकता है. उन्होंने कहा अब तक सिर्फ रूस, जापान, चीन, अमेरिका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मंगल ग्रह तक जाने की कोशिश की है, जिनमें से सिर्फ अमेरिका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी को सफलता मिली है. 1960 से 45 मिशन लॉन्च किए जा चुके हैं, जिनमें एक-तिहाई विफल रहे. 2011 में चीन के मिशन की विफलता सबसे ताजा उदाहरण है.