Advertisement

जानेंः कैसे तय हुआ था सरदार पटेल नहीं, जवाहर लाल नेहरू होंगे देश के पहले पीएम?

कांग्रेस पार्टी के भीतर, सरदार पटेल की जबरदस्त पकड़ थी. संगठन पर पकड़ के मामले में उनका कोई सानी नहीं था. वे बॉम्बे प्रेजीडेंसी से आते थे. उन्हें पार्टी का फंड रेजर कहा जाता था. दूसरी तरफ जवाहर लाल नेहरू लोगों के बीच में बहुत लोकप्रिय थे.

महात्मा गांधी के साथ पंडित नेहरू और सरदार पटेल (फाइल फोटो: Getty Images) महात्मा गांधी के साथ पंडित नेहरू और सरदार पटेल (फाइल फोटो: Getty Images)
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 2:53 PM IST

  • सरदार पटेल अगर कांग्रेस अध्यक्ष बनते तो वे पहले पीएम होते
  • महात्मा गांधी ने उनकी जगह पंडित नेहरू को तरजीह दी
  • नेहरू जननेता थे और कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत रखते थे

सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज देश भर में जयंती मनाई जा रही है. देश में एक वर्ग द्वारा यह बात कही जाती रही है कि सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो ऐसा होता, वैसा होता. यह अलग बात है कि सरदार पटेल पीएम बनते भी तो आजादी के महज तीन साल बाद तक ही रह पाते, क्योंकि 1950 में उनका निधन हो गया था. लेकिन क्या पटेल के लिए कभी पीएम बनने के हालात थे? क्या वे पीएम बन सकते थे? इस सवाल का एक साफ जवाब तो यह है कि जब तक नेहरू कांग्रेस में थे, तब तक तो ऐसा नहीं हो पाता. क्या है इसकी वजह आइए जानते हैं.

Advertisement

कैसे मिला भारत को पहला प्रधानमंत्री

द्व‍ितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश हुकूमत काफी कमजोर हो गई थी. 1946 में ब्रिटिश सरकार ने कैबिनेट मिशन प्लान बनाया, जिसके तहत कुछ अंग्रेज अधिकारियों को ये जिम्मेदारी मिली कि वे भारत की आजादी के लिए भारतीय नेताओं से बात करें. फैसला ये हुआ कि भारत में एक अंतरिम सरकार बनेगी. अंतरिम सरकार के तौर पर वायसराय की एक्जिक्यूटिव काउंसिल बननी थी. अंग्रेज वायसराय को इसका अध्यक्ष होना था, जबकि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को इस काउंसिल का वाइस प्रेसिडेंट बनना था. आगे चलकर आजादी के बाद इसी वाइस प्रेसिडेंट का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था.

उस समय मौलाना अबुल कलाम आजाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे. कई बड़े नेताओं के जेल में रहने की वजह से वह इस पद पर 1940 से ही बने हुए थे. मौलाना आजाद इस वक्त पर पद नहीं छोड़ना चाहते थे, लेकिन महात्मा गांधी के दबाव में वे पद छोड़ने के लिए राजी हुए और फिर इसके बाद कांग्रेस के अगले अध्यक्ष की तलाश शुरू हुई जो भारत के पहले प्रधानमंत्री भी बनते.

Advertisement

इसे भी पढ़ें: क्या महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस को जिम्मेदार मानते थे सरदार पटेल?

यह तय करने के लिए अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई. इस बैठक में महात्मा गांधी, नेहरू, सरदार पटेल, आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद, खान अब्दुल गफ्फार खान सहित कई बड़े कांग्रेसी नेता शामिल थे. महात्मा गांधी पंडित नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे. वह एक लोकप्रिय जन नेता थे, लेकिन कांग्रेस की प्रांतीय समितियों में उनका समर्थन करने वाले कम लोग थे.

15 में से 12 प्रांतीय समितियों ने सरदार पटेल के नाम का समर्थन किया

बैठक में तब पार्टी के महासचिव आचार्य जे बी कृपलानी ने कहा ‘बापू ये परपंरा रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती हैं, किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने जवाहर लाल नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित नहीं किया है. 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का और बची हुई 3 कमेटियों ने मेरा और पट्टाभी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया है.' इसका यह साफ मतलब था कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल के पास बहुमत था, वहीं जवाहर लाल नेहरू का नाम ही प्रस्तावित नहीं था.

महात्मा गांधी के दबाव में आया नेहरू का नाम

Advertisement

लेकिन महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू को भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे. इस अहम बैठक से कुछ दिन पहले ही गांधी ने मौलाना को लिखा था, 'अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं जवाहर लाल को ही प्राथमिकता दूंगा. मेरे पास इसकी कई वजह हैं.'   

महात्मा गांधी के इस रुख के बावजूद 1946 के अप्रैल महीने में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में चर्चा के लिए भी जवाहर लाल नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं हुआ. आखिरकार आचार्य कृपलानी को कहना पड़ा, 'बापू की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं जवाहर लाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित करता हूं.' यह कहते हुए आचार्य कृपलानी ने एक कागज पर जवाहरलाल नेहरू का नाम खुद से प्रस्तावित कर दिया. सरदार पटेल गांधी का बहुत सम्मान करते थे और उनकी बात को वे टाल नहीं पाए.

गांधी ने नेहरू को क्यों आगे बढ़ाया

कांग्रेस पार्टी के भीतर, सरदार पटेल की जबरदस्त पकड़ थी. संगठन पर पकड़ के मामले में उनका कोई सानी नहीं था. वे बॉम्बे प्रेजीडेंसी से आते थे. उन्हें पार्टी का फंड रेजर कहा जाता था. दूसरी तरफ जवाहर लाल नेहरू लोगों के बीच में बहुत लोकप्रिय थे.

नेहरू मॉडर्न थे और गांधी को लगता था कि वे देश को उदार विचारों की ओर ले जाएंगे. महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को क्यों नहीं चुना, इसका जवाब एक साल बाद गांधी ने खुद उस समय के वरिष्ठ पत्रकार दुर्गा दास को दिया. महात्मा गांधी ने उन्हें बताया कि जवाहर लाल नेहरू बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अंग्रेजी हुकूमत से बेहतर तरीके से समझौता वार्ता कर सकते थे. इसके अलावा महात्मा गांधी को ऐसा लगता था कि जवाहर लाल अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व सरदार पटेल से बेहतर कर पाएंगे.

Advertisement

पटेल ने भी मान लिया था नेहरू को नेता

तो इन ऐतिहासिक घटनाक्रमों पर विचार करने के बाद यह बात साफतौर से समझी जा सकती है कि नेहरू के रहते सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन पाते. पटेल की कांग्रेस संगठन पर अच्छी पकड़ थी, लेकिन जन नेता तो नेहरू ही थे. इस बात को सरदार पटेल ने भी स्वीकार कर लिया था.

2 अक्टूबर, 1950 को इंदौर में एक महिला केंद्र का उद्घाटन करने गये पटेल ने अपने भाषण में कहा, 'अब चूंकि महात्मा हमारे बीच नहीं हैं, नेहरू ही हमारे नेता हैं. बापू ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था और इसकी घोषणा भी की थी. अब यह बापू के सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे उनके निर्देश का पालन करें और मैं एक गैर-वफादार सिपाही नहीं हूं.'

लेखक रामचंद्र गुहा अपनी पुस्तक ‘भारत गांधी के बाद' में कहते हैं, ‘गांधी अपने जीते जी हिंदू और मुसलमानों में सामंजस्य नहीं स्थापित कर पाए, लेकिन उनकी मृत्यु ने जवाहर लाल नेहरू और वल्लभ भाई पटेल के बीच के मतभेदों को जरूर दूर कर दिया. यह एक नए और बहुत ही अस्थिर देश के दो बड़े नेताओं के बीच की सुलह थी जो काफी महत्वपूर्ण थी.'

(रामचंद्र गुहा की पुस्तक 'भारत गांधी के बाद' और कुछ अन्य स्रोतों पर आधारित)

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement