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एजुकेशन न्यूज़

एक्सपर्ट का दावा: डरना छोड़ें, बच्चों को नहीं है तीसरी लहर या 'चाइल्ड वेव' का खतरा

मानसी मिश्रा
  • नई द‍िल्ली ,
  • 21 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 8:22 PM IST
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कोरोना की तीसरी लहर को लेकर 0-18 वर्ष की आयु के बच्चों के अभ‍िभावकों में अलग-सा डर है. उन्हें लग रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर चाइल्ड वेव बनकर आएगी और बच्चों के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी होगी. लेकिन हकीकत में इससे डरने की जरूरत नहीं है. पब्लिक पॉलिसी, हेल्थ एक्सपर्ट डॉ चंद्रकांत लहारिया ने aajtak.in से बातचीत में विस्तार से वो वजहें गिनवाईं जिससे साफ है कि कोरोना की थर्ड वेव किसी भी तरह चाइल्ड वेव साबित नहीं होगी. 

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डॉ लहारिया ने कहा कि कोविड -19 महामारी से अब तक जितने भी ग्लोबल या नेशनल लेवल पर आंकड़े प्राप्त हुए हैं उनसे साफ है कि अभी तक आई वेव्स में में (0-18 वर्ष) के बच्चों में मॉडरेट या गंभीर बीमारी विकसित होने का अपेक्षाकृत कम जोखिम रहा है. फिर भी, सभी सबूतों के विपरीत, सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया दोनों इस बात को लेकर चर्चा कर रहे हैं कि कैसे बच्चे पहले से ही गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं और तीसरी लहर में गंभीर बीमारी होने की संभावना है. लेकिन  सच्चाई इससे इतर है. अब सिंगापुर का ही उदाहरण लें, यहां स्कूल बंद कर दिए गए और भारत में इसे इस बात के सबूत के तौर पर देखा गया कि बच्चे नए स्ट्रेन से प्रभावित हो रहे हैं. लेकिन ऐसे माहौल में अब इससे आगे के आंकड़ों पर चर्चा करने की बहुत जरूरत है. 

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विशेषज्ञ के अनुसार उपलब्ध आंकड़ें स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि भारत में अस्पताल में भर्ती होने वाले कोविड -19 मामलों में, दोनों वेव के दौरान ये देखा गया कि इनमें महज 2-5% ही 0-18 आयु वर्ग के बच्चे थे. वहीं आबादी में इनकी संख्या लगभग 40% के बराबर है. उनका कहना है कि बुजुर्गों और वयस्कों में बच्चों की तुलना में मॉडरेट से गंभीर बीमारी और मृत्यु का जोखिम 10-20 गुना अधिक होता है. वहीं दुनिया के किसी भी हिस्से से इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि तीसरी या कोई बाद की लहर बच्चों को असमान रूप से प्रभावित करेगी. 

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डॉ लहारिया का कहना है कि जबकि सार्स CoV2 के उत्परिवर्तन और उसके परिणाम स्वरूप पैदा हुए नए म्यूटेंट्स ने उच्च संचरण क्षमता (higher transmissibility) दिखाई है, लेकिन दूसरी तरफ इसने किसी भी आयु वर्ग में गंभीर बीमारी पैदा करने की क्षमता को नहीं बदला है. इन तथ्यों को लगभग हर उस विशेषज्ञ द्वारा कहा गया है जो कोविड -19 रोग महामारी विज्ञान को समझता है. साथ ही भारत में बाल रोग विशेषज्ञों के प्रोफेशनल एसोसिएशंस ने भी इस पर हामी भरी है. 

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वो आगे समझाते हुए कहते हैं कि फिर भी कई लोग ओवरसिम्प्लीफिकेशन के जरिये डेटा को महत्वहीन बनाने का का कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर, आइए एक ऐसी खबर को लें जिसे टीवी पर लूप में चलाया गया था, जिसमें कहा गया था कि अप्रैल और मई 2021 में, महाराष्ट्र ने 10 साल या उससे कम उम्र के 99,000 बच्चों में कोविड संक्रमण पाया गया.

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इसके जरिये यह दावा किया गया कि इसका मतलब है कि 3.3 गुना वृद्धि है. वहीं एक अन्य समाचार रिपोर्ट में कहा गया कि अहमदनगर जिले में, मई 2021 में, 0-18 वर्षों में कुल 8,000 नए कोविड संक्रमण दर्ज किए गए. लेकिन इन सबका उपयोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए किया गया है कि बच्चे पहले से ही तेजी से प्रभावित हो रहे हैं. इससे माता-पिता में दहशत पैदा हो रही है क्योंकि बच्चों का टीकाकरण नहीं हुआ है. 

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बता दें कि अप्रैल-मई 2021 में, महाराष्ट्र में लगभग 29 लाख नए कोविड मामले दर्ज किए गए. इसलिए, 0-10 आयु वर्ग में 99,000 नए मामले कुल मामलों का 3.5% हैं, जबकि यह आयु वर्ग कुल जनसंख्या का लगभग 24% है. वहीं दूसरी लहर में भारत में कुल मिलाकर दैनिक नए कोविड -19 मामले पहली लहर के चरम की तुलना में लगभग चार गुना अधिक थे; इसलिए 0-10 आयु वर्ग में 3.3 गुना वृद्धि अभी भी वृद्ध आयु समूहों की दरों से कम है.

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अहमदनगर में, 0-18 वर्ष के कोविड के मामले उस महीने में दर्ज किए गए कुल 80,000 मामलों का 10% थे. जबकि यह आयु वर्ग कुल जनसंख्या का 40% था. बता दें क‍ि विभिन्न सीरो-सर्वेक्षणों ने वयस्कों के साथ ही संक्रमित होने वाले बच्चों का समान अनुपात है. डॉ लहारिया कहते हैं कि ऐसा भी पाया गया है कि बच्चों में वयस्कों की तुलना में अपेक्षाकृत कम विकसित रिसेप्टर्स हैं जितने कि SARS CoV2 को फेफड़ों को प्रभावित करने और व्यक्ति को बीमार बनाने के लिए जरूरी होते हैं.  इससे साफ है कि संक्रमण के बाद भी बच्चों में गंभीर बीमारी विकसित नहीं होती है. इसलिए पेरेंट्स को ये समझना होगा कि कोरोना की कोई भी लहर चाइल्ड वेव नहीं होगी. बच्चों की सेहत को लेकर चिंत‍ित होने की जरूरत नहीं है. 

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