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क्रिकेट खेलने वाले हमें बेहद पसंद आते हैं, अच्छे खिलाड़ी और ज़्यादा. लेकिन जिन खिलाड़ियों ने मैदान से बाहर भी राह के कांटों को फूलों में बदलकर ज़िंदगी भी जीतनी सीख ली हो, वो ना केवल पसंद आते हैं, बल्कि हमें प्रेरित भी करते हैं. ऐसे ही खिलाड़ियों पर एक नज़र.
भगवत चंद्रशेखर 'चंदू'
देशः भारत
दिक्कतः पोलियो
साल 1971, ओवल मैदान, इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट, एक जादूगर की फिरकी वाली जादूगरी और हमारी जीत. जीत का सेहरा बंधा बी एस चंद्रशेखर के सिर, जिन्होंने लकवे को बीमारी के बजाय अपनी ताक़त बना लिया. उनकी एक कलाई कुछ पतली थी, जिससे अपनी टॉप स्पिन गेंदबाज़ी में रफ्तार बढ़ाने में उन्हें मदद मिलती थी. और बल्लेबाज़ चारों खाने चित्त. साथी गेंदबाज़ बिशन सिंह बेदी ने उन्हें 'भगवान' तक करार दिया!
युवराज सिंह
देशः भारत
दिक्कतः कैंसर
जिस वक़्त युवी 2011 क्रिकेट वर्ल्ड कप में टीम के लिए मैच जीत रहे थे, तो प्रशंसक दीवाने हुए जा रहे थे. लेकिन किसी को भी उनके दर्द का अहसास नहीं था. वो कैंसर से जूझ रहे थे और शुरुआती इलाज ने उन्हें अंदर तक तोड़ा भी. लेकिन युवी ने हार नहीं मानी. वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लौटे और हज़ारों-लाखों को प्रेरणा दी. वो एक ओवर में 6 छक्के मारने का वादा भी कर रहे हैं.
मार्टिन गप्टिल
देशः न्यूज़ीलैंड
दिक्कतः पैर की उंगलियां ना होना
दुनिया के सबसे ख़तरनाक सलामी बल्लेबाज़ों में शुमार मार्टिन गप्टिल ने अपने बचपन में बुरा वक़्त देखा है. वो एक ऐसे हादसे का शिकार हुए, जिसमें जान भी जा सकती थी. इस हादसे की वजह से कीवी बल्लेबाज़ के बायें पैर का अंगूठा और दो उंगलियां काटनी पड़ीं, जिसके चलते उनके चलने और दौड़ने को लेकर चिंता पैदा हो गई. लेकिन उन्होंने वापसी की, क्रिकेट में जगह बनाई और आज भी सबसे तेज़ रफ्तार खिलाड़ियों में जाने जाते हैं.
शोएब अख़्तर
देशः पाकिस्तान
दिक्कतः कोहनी में दिक्कत और सपाट पैर
रावलपिंडी एक्सप्रेस का ज़िक्र आते ही 100 मील प्रतिघंटे रफ्तार वाली गेंद याद आती हैं. लेकिन उनका शरीर भी किसी अजूबे से कम नहीं. उनकी कोहनी 40 डिग्री तक मुड़ जाती है, जबकि आम तौर पर ये सिर्फ 20 डिग्री मुड़ती है. इसके अलावा उनके पैर सपाट थे और 5 साल की उम्र तक वो सीधे चल भी नहीं सकते थे. लेकिन उन्होंने सारी परेशानियों को दूर करते हुए सबसे तेज़ गेंदबाज़ बनकर दिखाया.
वसीम अकरम
देशः पाकिस्तान
दिक्कतः डायबिटीज़
स्विंग का सुल्तान जब अपने चरम पर था, तब उनके टाईप 1 मधुमेह बीमारी से पीड़ित होने का खुलासा हुआ. उनके शरीर ने इंसुलिन बनाना बंद कर दिया था. लेकिन तेज़ गेंदबाज़ ने हार नहीं मानी. दवा भी ली और जमकर वर्जिश भी की. इस मेहनत के ज़रिए वो वापसी करने में कामयाब रहे. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बने रहे और रिटायर होने से पहले 250 विकेट और चटकाए.
माइकल क्लार्क
देशः ऑस्ट्रेलिया
दिक्कतः डेसिमेटेड इंटरवर्टेब्राल डिस्क
पूर्व कंगारू कप्तान माइकल क्लार्क का वयस्क जीवन पीठ के दर्द से भरा रहा है. यही वजह है कि उन्हें बार-बार इलाज के लिए क्रिकेट से दूर रहना पड़ता था, कई बार इंजेक्शन लेकर खेलना पड़ता था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बीमारी को हराते हुए लंबा कामयाब करियर देखा. इसके अलावा उन्हें 2005 में स्किन कैंसर भी हो गया था. लेकिन लगातार टोपी लगाने और जर्सी के नीचे प्रोटेक्टिव गियर पहनकर उन्होंने इससे भी लड़ाई की.
ब्रायन लारा
देशः वेस्टइंडीज़
दिक्कतः हेपेटाइटिस बी
बायें हाथ का दुनिया का सबसे शानदार बल्लेबाज़ माने गए ब्रायन लारा जब 2002 में श्रीलंका में खेल रहे थे, तो उन्हें हेपेटाइटिस बी बीमारी का पता चला. इलाज के बाद उनका लौटना तय था, लेकिन ये नहीं कि वो दोबारा शानदार फॉर्म देखेंगे या नहीं. लेकिन उन्होंने सारे सवालों का जवाब अपने बल्ले से दिया. लौटकर टेस्ट क्रिकेट का सबसे बड़ा स्कोर 400 नाबाद खड़ा किया, जो आज तक कोई नहीं तोड़ सका.
मंसूर अली ख़ान पटौदी
देशः भारत
दिक्कतः एक आंख की रोशनी जाना
अपने करियर के ज़्यादातर हिस्से में टाइगर पटौदी एक आंख से खेले. एक कार हादसे में उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थी. 21 साल की उम्र में टीम के सबसे नौजवान कप्तान बनने वाले पटौदी ने 46 टेस्ट मैच खेले, जिनमें से 40 में कप्तानी की और 9 मैच जीतकर दिखाए. 6 शतक, एक दोहरा शतक और 16 अर्द्धशतक, वो भी महज़ एक आंख से. अगर हादसा ना होता, तो उनके शानदार करियर में और भी बहुत कुछ होता.
माइकल आर्थटन
देशः इंग्लैंड
दिक्कतः एंकीलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिसइंग्लैंड के पूर्व कप्तान ने सामने वाली टीम नहीं, बल्कि अपने शरीर के सेल से भी मैच खेला. उन्हें एक ऐसी बीमारी थी, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपने ही सेल पर हमला करने लगता है. इससे आम तौर पर उनकी रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों में बेइंतहा दर्द होता था. लेकिन आर्थटन ने इस दर्द को हराया, टेस्ट और वनडे मैच में कप्तानी की, सलामी बल्लेबाज़ी की और कई मैच जिताए.
जोंटी रोड्स
देशः दक्षिण अफ्रीका
दिक्कतः मिरगी
दुनिया के सबसे शानदार फील्डर जोंटी रोड्स की कैच, गेंद रोकने की कला या रनआउट करने की दक्षता का कोई सानी नहीं था. उन्हें देखकर यक़ीन नहीं होता था कि मैदान पर फील्डिंग करने वाला इंसान है, मशीन नहीं. लेकिन ये खिलाड़ी भी जीवन में मिरगी की बीमारी से ख़ूब लड़ा. मिरगी होने के बावजूद उन्होंने इसे करियर में आड़े नहीं आने दिया और जीत दर्ज की. इन दिनों वो दुनिया भर में अलग-अलग टीमों को फील्डिंग के गुर सिखाते हैं.
सौजन्य: NEWSFLICKS