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हिंदी दिवस: ये देश भी हिंदी का मुरीद, हिंदी भाषण से मिलती है चुनावों में जीत

भाषण देते वक्त ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए जो सीधे जनता के दिल में उतर जाए. जानें किस देश के लोग हमारी राष्ट्रभाषा के दम पर ले जाते हैं वोट.

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वंदना भारती
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  • 14 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 7:35 AM IST

भाषण ऐसा होना चाहिए कि उसके दम पर आप चुनाव जीत लें. पर एक दमदार भाषण में जान फूंकने का काम करती है एक ऐसी भाषा, जो सारी आवाम को समझ आ जाए.

भारत में जहां हिंदी में दिए गए भाषण देकर चुनाव जीत लिया जाता है, वहीं दुनिया में एक ऐसा देश भी है जिसने हमारी मातृभाषा हिंदी को ना सिर्फ अपनी आधिकारिक भाषा बनाया बल्कि वहां के नेता हिंदी भाषण देकर चुनाव जीते लेते हैं. हम बात कर रहे हैं 'फिजी' की जो दक्षिण प्रशांत महासागर स्थित 322 द्वीपों का समूह है. जहां भारतीयों की 44 प्रतिशत आबादी है.

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भारत से ऐसे फिजी पहुंची हिंदी

5 मई 1871 में अंग्रेजों का जहाज 471 भारतीयों को लेकर फिजी पहुंचा था. इनके साथ ही हिंदी भाषा भी वहां पहुंच गई. गिरमिट प्रथा के अंतर्गत आए प्रवासी भारतीयों ने फिजी देश को जहां अपना खून-पसीना बहाकर आबाद किया. बतादें गिरमिट वो लोग थे जो यहां मजदूरी करने के लिए गुलामों की तरह लाए जाते थे.

तो इसलिए 14 सितंबर को मनाया जाता है 'हिंदी दिवस'...

जब गुलामों की लाई हिंदी बनी आधिकारिक भाषा

धीरे -धीरे गुलामों की लाई हिंदी अपने पैर पसारने लगी थी. जिसका नतीजा ये रहा है हिंदी भाषा इस देश की आधाकारिक भाषा घोषित कर दी गई. हिंदी को यह दर्जा 1997 में मिला. इसे फिजियन हिंदी या फिजियन हिंदुस्तानी भी कहते हैं. फिजी हिंदी देवनागरी और रोमन, दोनों में लिखी जाती है. यहां की हिंदी मुख्य रूप से अवधी, भोजपुरी, बिहारी और हिंदी की अन्य बोलियों से बनी है.

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भारत से अलग है फिजी हिंदी

फिजी हिंदी में बड़ी संख्या में अलग शब्द है. मसलन यहां 'श' को 'स' बोला जाता है वहीं 'व' को 'ब'. ऐसे ही यहां सब्जी पेठा/सीताफल को कोहंडा कहा जाता है, पूड़ी को सोहारी, पैर को गोड़ कहा जाता है.

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