IIM से पास होगा रिक्शा चालक का बेटा, बदलेगा गांव की तस्वीर

मेहनत, लग्न और धैर्य के साथ अपनी मंजिल की ओर बढ़ने वाले लोगों की कभी हार नहीं होती. इसका एक उदाहरण लखनऊ में देखने को मिला है.

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एक रिक्शा चलाक का बेटा योगेंद्र सिंह अगले सप्ताह IIM लखनऊ से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर अपने गांव लौटने वाला है.

30 साल के योगेंद्र, दरअसल झारखंड के मेदिनीनगर (डाल्टनगंज) के रहने वाले हैं और IIM से ग्रेजुएशन करने के बाद वह सबसे पहले अपने गांव की तस्वीर बदलना चाहते हैं.

योगेंद्र कहते हैं कि वो खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि तमाम रुकावटों और मुश्किलों के बावजूद उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट-लखनऊ में पढ़ने का मौका मिला. योगेंद्र अपने गांव वापस जाकर उन वंचित छात्रों की मदद करेंगे जो पैसे और सही दिशा निर्देश की कमी के कारण मजदूरी कर रहे हैं और पढ़ाई से दूरी बना ली है.

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योगेंद्र का कहना है कि वो बच्चों को मजदूरी की मजबूरी से निकालकर IIM और IIT में एडमिशन के लिए तैयार करेंगे. उनका मानना है कि सभी बाधाओं के बावजूद अगर वो आईआईएम जैसे प्रतिष्ठ‍ित संस्थान में दाखिला पा सकते हैं तो दूसरे क्यों नहीं.

योगेंद्र के 7 भाई बहन हैं और IIM लखनऊ में एडमिशन से पहले घर चलाने के लिए योगेंद्र गाय चराते थे और गाय से दूध निकालते थे. ऐसा भी कई बार हुआ जब वो बिना खाए ही रात में सो जाते थे.

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योगेंद्र को पुणे स्थ‍ित एक माइक्रोफाइनांस कंपनी में नौकरी मिल गई है. इसके साथ ही अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने गांव में शैक्षिक विकास के लिए एक सोसाइटी का निर्माण किया है, जो एस्से राइटिंग, जनरल नॉलेज आदि पर आधारित प्रतियोगिताएं कराती है.

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योगेंद्र के मुताबिक सोसाइटी में 8वीं और उससे ऊपर की क्लास में पढ़ाई करने वाले छात्रों का जनरल एप्ट‍िट्यूड टेस्ट भी लिया जाएगा.

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दरअसल, इन छोटी-छोटी कोशिशों के जरिये योगेंद्र अपने क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाना चाहते हैं. वो शिक्षा की गुणवत्ता को जमीनी स्तर पर ठीक करना चाहते हैं.


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