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केरल बाढ़: UAE की 700 करोड़ की पेशकश ठुकरा सकता है भारत, मनमोहन की नीति पर चलेगी सरकार!

भीषण बाढ़ की संकट से जूझ रहे केरल की मदद के लिए यूएई ने 700 करोड़ रुपये देने की पेशकश है, लेकिन बताया जा रहा है कि सरकार ने यह आर्थिक मदद लेने से मना कर दिया है. माना जा रहा है कि मोदी सरकार मनमोहन सिंह सरकार की नीति पर चल रही है.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 22 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 6:45 PM IST

केरल में आई बाढ़ से अरबों की संपति का नुकसान हुआ है और इस तबाही में 350 से अधिक जानें भी जा चुकी हैं. हर कोई केरल को इस संकट से उबारने के लिए हरसंभव मदद कर रहा है. इसी क्रम में यूएई ने भी भारत को 700 करोड़ की मदद की पेशकश की है. वैसे आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार ने यूएई की इस पेशकश को लेने से मना कर दिया है.

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दरअसल, आपदा सहायता को लेकर कुछ साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की घोषणा के बाद से भारत ने किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदाओं में दूसरे देश की आर्थिक मदद नहीं ली है.

इसी के तहत सूत्रों के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में कहा है, 'सरकार 2004 से इस नीति के आधार पर चल रही है. तब से किसी भी विदेशी सरकार से कोई सहायता नहीं ली गई है.' अब केरल की बाढ़ त्रासदी में विदेशी मदद की पेशकश को लेकर सूत्र ने रिपोर्ट में संबंधित नीति पर अडिग रहने की बात कही है.

बता दें कि दिसंबर 2004 में जब भारत सुनामी की मार झेल रहा था, तब भारत की आपदा सहायता नीति में ऐतिहासिक बदलाव किया गया था. हालांकि उससे पहले भारत ने विदेशी सरकारों से मदद ली थी. सरकार ने उत्तरकाशी (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल साइक्लोन (2002) और बिहार बाढ़ (जुलाई, 2004) के वक्त भी मदद ग्रहण की थी.

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क्या थी मनमोहन सिंह की नीति?

दिसंबर 2004 में प्रधानमंत्री सिंह ने कहा था, 'हमें लगता है कि हम खुद स्थिति का सामना कर सकते हैं और अगर हमें मदद की जरूरत महसूस होगी तो हम ले लेंगे.' उसके बाद से देश के अन्य राज्य भी यह नीति अपना रहे हैं और अन्य विदेशी सरकारों से कोई मदद नहीं ले रहे.

बता दें कि 2004 की सुनामी में तमिलनाडु के साथ अंडमान निकोबार आदि राज्यों में काफी जन-धन की हानि हुई थी. इसमें 12 हजार लोगों की मौत हुई और 6 लाख स्थानांतरित हुए थे.

ऐसी नीति की वजह से सरकारों ने महसूस किया कि भारत में आपदाओं को संभालने की क्षमता है. वहीं इस नीति का कारण यह भी है कि ऐसे किसी भी एक सरकार से मदद लेने से दूसरे देशों के लिए भी दरवाजे खुल जाते हैं और किसी अन्य देश को मना करना बहुत मुश्किल हो सकता है. हालांकि यह नीति विदेशी सरकारों तक ही सीमित है, क्योंकि इसमें कोई संगठन और निजी व्यक्ति शामिल नहीं है. इसलिए कोई एनजीओ या निजी शख्स इसमें मदद कर सकता है.

भारत ने पहले भी किया है मना

पिछले 14 सालों में भारत ने उत्तराखंड बाढ़, कश्मीर में भूकंप, कश्मीर बाढ़ के दौरान रूस, अमेरिका, जापान से मदद लेने से मना कर दिया था.

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सऊदी अरब, ओमान और यूएई में भारतीय राजदूत रहे तलमीज अहमद ने इस बारे में कहा कि उनकी जानकारी में पहले नकदी एक्सचेंज की पेशकश दोनों ओर से नहीं की गई है. उन्होंने कहा,‘आपदा के समय, धनराशि का दान आमतौर पर विदेश में रहने वाले भारतीय समुदाय से आता है जिसे दूतावास जमा करते है और आरबीआई ड्राफ्ट के रूप में उसे स्वदेश भेजते हैं.’

अहमद ने कहा, ‘पहले भी कुछ देशों ने राहत सामग्री की आपूर्ति की है. सऊदी अरब ने 2001 के भुज भूकंप के बाद इस तरह की सामग्री को तीन विमानों से भेजा था, लेकिन नकदी भेजने का प्रस्ताव शायद ही किसी देश ने पहले दिया हो. उन्होंने कहा,‘मैं नहीं सोचता कि यूएई ने पहले भारत सरकार से विचार-विमर्श किया होगा. इसलिए एक अन्य देश से इतनी बड़ी धनराशि दान के रूप में स्वीकार करने में दिक्कत है.' हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि यूएई की पेशकश बहुत अच्छी और उदारवादी है.

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