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कई बार हम अपनी जिंदगी जीने में इस कदर मशगूल हो जाते हैं कि हम अपना बचपना तक भूल जाते हैं. हम कैसे खिलखिला कर हंसा करते थे...कैसे हमारे पेट में हंसते-हंसते बल पड़ जाया करते थे. कैसे हम अपने दोस्तों और छोटे भाई-बहनों को गुदगुदी किया करते थे.
हम समय बीतने के साथ-साथ बड़े तो होते गए मगर कभी इस बात पर गौर नहीं किया कि आखिर हमें गुदगुदी क्यों होती है, और वह भी शरीर के किन्हीं विशेष हिस्सों मे. आखिर किन वजहों से किसी के पेट पर छूने से गुदगुदी होती है मगर सिर पर छूने से कुछ नहीं होता.
आखिर क्या है गुदगुदी के पीछे का साइंस?
साइंटिस्ट कहते हैं कि हंसते तो हम किसी चुटकुले या मजाक पर भी हैं, मगर गुदगुदी की बात कुछ और होती है.
यहां मामला स्किन और छुअन का है. स्किन के सबसे बाहरी परत को एपिडर्मिस कहते हैं. एपिडर्मिस कई नसों से स्वत: जुड़ा होता है. उकसाने की स्थिति में यह दिमाग के दो हिस्सों से जुड़ती हैं. एक जो छुअन का एनालिसिस करता है और दूसरा जो आनंददायी चीजों का रेगुलेशन करता है.
सामान्य तौर पर देखें तो इंसान को ऐसे जगहों पर गुदगुदी अधिक होती है जो हड्डी से कम-से-कम घिरा होता है (पेट और पैर के तलवे). साइंटिस्ट मानते हैं कि गुदगुदी खुद को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया है. ऐसा करने से शरीर सिकुड़ता है और शरीर कम-से-कम बाहरी संपर्क में आता है.
क्या इंसान खुद को गुदगुदी कर सकता है?
यह एक सामान्य सवाल है जो अक्सर लोगों के जेहन में आता है. हम दूसरों को गुदगुदी करने के बाद खुद पर भी वो सारे ट्रिक इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अफसोस कि हमें वैसा कुछ भी महसूस नहीं होता.
दरअसल, गुदगुदी सरप्राइज का मामला है और एक इंसान खुद को सरप्राइज नहीं कर सकता. हमारा दिमाग इस बात को पहले ही जान जाता है कि हम खुद को गुदगुदाने जा रहे हैं. हम क्या हरकतें करेंगे वगैरह-वगैरह.
अगर आप इसके बावजूद खुद को गुदगुदाने की कोशिश करेंगे तो गुदगुदी के बजाय कुछ और ही होगा. हालांकि अपने ही हाथों में किसी पंख को लेकर स्किन पर फिराने से आप खुद को गुदगुदा सकते हैं. मगर ऐसा मुश्किल से ही होता है कि आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएं.