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'स्कूलों में संस्कृत अनिवार्य करने की जरूरत नहीं'

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान के लिए बनी समिति के अनुसार स्कूलों में अनिवार्य रूप से संस्कृत पढ़ाया जाना जरूरी नहीं है.

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स्नेहा
  • नई दिल्ली,
  • 06 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 3:07 PM IST

संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान के लिए बनी कमेटी का कहना है कि इस भाषा को स्कूलों में अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाए जाने की जरूरत नहीं है.

इस समिति के अध्यक्षता पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालास्वामी कर रहे थे. समिति ने कहा कि तीन भाषा के फॉर्म्यूला के तहत स्कूलों में और परीक्षा बोर्डों में उन स्टूडेंट्स को संस्कृत पढ़ाना चाहिए, जो इसमें रुचि रखते हों. यह समिति मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से गठित की गई थी. इसमें कुल 7 सदस्य थे.

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समिति की सिफारिश:
इस समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि सभी संस्कृत स्कूलों और वैदिक स्कूलों को संदीपनी वेद विद्या प्रतिष्ठान जैसे निश्चित बोर्डों के तहत मान्यता दी जानी चाहिए. गोपाल स्वामी ने कहा, 'हमने सिफारिश की है कि संस्कृत की पढ़ाई के लिए व्याकरण अनुवाद की पद्धति से बचना चाहिए. छात्रों को संस्कृत की पढ़ाई संस्कृत में ही कराई जानी चाहिए, न कि किसी और भाषा में.' इसके अलावा समिति ने सामान्य तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली संस्कृत के शब्दों के लिए अलग से डिक्शनरी बनाने को कहा है.

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