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हर माता-पिता अपने बच्चे को राजधानी के अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाना चाहते हैं, लेकिन प्वॉइंट सिस्टम की माथापच्ची और बदलते गाइडलाइन की उलझन ने अभिभावकों को तनावग्रस्त कर दिया है.
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शिक्षा निदेशालय के नए सर्कुलर से डीडीए की जमीन पर बने प्राइवेट स्कूल तो नाखुश हैं ही साथ ही नेबरहुड का नया फॉर्मूला अभिभावकों को भी रास नहीं आ रहा है. ऐसे में उन अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है जिनके इलाके में एक किलोमीटर के दायरे में अच्छे स्कूल नहीं है. हालात ये है कि अब अभिभावकों को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिले की प्रक्रिया दिल्ली के स्कूलों से आसान लग रही है.
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त्रिलोकपुरी में रहने वाले प्रशांत गुप्ता अपने नन्हें-मुन्नों का दाखिला नर्सरी में कराना चाहते हैं लेकिन राजधानी के स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराना इतना आसान नहीं है. प्रशांत गुप्ता के मुताबिक त्रिलोकपुरी के आस-पास कोई भी अच्छा स्कूल नहीं है, मयूर विहार फेज वन के जिन स्कूलों में वो अपने बच्चे दाखिला कराना चाहते हैं, वो उनके घर से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर है. लेकिन दिल्ली सरकार ने अभिभावकों को राहत पहुंचाने के मकसद से 0-1 किमी के जिस नेबरहुड फॉर्मूले को डीडीए की जमीन पर बने स्कूलों के लिए अनिवार्य किया है उससे प्रशांत अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में दाखिल करा पाएंगे या नहीं इस बात को लेकर वो परेशान हो गए हैं.
हालांकि ऐसे भी अभिभावक हैं जो स्कूल के इर्द-गिर्द रहते हैं और नजदीक के बच्चों को दाखिला देने के अनिवार्यता के फैसले से खुश हैं, लेकिन ऐसे अभिभावक जो स्कूल से थोड़ी दूरी पर रहते हैं उनकी चिंता बढ़ गई है.
प्रीत विहार में रहने वाली निधि खन्ना के मुताबिक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना दिल्ली के नर्सरी स्कूलों में दाखिला लेने से ज्यादा आसान है. समस्या ये है कि सरकार हर साल दाखिले के नियम बदलती है. पिछले साल कुछ और नियम थे, इस साल कुछ और. सरकार को अगर नियम बदलने ही है तो फिर स्कूलों से बातचीत तक 3-4 महीने पहले से ही इसकी तैयारी क्यों नहीं कर लेती. कम से कम दाखिले के दौरान एक स्पष्ट गाइडलाइन हो, जिसे समझना अभिभावकों के लिए आसान हो. हम दो जनवरी से अगल अलग स्कूलों में फॉर्म भर रहे हैं, सबके अलग अलग प्वॉइंट सिस्टम है, अब डीडीए की जमीन वाले स्कूलों के अलग नियम आ गए हैं. क्या हो रहा है कुछ समझ नहीं आ रहा.
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दरअसल ये पहली बार है कि राजधानी के प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी दाखिले के लिए एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन तरह के नियम लागू है. पहली गाइडलाइन निजी जमीन पर बने स्कूलों के लिए जिनमें दाखिले की प्रक्रिया 2 जनवरी से शुरू हो चुकी है. दूसरी, सरकारी जमीन पर बने स्कूलों के लिए नजदीक के बच्चों को अनिवार्य दाखिला देने का नियम, जिसे लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. तीसरी, 25 फीसदी EWS/DG केटेगरी के लिए गाइडलाइन जो कि अभी तक जारी नहीं की गई है. लिहाजा EWS केटेगरी वाले अभिभावक भी गाइडलाइन के अभाव में स्कूल-दर-स्कूल भटक रहे हैं. इनमें ज्यादातर ऐसे अभिभावक हैं जो इस बात से अनजान है कि अभी तक सरकार ने EWS/DG केटेगरी के लिए कोई गाइडलाइन ही नहीं जारी की है. इसलिए वो रोजाना स्कूलों के चक्कर लगा रहे हैं, ताकि दाखिले की रेस में उनका बच्चा पीछे ना रह जाए.
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अभिभावकों की समस्या सिर्फ इस नए फॉर्मूले की नहीं थी, बल्कि नए गाइडलाइन के जारी होने के बाद भी सोमवार को स्कूलों से किसी तरह की जानकारी नहीं मिल रही थी. ऐसे में स्कूलों में दाखिला कब से शुरू होगा, प्रक्रिया ऑनलाइन होगी या ऑफलाइन जैसे कई सवालों ने अभिभावकों को स्कूल के चक्कर लगाने पर मजबूर कर दिया था. दाखिले के लिए बने अलग अलग नियमों से परेशान अभिभावकों दाखिले के इस पेंच के लिए दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. तो वहीं डीडीए की जमीन पर बने स्कूल भी दिल्ली सरकार के नए फॉर्मूले से नाखुश हैं. बता दें कि प्राइवेट स्कूल इसे स्वायत्ता का हनन बताते हुए कानूनी रास्ता अख्तियार करने की तैयारी में हैं