
अगर आप जूता पॉलिश करने को छोटा या निम्न स्तर का काम समझते हैं तो अपनी इस सोच को बदल दें. क्योंकि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. आइडिया बेहतरीन हो तो किसी भी काम के जरिए कामयाबी हासिल करना असंभव नहीं है.
ये कहानी है मुंबई के 'संदीप गजकस' की. जिन्होंने अपनी इंजीनियरिंग में करियर बनाने की राह को छोड़कर वो काम करने का फैसला लिया, जिसे लोग शायद मजबूरी में भी ना करना चाहें. वो काम है – जूता पोलिशिंग और रिपेयरिंग का.
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शुरू से ही संदीप को गंदगी बिल्कुल पसंद नहीं थी. घर, दफ्तर हो या खुद के जूते, उन्हें कुछ भी गंदा बर्दाश्त नहीं था. आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि उनकी इसी सफाई की आदत की वजह से आज वह करोड़पति हैं. उन्होंने जूते की लॉन्ड्रिंग शुरू कर यह साबित कर दिया कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता.
इंजीनियर हैं संदीप
संदीप गजकस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फायरिंग इंजीनियरिंग से इंजीनियरिंग कर चुके थे. वह जॉब के लिए गल्फ जाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन तभी 2001 में अमेरिका पर 9/11 का अटैक हुआ और उन्होंने विदेश जाने का प्लान ड्रॉप कर दिया.
विदेश में नौकरी का प्लान ड्रॉप करने के बाद संदीप ने शू पॉलिश का बिजनेस शुरू करने की ठानी. करीब 12 हजार रुपये खर्च कर उन्होंने बिजनेस शुरू करने की तैयारी की .
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घर वाले नहीं थे खुश
एक इंजीनियर जूता पॉलिशिंग और रिपेयरिंग का काम करे, ये कौनसे माता-पिता को अच्छा लगेगा. संदीप के घरवाले उनके इस काम से बिल्कुल खुश नहीं थे. लेकिन फिर भी उन्होंने लोगों की बातों को अनसुना करके अपने दिल की सुनी. सिर्फ 12 हजार रुपये खर्च कर बिजनेस शुरू किया. उन्होंने बाथरूम को वर्कशॉप बनाकर दोस्तों और रिश्तेदारों के जूते पॉलिश और रिपेयरिंग करने का काम शुरू किया.
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संदीप ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह जूता पॉलिश के बिजनेस को सिर्फ पॉलिश से निकालकर रिपेयरिंग तक ले जाना चाहते थे. ऐसे में उन्होंने काफी लंबे समय तक रिसर्च किया. इस दौरान उन्होंने लाखों रुपये खर्च किए और फेल होते रहे. संदीप ने बताया कि 'मैं पुराने जूतों को एकदम नया बनाने और उन्हें रिपेयर करने के इनोवेटिव तरीके ढूंढ़ रहा था'.
मैंने रिसर्च पर सबसे ज्यादा समय बिताया और उस रिसर्च के बदौलत ही 2003 में अपना और देश की पहली 'द शू लॉन्ड्री' कंपनी शुरुआत की. मैंने सफल होने के लिए पहले फेल होना सीखा और उन तरीकों को खोजा, जो मुझे नहीं करने चाहिए. मुंबई के अंधेरी इलाके में शुरू हुई गजकस की ये कंपनी आज देश के कई शहरों में पहुंच चुकी है.
संदीप आज इसकी फ्रेंचाइजी देते हैं और कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में पहुंच चुका है. शुरुआत में भले ही काफी लोग उनके इस फैसले पर हंसे होंगे लेकिन ये भी सच है कि 'जिस -जिस पर ये जग हंसा है, उसी ने इतिहास रचा है'