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4 साल में टाटा ने छुड़ाया हाथ, जानें कौन हैं साइरस मिस्‍त्री

टाटा सन्स ने साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया है. उन्‍हें 29 दिसंबर 2012 को टाटा का चेयरमैन बनाया गया था. मिस्त्री ने छठे चेयरमैन के तौर पर ग्रुप में कार्यभार संभाला था. जानिए कौन हैं साइरस मिस्‍त्री

साइरस मिस्‍त्री  साइरस मिस्‍त्री
मेधा चावला
  • नई दिल्‍ली,
  • 24 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 6:41 PM IST

मिस्त्री निर्माण क्षेत्र के दिग्गज पल्‍लौंजी मिस्त्री के छोटे बेटे हैं, जिनका परिवार टाटा समूह की सर्वाधिक 18 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखने वाला परिवार है. लंदन बिजनेस स्कूल से प्रबंधन में एमएससी डिग्री धारक मिस्त्री 144 वर्षीय टाटा समूह के छठे अध्यक्ष थे और बिना टाटा उपनाम वाले दूसरे अध्यक्ष थे.

टाटा के चेयरमैन पद से हटाए गए साइरस मिस्त्री, फिलहाल रतन टाटा ने फिर संभाली गद्दी

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कैसे हैं मिस्त्री
साइरस मिस्त्री को जानने वालों का कहना है कि वह सादगी पसंद और मामले की तह तक जाने वाले व्यक्ति हैं. मिस्त्री के चुनाव पर रतन टाटा ने उनकी तेज पारखी नजर और नम्रता की सराहना की थी. मिस्त्री मुंबई विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक हैं. उनके पास लंदन के इंपीरियल कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री और लंदन स्कूल ऑफ बिजनेस से प्रबंधन में परास्नातक की डिग्री है. उनके पास निर्माण से लेकर मनोरंजन, बिजली तथा वित्तीय कारोबार का दो दशकों से अधिक का अनुभव है. उन्हें जानने वालों ने बताया कि वह गोल्फ पसंद करते हैं. वह मुंबई के मालाबार हिल्स क्षेत्र में समुद्र किनारे एक आलीशान भवन में अपने पिता तथा बड़े भाई के साथ रहते हैं. उन्होंने प्रसिद्ध वकील इकबाल चागला की पुत्री रोहिका के साथ विवाह किया है.

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ऐसे की थी शुरुआत
साइरस मिस्त्री 1991 में शपूरजी पल्‍लौंजी एंड कंपनी के बोर्ड में निदेशक के रूप में शामिल हुए थे. तीन सालों बाद उन्हें समूह का प्रबंध निदेशक बना दिया गया था. उनके नेतृत्व में शपूरजी पल्‍लौंजी का निर्माण कारोबार दो करोड़ डॉलर से बढ़कर डेढ़ अरब डॉलर का हो गया था. टाटा सन्‍स में निदेशक के अलावा मिस्त्री टाटा एलक्सी और टाटा पावर में भी निदेशक रहे हैं.

क्‍या रही वजह
सायरस मिस्‍त्री जब टाटा सन्‍स के चेयरमैन बने थे, उस समय कंपनी का कारोबार 100 अरब डॉलर के आसपास था. तब मिस्‍त्री से यह उम्‍मीद जताई जा रही थी कि वे वर्ष 2022 तक इस कारोबार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचा देंगे. लेकिन उनके नेतृत्‍व में टाटा ग्रुप की रफ्तार सुस्‍त हुई और ग्रुप उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ा जैसी अपेक्षाएं उनसे की गई थीं.

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