
श्रीकांत बोला का जब जन्म हुआ था तो उनके मम्मी-पापा को सभी ने एक सलाह दी थी कि इस बच्चे को किसी अनाथालय में जाकर छोड़ आएं क्योंकि यह बच्चा अंधा है. मगर श्रीकांत के पेरेंट्स ने न केवल उन्हें अपने पास रखने का फैसला किया बल्कि उन्हें अच्छी एजुकेशन देने का निश्चय किया.
पेरेंट्स के इस फैसले को सही साबित करते हुए श्रीकांत आज हैदराबाद स्थित 50 करोड़ से ज्यादा रुपये वाली कंपनी के सीईओ हैं. उनकी कंपनी बोलांट इंडस्ट्रीज अशिक्षित और दिव्यांग लोगों को नौकरी देती है. इनकी कंपनी आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक स्थित यूनिटों में पत्तियों और इस्तेमाल किए गए कागजों से ईको-फ्रेंडली पैकेजिंग बनाती है.
रतन टाटा को किया प्रभावित
श्रीकांत ने अपने काम से रतन टाटा को भी प्रभावित कर दिया. उन्होंने श्रीकांत की कंपनी में इंवेस्ट भी किया. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया है कि कितनी राशि इंवेस्ट की गई. इनकी कंपनी के बोर्ड में पीपुल कैपिटल श्रीनि राजू, डा. रेड्डी लैबोरेटरीज के सतीश रेड्डी और रवि मंथा जैसे लोग भी शामिल है.
श्रीकांत के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं रहा है. स्कूल के दिनों में हमेशा उन्हें रिजेक्शन ही मिलता था. इसके बाद उनके पेरेंट्स ने उन्हें स्पेशल चिल्ड्रन के स्कूल में दाखिला दिलाया. वहां वे हमेशा टॉप करते गए.
डॉ कलाम के साथ किया काम
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ उन्होंने 'लीड इंडिया प्रोजेक्ट' में भी काम किया. उन्हें 10वीं में 90 फीसदी अंक हासिल करने के बाद भी साइंस स्ट्रीम में दाखिला लेने के लिए छह महीने तक इंतजार करना पड़ा. 12वीं में इन्होंने ऑडियो क्लासेज की मदद लेकर 98 फीसदी अंक हासिल किए लेकिन समस्या यहीं समाप्त नहीं हुई.
उन्हें 2009 में आईआईटी दाखिले में भी रेजेक्ट होना पड़ा. इसके बाद उन्हें मैसचूसिट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में एडमिशन मिल गया. वहां से पढ़ाई करने के बाद भारत लौटने पर उन्होंने 450 कर्मचारियों के साथ एक कंपनी शुरू की. श्रीकांत कहते हैं 'किसी की सेवा करने का मतलब यह नहीं है कि आप ट्रैफिक लाइट के पास बैठे हुए भिखारी को एक सिक्का दें और आगे बढ़ जाएं. सेवा का मतलब होता है कि आप उसे जिंदगी जीने के मौके उपबल्ध कराएं.