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प्रवासी मजदूर की बिटिया से फ्रांस की शिक्षा मंत्री का सफर कोई हंसी-ठिठोली नहीं...

एक प्रवासी मजदूर की बेटी जो कभी मुफलिसी में जिंदगी गुजारती थी. जिसे 18 की उम्र में किसी देश की आधिकारिक राष्ट्रीयता मिलती है और 37 की उम्र में वह फ्रांस की शिक्षा मंत्री है...

नजत वल्लौद बेल्कासेम नजत वल्लौद बेल्कासेम
स्नेहा
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  • 28 मार्च 2016,
  • अपडेटेड 1:07 PM IST

फ्रांस वैसे तो पूरी दुनिया में एक विकसित देश के तौर पर जाना-माना जाता है, मगर आप सभी इस बात को जान कर दंग रह जाएंगे कि फ्रांस जैसे विकसित देशों में भी किसी महिला मंत्री के अंत: वस्त्रों और लिप्सटिक पर बहस के दौर चल पड़े हैं. फ्रांस की दक्षिणपंथी पार्टियों ने वहां की वर्तमान शिक्षा मंत्री पर ऐसे आरोप लगाए थे कि वे संसद का ध्यान भटकाने और सवालों से बचने के लिए लिप्सटिक और क्लीवेज दिखाने वाली ड्रेस पहन कर आईं थी. ऐसे आरोपों का सामना करने वाली इन मोहतरमा को पूरी दुनिया नजत वल्लौद बेल्कासेम के नाम से जानती है. नजत फ्रांस की सबसे कम उम्र की शिक्षा मंत्री हैं, वे मात्र 37 वर्ष की हैं.

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पिताजी एक प्रवासी मजदूर थे...

नजत अपने सात भाई-बहनों में दूसरे क्रम पर आती हैं. उनकी पैदाइश मोरक्को के ग्रामीण इलाके में हुई थी. उनके माता-पिता बतौर प्रवासी फ्रांस आए थे और इस वजह से उनके पास वोट देने का अधिकार भी नहीं था. साथ ही घर में कोई भी शख्स राजनीतिक झुकाव नहीं रखता था. उन्हें 18 की उम्र में फ्रांस की राष्ट्रीयता मिली और स्कॉलरशिप की मदद से उन्होंने फ्रांस के पॉलिटिकल साइंस संस्थान से शिक्षा ग्रहण की और बतौर ज्यूरिस्ट वहां काम भी किया.

नजत फ्रांस की वर्तमान सरकार का अहम हिस्सा हैं...
फ्रांस में इन दिनों सोशलिस्ट पार्टी की सरकार है और नजत आज उस सरकार में शिक्षा मंत्री का पदभार संभाल रही हैं. वे फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसुआ होलान्दे की खास सहयोगी और फ्रांस के 50 फीसद महिला कैबिनेट का अहम चेहरा भी हैं. इससे पहले वे महिला अधिकार मंत्री थीं. यह सारी जिम्मेदारियां नजत को हमेशा सुर्खियों में रखती हैं क्योंकि उनके पास फ्रांस और मोरक्को की दोहरी राष्ट्रीयता है.

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फ्रांस में शिक्षा मंत्री होने के विशेष दबाव हैं...
यूं तो नजत को उनकी उम्र की वजह से वे लोगों के रडार पर रहती हैं और दूसरी वजह उनका मुस्लिम होने की भी है. विपक्षी पार्टियां तो जैसे उनके हाथ धो कर पीछे पड़ गई हैं. फ्रांस में सोशलिस्ट पार्टियों के दबदबे की वजह से साल 1970 में सिंगल कॉलेज सिस्टम और करीकुलम लागू कर दिया गया था. तो वहीं आज कई दक्षिण-पंथ की ओर झुकाव रखने वाले राजनेता डूअल सिस्टम की ओर वापस चले जाना चाहते हैं.

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