
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात के चारों अहम हिस्सों को पाटा तो राज्य में पार्टी के सांगठनिक ढांचे के लिए संजीवनी की तरह काम किया. ना सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश का संचार हुआ बल्कि उन्हें ये भी उम्मीद बंधी कि अगर जी तोड़ मेहनत की जाए तो वो मुमकिन हो सकता है जो बीते 22 साल से गुजरात में नहीं हुआ. यानी बीजेपी को पटखनी दे कांग्रेस की गुजरात की सत्ता में वापसी. लेकिन क्या ऐसा वाकई हो पाएगा?
राहुल ने नवसर्जन यात्रा से प्रचार की जो जमीन तैयार की अब कांग्रेस उस एडवांटेज को हाथ से जाने नहीं देना चाहती. राहुल ने गुजरात में लगभग 2500 किलोमीटर की दूरी तय कर लोगों से संपर्क साधा.
अब जरा याद कीजिए, इस साल के शुरू में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को. उस चुनाव में राहुल ने किसान यात्रा निकाली थी जिसमें ‘खाट सभाओं’ का आयोजन किया गया था. लेकिन वो सारा बंदोबस्त आउटसोर्सिंग के जरिए प्रशांत किशोर से कराया गया था.
वहीं, अब गुजरात चुनाव में पार्टी किसी आउटसाइडर की जगह खुद के आंतरिक संसाधनों पर ही भरोसा कर रही है. सारी रणनीति किसी भी प्राइवेट कंपनी की मदद लिए बिना बनाई जा रही हैं. नवसर्जन गुजरात के थीम के साथ नवसर्जन यात्रा को कांग्रेस ‘इनहाउस प्रोजेक्ट’’ बता रही है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोडवाडिया ने ‘आज तक’ को बताया, ‘हमने किसी भी प्रोफेशनल की सलाह नहीं ली है और ना ही किसी प्राइवेट कंपनी का सपोर्ट लिया है. राहुल गांधी की नवसर्जन यात्रा की रूपरेखा हमारे नेताओं ने बनाई और हमारे कार्यकर्ताओं ने इसे हकीकत में तब्दील किया.’
कांग्रेस के नवसर्जन गुजरात अभियान और राहुल गांधी की नवसर्जन यात्रा का पार्टी को चुनाव में कितना फायदा मिलेगा ये कहना तो मुश्किल है लेकिन इतना जरूर हुआ कि बीजेपी को अपनी चुनावी रणनीति बदलने पर जरूर मजबूर होना पड़ा. गुजरात पिछले 22 साल से बीजेपी का गढ़ बना हुआ है.
इस दौरान 5 विधानसभा चुनाव हुए और सभी में बीजेपी ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी. ये बात जरूर है कि गुजरात में पिछले तीन विधानसभा चुनाव बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करते हुए जीते. लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. मोदी अब प्रधानमंत्री हैं लेकिन गुजरात उनका गृह राज्य होने की वजह से उनकी खुद की साख का भी सवाल है.
मोदी 18 नवंबर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद प्रचार की कमान अपने हाथ में लेकर 30 से ज्यादा चुनावी रैलियां करने जा रहे हैं.
नवसर्जन यात्रा के दौरान गुजरात को चार जोन में बांट कर राहुल ने हर जोन का 3-3 दिन का दौरा किया. इसके लिए नीली बस में बैठ कर राहुल व्यापारी वर्ग, महिला, युवा, मजदूर, किसान, आदिवासियों को मिले और जगह-जगह नुक्कड़ सभाओं को संबोधित किया. इस दौरान राहुल ने सॉफ्ट हिंदुत्व की लाइन को भी मजबूती से पकड़े रखा और हर उस प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे जो उनकी यात्रा के रास्ते में पड़ा.
यहीं नहीं ढाबों में जाकर उन्होंने गुजराती खाना भी बड़े चाव से खाया. और कुछ हुआ हो या ना हुआ हो, नवसर्जन यात्रा से गुजरात के लोगों से सीधा संपर्क बनाने में जरूर सफल हुए. कुछ हद तक वो अपनी उस छवि को भी तोड़ने में सफल हुए जो सोशल मीडिया पर विरोधियों ने उनको लेकर बना रखी थी.
कांग्रेस के महिला विंग की अध्यक्ष सुष्मिता देव का कहना है कि इस सफल यात्रा ने गुजरात के लोगों से असली राहुल गांधी की पहचान कराई है और यही बात है जो बीजेपी को हैरान-परेशान कर रही है. सुष्मिता देव ने कहा, ‘नवसर्जन यात्रा जहां राहुल गांधी को लोगों के करीब ले गई है वही प्रधानमंत्री मोदी अभी भी लोगों से एक दूर का रिश्ता बनाए हुए हैं, वह रिश्ता जो रेडियो, टी वी और ट्विटर के जरिए बना हुआ है.’
राहुल की नवसर्जन यात्रा के बाद अब कांग्रेस का जोर ‘डोर टू डोर’ कैम्पेन के जरिए मतदाताओं से संपर्क साधने पर है. कांग्रेस के चारों फ्रंटल संगठन- महिला विंग, यूथ कांग्रेस, NSUI और सेवा दल अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं.
गुजरात कांग्रेस के नेता नीतीश व्यास का कहना है कि हमारे फ्रंटल संगठनों के साथ-साथ वरिष्ठ नेताओं, डिस्ट्रिक्ट और ब्लॉक लेवल के नेताओं ने जिस तरह नवसर्जन यात्रा को एकजुट होकर सफल बनाया है, वैसी ही जोर पार्टी को इस चुनाव में जिताने पर है.