Advertisement

गुजरात में अब बीजेपी का 2019 प्लान, सिर्फ चार शहरों से पार नहीं होगी नैया

बीजेपी को इन चुनावों में ये साफ मैसेज मिला है कि वो सिर्फ इन चार शहरों के सहारे 2019 की सियासी जंग फतह नहीं कर सकती. खासकर तक जबकि राज्य की सभी 26 सीटों पर उसने 2014 में विजय हासिल की हो और उसके पास पाने के लिए कुछ नहीं लेकिन गंवाने के लिए पूरा राज्य पड़ा हो.

पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 20 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 4:06 PM IST

गुजरात के चुनावी नतीजों ने बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने प्लान पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. पार्टी राज्य में जीत दर्ज कर सत्ता बचाने में तो कामयाब रही लेकिन उसे मिली 99 सीटें जिस तरह मुख्य रूप से  चार शहरों में सिमटी हैं उसने 2019 के चुनाव के लिए खतरे की घंटी बजा दी है.

Advertisement

बीजेपी को इन चुनावों में ये साफ मैसेज मिला है कि वो सिर्फ इन चार शहरों के सहारे 2019 की सियासी जंग फतह नहीं कर सकती. खासकर तब जब राज्य की सभी 26 सीटों पर उसने 2014 में विजय हासिल की हो और उसके पास पाने के लिए कुछ नहीं लेकिन गंवाने के लिए पूरा राज्य पड़ा हो.  बीजेपी ने 2019 में न सिर्फ अपने ये शहर वोट बचाए रखने हैं बल्कि सौराष्ट्र, दक्षिण गुजरात और ग्रामीण क्षत्रों में खिसके जनाधार को भी वापस लाना है. चुनौती बड़ी है इसलिए पार्टी के नेता और मोदी के करीबी अभी से तैयारी में जुट गए हैं.

गुजरात बीजेपी का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता है. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में इस दुर्ग को बचाने में उसे नाको चने चबाने पड़े हैं. 2019 में ये दुर्ग एक बार फिर सियासी हमले का शिकार बनेगा और तब होने वाली जंग में जीत हासिल करने के लिए पार्टी को अभी से तैयारी करनी होगी.

Advertisement

बता दें कि गुजरात में बीजेपी को जीत दिलाने में  चार शहरों की अहम भूमिका रही है. गुजरात के चार बड़े शहरों की 55 विधानसभा सीटों में से 46 बीजेपी को मिलीं. अहमदाबाद में 21 सीटों में से बीजेपी ने 16 सीटें, सूरत की 16 सीटों में से 15, वडोदरा की 10 सीटों में से 9 और राजकोट की 8 में से 6 सीटें बीजेपी ने जीती हैं. जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 127 सीटें है, जिनमें से कांग्रेस को 71 सीटें तो बीजेपी को 53 और अन्य को तीन सीटें मिलीं.

बीजेपी नेता भी इस बात को दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं कि बीजेपी छठी बार जरूर जीतने में सफल रही है, लेकिन गांवों में बहुत बेहतर नहीं कर सकी है. ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों और किसानों में फैले असंतोष को पार्टी समय रहते बेहतर तरीके से निपटारा कर लेती तो राज्य की सियासी तस्वीर में बीजेपी और भी अच्छे नतीजे ला सकती थी. इसके अलावा जातीय आंदोलनों से भी बीजेपी को कहीं न कहीं नुकसान हुआ है.

सौराष्ट्र के विकास पर फोकस

सौराष्ट्र बीजेपी का परंपरागत क्षेत्र रहा है. बीजेपी 1995 में इसी क्षेत्र के सहारे पहली बार राज्य की सत्ता पर विराजमान हुई थी. 54 सीटों में से 44 सीटें जीतने में वो सफल रही थी, लेकिन इस बार बीजेपी का ये दुर्ग दरका है. कांग्रेस ने सेंधमारी करते हुए 29 सीटें जीतीं तो बीजेपी को 25 सीटें मिलीं. ऐसे में बीजेपी के आला नेता सौराष्ट्र के लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए रणनीति बना रहे हैं. इसके जरिए किसानों की समस्याओं का  निदान किया जाएगा. इंडस्ट्री के साथ-साथ कृषि नीतियों पर भी बीजेपी सरकार मुख्य फोकस करेगी.लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा किया था. मोदी सरकार को अब इस दिशा में और जोरशोर से प्रयास करने होंगे.

Advertisement

जातीय संतुलन को साधना

गुजरात चुनाव जीतने में बीजेपी कामयाब रही है, लेकिन उसके जातीय समीकरण में सेंध लगी है. बीजेपी जातीय समीकरण साधने के लिए अपने परंपरागत वोटबैंक पाटीदार को वापस लाने और ओबीसी को एकजुट बनाए रखने के दिशा में रणनीति बना रही है. बीजेपी की नई सरकार और पार्टी गांवों में फैले असंतोष का निपटारा करने के साथ-साथ अलग-अलग समुदायों तक पहुंच बनाने की दिशा में काम करेगी. सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात में खुद हालात का जायजा लेने का फैसला किया है, ताकि गवर्नेंस को उनके सीएम के कार्यकाल जैसा सख्त और असरदार बनाया जा सके.

नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदम से बचना

गुजरात में बीजेपी को छठी बार सत्ता के सिंहासन पर बैठाने में शहरी मतदाओं की अहम भूमिका रही है. व्यापारी बीजेपी का कोर वोटबैंक माने जाते हैं. उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी का कड़वा घूंट पीने के बाद भी बीजेपी के लिए जीत का आधार रखा है. ऐसे में बीजेपी अब बचे हुए कार्यकाल में इस तरह के कठोर कदम उठाने से बचते हुए नजर आएगी.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement