
गुजरात की सियासी बाजी एक बार फिर बीजेपी के नाम रही. राज्य की सियासी रणभूमि में बीजेपी चुनाव में उतरी तो विजय रूपाणी का चेहरा सबसे आगे था, लेकिन चुनावी नतीजों ने उन्हें पीछे कर दिया है. बीजेपी भले ही जीत का परचम फहराकर छठवीं बार सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने जा रही है, लेकिन पिछले 22 सालों में वो पहली बार 100 सीट का आंकड़ा पार करने में असफल रही है. इसीलिए बीजेपी रूपाणी के विकल्प के तौर पर मुख्यमंत्री के चेहरे की तलाश कर रही है और रूपाणी कुछ खुलकर नहीं कर पा रहे हैं.
बता दें कि गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 99, कांग्रेस गठबंधन को 80 और 3 अन्य के खाते में गई हैं. इस बार के चुनाव नतीजों ने बीजेपी की जीत को फीका कर दिया है. बीजेपी की जीत बेहद दमदार होती तो शायद रूपाणी को दोबारा सीएम का टिकट मिल जाता. लेकिन अब उनकी डगर कठिन दिख रही है और सीएम की रेस में कई चेहरे दिखने लगे हैं. इनमें नितिन पटेल, स्मृति ईरानी, पुरुषोत्तम रूपाला, मनसुख भाई मंडविया, आरसी फलदु और वजूभाई वाला शामिल हैं. बीजेपी के इस अभेद्य दुर्ग के सिंहासन पर कौन बैठेगा, ये पांच फैक्टर तय करेंगे.
2019 लोकसभा चुनौती
बीजेपी को अपने सबसे मजबूत गढ़ गुजरात को बचाने में नाको चने चबाने पड़े हैं. बीजेपी ने छठवीं बार जीत हासिल की लेकिन पहले से 16 सीटें कम हुई हैं. बीजेपी के कर्ताधर्ता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार गुजरात में किसी ऐसे व्यक्ति को बिठाएंगे जिसमें संगठन को मजबूत करने का माद्दा होगा और जो 2019 के लोकसभा चुनाव में पिछले रिकॉर्ड को दोहराना का माद्दा रखता हो. पिछली बार बीजेपी ने राज्य की सभी 26 लोकसभा सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ग्राफ और सीटें बढ़ी हैं. बीजेपी उससे बेचैन है. ऐसे में बीजेपी आलाकमान सूबे में ऐसे शख्स के हाथों सत्ता की चाबी सौंपना चाहती है, जो बीजेपी के अभेद्य दुर्ग को बरकरार रख सके.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अब आगामी चुनावों में गुजरात के लिए अधिक समय नहीं निकाल सकेंगे. ऐसे में पार्टी राज्य की सत्ता के सिंहासन हाथों में देना चाहती है, जो मजबूत नेतृत्व दे सके. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात की सत्ता जिन हाथों में सौंपी गई वो मजबूत नेतृत्व नहीं दे सके हैं. ऐसे में बीजेपी अपने अभेद्य दुर्ग में ऐसे चेहरे की तलाश कर रही है, जो पार्टी की बादशाहत को न सिर्फ बरकरार रखे, बल्कि आगे भी बढ़ा सके.
जातीय समीकरण
गुजरात चुनाव जीतने में बीजेपी कामयाब रही है, लेकिन उसके जातीय समीकरण में सेंध लगी है. जातीय समीकरण साधने के लिए बीजेपी अपने पुराने फैसले में बदलाव कर सकती है. सूबे की सत्ता की बागडोर ऐसे शख्स के हाथों में सौंपना चाहती है, जो बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक पाटीदार और ओबीसी को एकजुट बनाए रख सके. ऐसे में बीजेपी के लिए ओबीसी के चेहरे के तौर पर वजूभाई वाला जबकि पाटीदार के रूप में मनसुख भाई मंडविया दो प्रमुख चेहरे हैं.
बीजेपी के सामने ऐसे चेहरे की तलाश है, जो गुजरात के सभी क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाकर रख सके. बीजेपी ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी सीटों ज्यादा जीतने में सफल रही है. सौराष्ट्र से लेकर दक्षिण गुजरात और ग्रामीण सीटों पर कांग्रेस ने बेहतर किया है. ऐसे में बीजेपी सूबे की कमान ऐसे हाथों में सौंपना चाहेगी, जो शहरी और ग्रामीण दोनों के साथ-साथ सौराष्ट्र और बाकी के क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाकर चल सके.
हिंदुत्व की प्रयोगशाला को बरकरार रखना
गुजरात को बीजेपी ने हिंदुत्व की प्रयोगशाला के तौर पर स्थापित किया और वो पिछले दो दशक से सत्ता के सिंहासन पर बरकरार है. कांग्रेस ने बीजेपी के दुर्ग को भेदने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की राह अपनाई है. कांग्रेस को इसका बड़ा फायदा भी मिला है. ऐसे में बीजेपी के सामने अपने इस दुर्ग को बचाए रखने के लिए हिंदुत्व ब्रांड वाले नेतृत्व की जरूरत होगी. ऐसे में बीजेपी-संघ के आंगन से निकले शख्स के हाथों में सत्ता को सौंपा जा सकता है.