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मल्लिकार्जुन खड़गेः बेटे के साथ कांग्रेस को भी जिताने का जिम्मा

मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार किए जाते हैं. कर्नाटक की राजनीति में जमीनी नेता के तौर पर उनका नाम आता है. 2013 में मल्लिकार्जुन खड़गे सीएम की रेस में भी थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें राज्य की कमान सौंपने के बजाय राष्ट्रीय राजनीति की जिम्मेदारी सौंपी थी.

मल्लिकार्जुन खड़गे मल्लिकार्जुन खड़गे
कुबूल अहमद/भारत सिंह
  • गुलबर्गा,
  • 15 मई 2018,
  • अपडेटेड 7:39 AM IST

मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार किए जाते हैं. कर्नाटक की राजनीति में जमीनी नेता के तौर पर उनका नाम आता है. 2013 में मल्लिकार्जुन खड़गे सीएम की रेस में भी थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें राज्य की कमान सौंपने के बजाय राष्ट्रीय राजनीति की जिम्मेदारी सौंपी थी.

खड़गे पार्टी का दलित चेहरा हैं. कर्नाटक में सबसे बड़ी आबादी दलित मतदाताओं की है. वह भले ही चुनावी मैदान में नहीं है, लेकिन पार्टी की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है.

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मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म आजादी से पांच साल पहले 21 जुलाई 1942 को बिदर जिले में हुआ था. उनकी पढ़ाई लिखाई गुलबर्गा में हुई और उन्होंने वकालत की डिग्री हासिल की. उन्होंने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखा और संघर्ष करके एक ऊंचा मुकाम हासिल किया है.

1969 में कांग्रेस में शामिल हुए फिर उन्होंने पलटकर नहीं देखा. पहले गुलबर्गा के कांग्रेस शहर अध्यक्ष बने. इसके बाद 1972 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद 2008 तक लगातार वह 9 बार लगातार विधायक चुने जाते रहे. इसके बाद खड़गे 2009 में गुलबर्गा लोकसभा सीट से संसदीय चुनाव में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे.

यूपीए सरकार में वे रेल मंत्री, श्रम और रोजगार मंत्री का कार्यभार संभाल चुके हैं . मौजूदा समय में वह गुलबर्गा से दूसरी बार सांसद हैं. इतना ही नहीं लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल के नेता भी हैं. खड़गे स्वच्छ छवि वाले नेता माने जाते हैं.

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वह कर्नाटक की राजनीति में लंबा अनुभव रखने वाले नेता है. विधायक के साथ-साथ देवराज उर्स सरकार में उन्हें ग्रामीण विकास और पंचायत राज राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था. इसके बाद वीरप्पा मोहली के नेतृत्व वाली सरकार में भी वे कद्दावर मंत्री थे.

कर्नाटक में खड़गे की राजनीतिक विरासत उनके बेटे प्रियांक खड़गे संभाल रहे हैं. 2013 में वह पहली बार विधायक बने और सिद्धारमैया सरकार में मंत्री का कार्यभार संभाला. एक बार फिर से वे मैदान में हैं. ऐसे में बेटे को जिताने के साथ-साथ कांग्रेस को भी जिताने का जिम्मा भी उनके कंधों पर है.

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