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राम विलास पासवान ने ली मंत्री पद की शपथ, बिना चुनाव लड़े कैबिनेट में शामिल

राष्ट्रपति भवन परिसर में गुरुवार को राम विलास पासवान ने 17वीं लोकसभा के तहत बनी मोदी सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री शपथ ली. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) प्रमुख राम विलास पासवान बिहार की राजनीति के सबसे प्रमुख दलित चेहरे हैं.

राम विलास पासवान(फोटो-PTI) राम विलास पासवान(फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 मई 2019,
  • अपडेटेड 10:02 PM IST

राष्ट्रपति भवन परिसर में गुरुवार को राम विलास पासवान ने 17वीं लोकसभा के तहत बनी मोदी सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री शपथ ली.  पासवान पिछले 32 वर्षों में 11 चुनाव लड़ चुके हैं और उनमें से नौ जीत चुके हैं. लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और संसद में पहुंचने के लिए राज्यसभा का रास्ता लेंगे.

लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) प्रमुख राम विलास पासवान बिहार की राजनीति के सबसे प्रमुख दलित चेहरे हैं. इस बार अहम बात यह है कि लंबे अंतराल के बाद वे फिर से नीतीश कुमार के साथ खड़े हैं.

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साल 1977 में देश का माहौल बदल चुका था और कांग्रेस की आंधी लगभग समाप्त सी हो चुकी थी. कारण कांग्रेस और इंदिरा गांधी की ओर से घोषित आपातकाल रहा. इसका असर हाजीपुर चुनाव पर भी दिखा और कांग्रेस की करारी हार हुई. जनता पार्टी के टिकट पर रामविलास पासवान पहली बार यहां से संसद चुने गए.

महज 3 साल बाद1980 में  देश को फिर संसदीय चुनाव का मुंह देखना पड़ा. आपातकाल के विरोध के नाम पर जनता पार्टी ने कांग्रेस को हराया जरूर लेकिन उसकी स्थिति मजबूत नहीं रही. विरोधी लहर के बावजूद हाजीपुर सीट बचाने में रामविलास पासवान कामयाब रहे और उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर दोबारा चुनाव जीता.

31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी.  कांग्रेस के लिए यह सहानुभूति का बड़ा अवसर लेकर आया और पार्टी ने देश में कई सीटें झटकीं. हाजीपुर में भी कांग्रेस के राम रतन राम चुनाव जीत कर संसद पहुंचे. कांग्रेस 1989 में हालांकि यहां अपना जलवा बरकरार न रख सकी और 89 के 9वीं लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान फिर सांसद चुन लिए गए. तब उनकी पार्टी जनता पार्टी न होकर जनता दल हो चुकी थी.

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1991 के आम चुनाव में राम विलास पासवान की जगह जनता दल ने दलितों के चिरपरिचित नेता राम सुंदर दास को उम्मीदवार बनाया और उन्होंने बंपर जीत दर्ज की. इस साल के 10वीं लोकसभा चुनाव मध्यावधि थे क्योंकि पिछली लोकसभा को सरकार के गठन के सिर्फ 16 महीने बाद भंग कर दिया गया था.

1996 में राम सुंदर दास की जगह रामविलास पासवान जनता दल के टिकट पर फिर सांसद चुने गए. यह उनकी चौथी जीत थी. हालांकि इस साल संसद में त्रिशंकु सरकार बनी और 2 साल तक घोर राजनीतिक अस्थिरता रही जिसमें 3 प्रधानमंत्रियों ने कार्यकाल संभाला.

साल 1998 में जनता दल के उम्मीदवार रहे रामविलास पासवान फिर सांसद चुने गए. यह उनकी पांचवीं जीत थी. मई 1996 के आम चुनावों से 18 महीनों बाद ही संयुक्त मोर्चा की दूसरी सरकार 28 नवंबर, 1997 को गिर गई थी. इसके बाद चुनाव हुए जिसमें पासवान हाजीपुर से जीत कर संसद पहुंचे.

1999-98 की केंद्र सरकार मात्र एक साल चली और 99 में फिर चुनाव हुए. 17 अप्रैल 1999 को वाजपेयी ने लोकसभा में विश्वास मत खो दिया और उनकी गठबंधन सरकार ने इस्तीफा दे दिया. 99 में फिर चुनाव हुए और रामविलास पासवान जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर उम्मीदवार बने. उन्होंने यहां से बंपर जीत दर्ज की.

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2004 में भी रामविलास पासवान चुनाव जीत गए. उनकी पार्टी  जेडीयू थी. यह 14वीं लोकसभा थी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में बीजेपी की एनडीए सरकार ने 2004 में 5 साल पूरे किए और 20 अप्रैल से 10 मई 2004 के बीच 4 चरणों के चुनाव हुए.

2009 में जेडीयू ने राम सुंदर दास को टिकट दिया और उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की. 1977 के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब रामविलास पासवान चुनाव हारे. इस साल कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए गठबंधन ने केंद्र में सरकार बनाया.

Hajipur Lok Sabha Chunav Result 2019: लोजपा के उम्मीदवार पशुपति कुमार पारस जीते

2014 में रामविलास पासवान हाजीपुर से फिर सांसद चुने गए. पासवान 8वीं बार लोकसभा के सांसद चुने गए. तत्कालीन सरकार में रामविलास के पास उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय था. हालांकि 2019 के आम चुनाव में उन्होंने चुनाव न लड़ने का फैसला किया. 1977 में बिहार के हाजीपुर संसदीय सीट से चुनाव जीते थे. उसके बाद 2019 यह पहला अवसर था, जब उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा. लेकिन अपनी परंपरागत सीट हाजीपुर से अपने भाई पशुपति कुमार पारस को चुनाव लड़वाया और पशुपति ने जीत भी दर्ज की. जबकि राम विलास के बेटे चिराग पासवान इस बार जमुई लोकसभा सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

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