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पिता आज़म खां ने बेटे के लिए झोंकी ताकत, पानी की तरह पैसा बहाने का आरोप

आजम खां ने अपने बेटे को चुनावी समर में उतारा है और उसका राजनीतिक करियर संवारने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.

अपने बेटे अब्दुल्ला आजम के साथ आजम खां अपने बेटे अब्दुल्ला आजम के साथ आजम खां
जावेद अख़्तर
  • लखनऊ,
  • 15 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 12:48 PM IST

समाजवादी पार्टी ने 2012 में जब यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई तो पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाकर उनका राजनीतिक करियर बनाने का काम किया. हालांकि 2017 आते-आते अखिलेश यादव ने पिता की पार्टी पर ही अपना कब्जा कर लिया. वहीं 2017 विधानसभा का चुनाव आजम खां के लिए खास है. इस बार आजम खां ने अपने बेटे को चुनावी समर में उतारा है और उसका राजनीतिक करियर संवारने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.

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दरअसल आजम खां के छोटे बेटे अब्दुल्ला आजम पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. अपने पहले मैच में ही उनका मुकाबला लगातार तीन बार के चैंपियन से है. यही वजह है कि राजनीतिक विश्लेषक ऐसा कह रहे हैं कि आजम खां ने पूरे चुनाव में सबसे ज्यादा वक्त अपने बेटे की सीट पर दिया. इतना ही नहीं स्वार विधानसभा क्षेत्र में आजम खां ने जमकर प्रचार भी किया.

आजम की तैयारी सिर्फ चुनाव प्रचार तक सीमित नहीं रही. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आजम खां ने स्वार-टांडा क्षेत्र के विकास के लिए बंपर पैकेज भी दिया. रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि आजम खां ने अपने बेटे की विधानसभा के विकास के लिए 150 करोड़ से ज्यादा का फंड प्रस्तावित किया. इतना ही नहीं महज 27 किलोमीटर की सड़क पर 67 करोड़ रुपए खर्च किया गया. साथ ही आजम खां की तरफ से स्कूल, अस्पताल और स्टेडियम बनाने जैसे लुभावने वादे भी किए गए.

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रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया कि आजम खां ने राज्य के शहरी विकास मंत्री रहते हुए ये पैसा जारी किया. खास बात ये है कि इस पूरी विधानसभा की आबादी दो लाख के आसपास है. ऐसे में स्वार-टांडा विधानसभा में आजम खां की इस खास महरबानी को भी विरोधी मुद्दा बना रहे हैं.

इस सीट पर आजम खां की इतनी मेहनत की बड़ी वजह यहां से बीएसपी उम्मीदवार नवाब काजिम अली खां उर्फ नावेद मियां हैं. नावेद मियां लगातार तीन बार से विधायक हैं और कुल चार विधायक बन चुके हैं. नवाब परिवार से आने वाले नावेद मियां की इलाके में अच्छी पकड़ मानी जाती है. ऐसे में नावेद मियां की परंपरागत सीट पर अपने बेटे की राजनीतिक पारी की शुरुआत करना भी आजम खां के लिए आसान नहीं रहा. यही वजह है कि ये सीट जीतने के लिए आजम खां ने पूरा दमखम लगा दिया है.

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