
यूपी में बीजेपी के अब कुछ ही कैंडिडेट घोषित होने बाकी हैं, ऐसे में यह साफ हो गया है कि पार्टी गैर यादव ओबीसी जातियों को तरजीह दे रही है. पार्टी ने गैर यादव ओबीसी वर्ग से करीब 35 फीसदी टिकट दिए हैं. पार्टी द्वारा अब तक घोषित 370 कैंडिडेट में से साफतौर से 130 गैर यादव ओबीसी वर्ग से दिख रहे हैं.
हालांकि बीजेपी ने अपने कैंडिडेट के जाति की जानकारी नहीं दी है. यही नहीं बाकी जिन 33 सीटों का ऐलान पार्टी को अभी करना है, उसका बड़ा हिस्सा अपना दल और भारतीय समाज पार्टी को मिल सकता है, जो कि पिछड़ी जातियों कुर्मी और राजभर के मुख्य समर्थन वाली पार्टियां हैं.
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार बीजेपी ने इस बार बिहार की गलती से सीख ली है और उसने यादव समुदाय से एक दर्जन से भी कम कैंडिडेट खड़े किए हैं. यादवों को समाजवादी पार्टी का कोर वोटर माना जाता है.
असल में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपने कुल 160 कैंडिडेट में से 22 कैंडिडेट यादव जाति के उतारे थे, जबकि यह माना जाता है कि इस समुदाय के लोग परंपरागत तौर पर राष्ट्रीय जनता दल को वोट देते हैं. यूपी में अखिलेश के समाजवादी पार्टी के मजबूत नेता के तौर पर उभरने के बाद अब बीजेपी टिकट वितरण में यादव समुदाय को बहुत तवज्जो नहीं देना चाहती.
ओबीसी में शामिल अन्य जातियों की बात करें तो बीजेपी की पसंद कोइरी (मौर्य, कुशवाहा, सैनी सरनेम वाले), कुर्मी (चौधरी, वर्मा सरनेम वाले), लोध-राजपूत (सिंह, लोधी, राजपूत सरनेम वाले), निषाद (बिंद, कश्यप, निषाद सरनेम वाले) और जाट जातियां रही हैं. इनके अलावा बीजेपी ने राजभर, बघेल और नोनिया जाति के लोगों को भी लुभाने की कोशिश की है. अभी तक बीजेपी ने एक भी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट नहीं दिया है.