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यूपी चुनावों में महागठबंधन की डोर सपा ने कांग्रेस के अनुभवी हाथों में थमा दी है. दिल्ली में कांग्रेस और आरएलडी के नेताओं के बीच अति महत्वपूर्ण बैठक चल रही है. माना जा रहा है कि बैठक का विषय यूपी विधानसभा चुनावों में महागठबंधन और सीटों का बंटवारा ही है.
इससे पहले गठबंधन पर सपा ने अपना पक्ष साफ करते हुए कहा था कि हम केवल कांग्रेस के साथ गठबंधन करेंगे. ताजा घटनाक्रम के बाद लग रहा है कि कांग्रेस बिहार की तरह ही यूपी में भी महागठबंधन को लेकर चलने का प्रयास कर रही है. हालांकि समाजवादी पार्टी को डर है कि अगर आरएलडी गठबंधन में आती है तो उसका मुस्लिम वोट छिटक सकता है.
किरणमय नंदा ने की थी कांग्रेस से गठबंधन की बात
सपा के वरिष्ठ नेता किरनमय नंदा ने आजतक से बातचीत के दौरान कहा था कि गठबंधन की खातिर सिर्फ कांग्रेस से बातचीत चल रही है. नंदा ने कहा था, 'आरएलडी से कोई बात नहीं हो रही है. आरजेडी, ममता और जेडीयू केवल सपा को सपोर्ट करेंगे और चुनाव प्रचार में भाग लेंगे हम इनके साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे. हम सिर्फ 2017 को ध्यान में रख चुनाव नहीं लड़ रहे हैं हमारी नजर 2019 के चुनावों पर भी है. कांग्रेस के साथ सीटों का बंटवारा 2012 के चुनाव परिणाम के आधार पर होगा.'
सीटों पर फंसेगा महागठबंधन का पेच
यूपी में अगर महागठबंधन हुआ तो असली पेच सीटों के बंटवारे पर फंसेगा. सपा पहले ही साफ कर चुकी है कि वह 300 सीटें अपने पास रखेगी. ऐसे में कांग्रेस को अपने हिस्से से ही सीटें अन्य घटक दलों को देनी होंगी. आपको बता दें कि कांग्रेस ने अपने लिए 100 सीटें मांगी थी. अब देखना होगा कि ताजा घटनाक्रम ने किसे कितनी सीटें मिलती हैं.
चुनाव-दर-चुनाव कम होता गया आरएलडी का जादू
आपको बता दें कि आरएलडी की पकड़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फिलवक्त निम्न स्तर पर है. 2002 के विधानसभा चुनावों में आरएलडी ने 38 उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से 14 को जीत मिली थी जबकि 12 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी.
2007 के चुनावों में मिली करारी हार से सीख ले आरएलडी ने 2012 के चुनावों में महज 46 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे. इस बार भी परिणाम आरएलडी के उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा और उसे सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा. चुनावों में उसके 20 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई. 2012 के चुनावों में आरएलडी का वोट प्रतिशत घटकर 2.33% ही रह गया.