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मुलायम के 'वफादार' पुत्र-मोह में 'बागी' होने की राह पर, घर पर पहुंचे 'पराए'

कांग्रेस से हाल ही में सपा में वापस आए और राज्यसभा सांसद बेनी प्रसाद वर्मा बेटे के टिकट कटने से दुखी हैं. शनिवार को अखिलेश और मुलायम ने राकेश की नाराजगी को देखते हुए उनके पिता बेनी प्रसाद वर्मा से सुलह की कोशिश भी की थी लेकिन बात नहीं बनी.

मुलायम सिंह यादव मुलायम सिंह यादव
संदीप कुमार सिंह
  • लखनऊ,
  • 23 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 8:52 AM IST

मुलायम और शिवपाल के खास रहे अंबिका चौधरी के बाद अब ऐसा लग रहा है कि मुलायम गुट में एक वरिष्ठ नेता और बागी हो सकता है. ताजा हालात इस बात की पुष्टि करते हैं कि बेनी प्रसाद वर्मा अपने बेटे राकेश वर्मा का टिकट काटे जाने से परेशान हैं. बताया जा रहा है कि राकेश वर्मा सोमवार को बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं. उन्होंने सपा की सदस्यता से इस्तीफा भी दे दिया है. बीजेपी उन्हें बाराबंकी जिले की रामनगर सीट से टिकट भी दे सकती है. आपको बता दें कि शिवपाल यादव द्वारा जारी की गई सपा उम्मीदवारों की लिस्ट में राकेश वर्मा को रामनगर सीट से टिकट दिया गया था लेकिन अखिलेश ने अपने चहेते और मौजूदा मंत्री अरविन्द सिंह गोप को ही तरजीह दी.

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फिर बिगड़े बेनी के बोल
कांग्रेस छोड़ सपा में वापस आए बेनी प्रसाद वर्मा के बोल एक बार फिर बागी हो गए हैं. रविवार शाम उन्होंने राकेश के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि, "अगर रावण को मारने के लिए राम का सहारा ले रहे हैं राकेश तो अच्छी बात है." जब बेनी से यह पूछा गया कि रावण कौन है तो उन्होंने सवाल टाल दिया. आपको बता दें कि बेनी जब कांग्रेस थे तब लोकसभा चुनावों के वक्त उन्होंने मुलायम सिंह यादव के ऊपर कई शब्दबाण चलाए थे.

हुई थी सुलह की कोशिश
कांग्रेस से हाल ही में सपा में वापस आए और राज्यसभा सांसद बेनी प्रसाद वर्मा बेटे के टिकट कटने से दुखी हैं. शनिवार को अखिलेश और मुलायम ने राकेश की नाराजगी को देखते हुए उनके पिता बेनी प्रसाद वर्मा से सुलह की कोशिश भी की थी लेकिन बात नहीं बनी. दरअसल, अखिलेश राकेश को बहराइच जिले की कैसरगंज सीट से उम्मीदवार बना चुके हैं लेकिन, बेनी रामनगर सीट के लिए ही अड़े रहे.

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बीजेपी नेताओं के साथ राकेश ने की मुलाकात
राकेश वर्मा ने पिछले दिनों अपने समर्थकों के अलावा कई बीजेपी नेताओं से भी मुलाकात की है. राकेश वर्मा ने रामनगर विधानसभा क्षेत्र के अपने समर्थकों से मुलाकात कर उन्‍हें आश्वस्त किया है कि वे हरहाल में रामनगर से चुनाव लड़ेंगे.

बेनी से मिले बीजेपी नेता
बीजेपी के पूर्व एमएलसी हरगोविंद सिंह और पार्टी के कई पदाधिकारी बेनी प्रसाद वर्मा से मिलने रविवार को उनके घर गए थे. जहां दोनों के बीच विधानसभा चुनावों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कुछ बात हुई.

पिछली बार भी राकेश की खातिर ही छोड़ी थी पार्टी
गौरतलब है कि बेनी प्रसाद वर्मा अपने बेटे के लिए साल 2007 में भी टिकट चाहते थे. लेकिन अमर सिंह की वजह से बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा को टिकट नहीं मिल पाया था. इसी वजह से नाराज बेनी प्रसाद वर्मा ने समाजवादी पार्टी छोड़ दी और समाजवादी क्रांति दल बनाया. इसके बाद साल 2008 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे. अब पुत्र मोह में बेनी एक बार फिर बागी हो सकते हैं.

कांग्रेस में नहीं चला बेनी का जादू
साल 2008 में बेनी कांग्रेस में शामिल हुए. 2009 में उन्होंने अपनी पुरानी सीट कैसरगंज की जगह 15 फीसदी कुर्मी मतदाता वाले संसदीय क्षेत्र गोंडा से चुनाव लड़ा. चुनाव में वोटों का गणित बेनी के पक्ष में फिट बैठा और वे चुनाव जीत गए. 2012 के विधासभा चुनाव में पिछड़े वर्ग के वोट बैंक को अपनी ओर खींचने के लिए कांग्रेस ने बेनी को ही आगे किया. इसी रणनीति के तहत 2011 में पहले बेनी को इस्पात मंत्रालय में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया और अगले ही साल 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले उनका कद बढ़ाकर उन्हें इस्पात मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बना दिया गया. बेनी के रूप में कांग्रेस का पिछड़ा कार्ड विधानसभा चुनाव में फ्लॉप साबित हुआ. गोंडा, बाराबंकी जैसे कुर्मी बाहुल्य और बेनी की पकड़ वाले इलाकों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली.

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पिता-पुत्र दोनों रह चुके हैं मंत्री
बेनी प्रसाद वर्मा कई साल तक यूपी की सपा सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे हैं. देवेगौड़ा सरकार के दौरान उन्होंने 1996 से 1998 तक केंद्र में संचार मंत्री का पद संभाला. 1998, 1999, 2004 और 2009 में गोंडा से सांसद चुने गए, जबकि यूपीए सरकार के दौरान 12 जुलाई 2011 को इस्पात मंत्री भी बनाए गए. पिछले लोकसभा चुनाव में हारने के बाद बेनी वर्मा कांग्रेस में हाशिए पर थे. 13 मई 2016 को बेनी ने मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, आजम खान और शिवपाल सिंह की मौजूदगी में 'घर वापसी' की थी. उस वक्त बेनी ने कहा था, "पिछले दो साल से कांग्रेस पार्टी में मेरा दम घुट रहा था." सपा में आते ही वे राज्यसभा पहुंच गए. जबकि राकेश वर्मा पूर्व कारागार मंत्री रह चुके हैं.

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