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अखिलेश का बड़ा राजनीतिक दांव, लड़ सकते हैं बुंदेलखंड से चुनाव !

जिन दो सीटों के नाम सामने आएं हैं उन सीटों पर कभी समाजवादी पार्टी नहीं जीती है साथ ही सपा बुंदेलखंड में कमजोर मानी जाती है. गौरतलब है कि बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश का सबसे पिछड़ा और गरीब इलाका माना जाता है, बुंदेलखंड में किसानों की आत्महत्या बढ़े दर्जे पर होती है.

तो बुंदेलखंड से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश ! तो बुंदेलखंड से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश !
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 27 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:32 PM IST

उत्तर प्रदेश के चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी लगातार बढ़ रही है. सोमवार को दिनभर अखिलेश यादव के 403 उम्मीदवारों की लिस्ट पर चर्चा चलती रही. लिस्ट में अपना नाम खोजने को पार्टी के विधायक और मंत्री बेचैन दिखे, जो कभी मुलायम सिंह के घर के बाहर दिखे तो कभी अखिलेश के प्रोग्राम में टकटकी लगाए मौजूद रहे. इन खबरों के बीच एक चर्चा सरेआम रही कि मुख्यमंत्री ने इसबार चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा भी इस लिस्ट में बता दी है, सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव ने बुंदेलखंड की दो सीटों से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है. सूत्रों की माने तो बुन्देलखंड के महोबा की चरखारी और ललितपुर की बबीना सीट अखिलेश यादव ने अपने लिए रखी है. हालांकि अखिलेश यादव पहले ही सार्वजनिक तौर से बुंदेलखंड से भी चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा जता चुके है.

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अखिलेश ने क्यों चुना बुंदेलखंड ?
जिन दो सीटों के नाम सामने आएं हैं उन सीटों पर कभी समाजवादी पार्टी नहीं जीती है, साथ ही सपा बुंदेलखंड में कमजोर मानी जाती है. गौरतलब है कि बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश का सबसे पिछड़ा और गरीब इलाका माना जाता है, बुंदेलखंड में किसानों की आत्महत्या बढ़े दर्जे पर होती है. अखिलेश यहीं से अपनी नई पहचान गढ़ना चाहते है जो उन्हें पिता और परिवार के आभामंडल से भी बाहर करेगा.

अलग पहचान बनाने की कोशिश

इस लिस्ट में अपनी सीट के आगे बुंदेलखंड लिखने का एक बड़ा मकसद है, अखिलेश यादव न सिर्फ अपने पिता के राजनितिक प्रभामंडल से बाहर आने को छटपटा रहे हैं बल्कि चाहते है कि इटावा, मैनपुरी और सैफई के टैग से बाहर आकर अपनी अलग पहचान बना लें. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अभी तक विधानपरिषद में है लेकिन विधायक बनकर उस इलाके से प्रतिनिधित्व करना चाहते है जहां समाजवादी पार्टी लगभग जीरो से शुरू होगी और यही कोशिश है कि वो अपने दम पर अपनी आगे की राजनीति कर सके. साफ़ है मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ये बड़ा राजनीतिक दांव है जिसके सटीक बैठने की गुंजाइश काफी है.

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