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कांग्रेस से गठबंधन नहीं चाह रहे हैं मुलायम, जानिए क्यों

यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठजोड़ को लेकर स्थ‍िति साफ नहीं हो रही है. वहीं गठबंधन की संभावना को लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने इन दोनों पार्ट‍ियों समेत बीजेपी को भी लपेटना शुरू कर दिया है. हालांकि चिंता भारतीय जनता पार्टी को भी कम नहीं है. सपा-कांग्रेस का गठजोड़ होने की हालत में मुस्लिम वोट बैंक इस गठबंधन और बसपा के बीच बंट जाने की उम्मीद है, वहीं ब्राह्मण वोट बैंक कांग्रेस-सपा गठबंधन और बीजेपी के बीच बंट सकता है. इस वजह से बसपा और बीजेपी का परेशान होना लाजिमी है.

मुलायम सिंह यादव मुलायम सिंह यादव

यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठजोड़ को लेकर स्थ‍िति साफ नहीं हो रही है. वहीं गठबंधन की संभावना को लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने इन दोनों पार्ट‍ियों समेत बीजेपी को भी लपेटना शुरू कर दिया है. हालांकि चिंता भारतीय जनता पार्टी को भी कम नहीं है. सपा-कांग्रेस का गठजोड़ होने की हालत में मुस्लिम वोट बैंक इस गठबंधन और बसपा के बीच बंट जाने की उम्मीद है, वहीं ब्राह्मण वोट बैंक कांग्रेस-सपा गठबंधन और बीजेपी के बीच बंट सकता है. इस वजह से बसपा और बीजेपी का परेशान होना लाजिमी है.

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इस गठजोड़ को लेकर समाजवादी पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक नहीं है. सीएम अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव का खेमा चाह रहा है कि कांग्रेस से चुनाव पूर्व गठबंधन हो जाए. लेकिन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ऐसा नहीं चाह रहे हैं. और जब तक नेताजी की 'हां' नहीं होती, गठबंधन मुमकिन नहीं है. मुलायम सिंह यादव को लगता है कि कांग्रेस से गठजोड़ होने पर उनके परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लग जाएगी. और 27 साल यूपी में सत्ता से दूर रही कांग्रेस पार्टी का पुनर्जन्म हो जाएगा. कांग्रेस के यूपी की सत्ता से बाहर होने के बाद मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को 'धर्मनिरपेक्ष पार्टी' के तौर पर स्थापित किया और खुद को अल्पसंख्यकों का रहनुमा.

मुलायम सिंह यादव को यह भी लग रहा है कि अखिलेश का कद उनसे बड़ा हो जाएगा. इसके लिए अमर और शि‍वपाल का खेमा मुलायम के कान भर रहा है. वैसे तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अखिलेश यादव से कोई परहेज नहीं है और न ही अखि‍लेश को राहुल से ऐतराज है. लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष को मुलायम सिंह से ऐतराज है. अगर कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी का गठजोड़ होता है तो इस गठबंधन के जीतने की संभावनाएं प्रबल हो जाएंगी. यूपी में यादव और मुस्ल‍िम वोट बैंक किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करता है. अगर ये दोनों पार्ट‍ियां एकजुट होती हैं तो मुस्लिम और यादव वोट एक साथ होंगे ही, ओबीसी वोट बैंक भी इस गठजोड़ के साथ जाएगा. सीएम अखिलेश यादव ने हाल में ओबीसी की 17 जातियों को अनुसूचित जाति के दायरे में लाने का ऐलान किया है. सूबे में इन 17 जातियों का वोट बैंक 14 फीसदी है.

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हालांकि सियासी गलियारे में यह खबर भी तैर रही है कि शिवपाल यादव और अमर सिंह का खेमा कांग्रेस से गठजोड़ चाह रहा है. उसे यह लग रहा है कि चुनाव से पहले अगर यह गठबंधन बना तो अखिलेश यादव को खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करना आसान नहीं होगा. यह खेमा इसी कोशिश में है कि चुनाव में अखिलेश गठबंधन का चेहरा नहीं बन पाएं. अमर सिंह की कांग्रेस से अच्छे रिश्ते हैं और बताया जा रहा है कि वो गठजोड़ के लिए मध्यस्थ की भूमिका में हैं. इस गठजोड़ में रालोद के भी शामिल होने की उम्मीद है. रालोद अध्यक्ष अजित सिंह से शिवपाल सिंह के तो रिश्ते अच्छे हैं हीं, अमर सिंह से भी उनकी बनती है.

हालांकि कांग्रेस के साथ सपा के गठबंधन को लेकर सियासी धुंध अभी छंटती नजर नहीं आ रही है. 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी सपा प्रमुख के साथ गठबंधन की कोशिश में नाकाम साबित हुए थे. एक बार, राजीव गांधी से मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में गठबंधन की घोषणा करने का वादा किया और अगली सुबह दिल्ली से लखनऊ रवाना हो गए. मुलायम ने विधानसभा भंग कर अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी जिससे कांग्रेस को काफी निराशा हुई थी. इतिहास गवाह है दोनों पार्टियों के बीच जब भी गठबंधन पर बात हुई वह केवल बीजेपी को राज्य में सत्ता से दूर रखने के लिए की गई है.

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