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उत्तराखंड में लगी PK की पाठशाला

कांग्रेस की तरफ से इस बार का चुनाव एकदम डिजिटल होने जा रहा है और इस सब का कार्यभार खुद प्रशांत किशोर ने संभाला है. माना जाता है कि मोदी के लिए काम करने वाले प्रशांत किशोर ने मोटे पैसे लेकर उस वक्त काम किया था लेकिन हरीश रावत कह रहे हैं कि वो एक सहयोगी के तौर पर ही प्रदेश में कांग्रेस को सेवा दे रहे हैं

शुरू हुआ पीके का मैनेजमैंट ! शुरू हुआ पीके का मैनेजमैंट !
लव रघुवंशी
  • देहरादून,
  • 11 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 4:41 PM IST

नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार जैसे नेताओं की ब्रांडिंग कर उनको देश विदेश में चमका चुके पीके यानी प्रशांत किशोर की क्लास अब उत्तराखंड में भी लगने लगी है. भारी भरकम टीम और हाथों में लैपटॉप के साथ पीके ने अब उत्तराखंड में चुनावी कमान संभाल ली है. उनकी पहली पाठशाला हरिद्वार में लगी है, जहां खुद हरीश रावत की बेटी और पत्नी दोनों ही हाथ आजमाना चाहती हैं.

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कहा जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से इस बार का चुनाव एकदम डिजिटल होने जा रहा है और इस सब का कार्यभार खुद प्रशांत किशोर ने संभाला है. माना जाता है कि मोदी के लिए काम करने वाले प्रशांत किशोर ने मोटे पैसे लेकर उस वक्त काम किया था लेकिन हरीश रावत कह रहे हैं कि वो एक सहयोगी के तौर पर ही प्रदेश में कांग्रेस को सेवा दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर ऐसे नेताओं की गिनती भी लगातार बढ़ती जा रही है जो पीके की फिरकी से दूर ही रहना चाहते हैं.

पीके की फिरकी, हरीश का भरोसा
सीबीआई का शिकंजा और 10 अपने विधायकों के बागी होने के बाद हरीश रावत सहित पूरे प्रदेश कांग्रेस को लगता है कि इस बार का चुनावी संग्राम बहुत कठिन होने वाला है. उस पर मोदी की लहर का असर भी प्रदेश की कई सीटों पर अभी से देखा जा रहा है, इसीलिए हरीश रावत ने मैनेजमेंट गुरु और पंजाब, उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए भूमिका बना रहे प्रशांत किशोर को अपने प्रदेश में भी कांग्रेस की डोलती नैय्या को पार लगाने के लिए बुला लिया है. अपने ही लोगों में घिर चुके हरीश रावत को लगता है कि अब प्रशांत किशोर का अनुभव ही प्रदेश में उनको बचा सकता है. हरीश रावत की माने तो प्रशांत ने जिस तरह से मोदी को 2014 में देश की सत्ता पर बिठाने के लिए प्लानिंग की थी अगर वो यहां भी करेंगे तो काफी हद तक माहौल हरीश रावत के पक्ष में हो सकता है. रावत का कहना है कि मोदी के लिए उनको हायर किया गया था, लेकिन यहां वो सिर्फ सेवा की भावना से आये हैं.

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किशोर को नापसंद किशोर?
सूत्रों की माने तो किशोर उपाध्याय नहीं चाहते हैं कि प्रदेश में कोई और कांग्रेस के चुनावी खेल में भागीदारी करे, लेकिन पार्टी आलाकमान के आदेश का पालन करना है तो किशोर भी पीके के सुर में सुर मिलाने को मजबूर है. उपाध्याय की मानें तो अगर पीके राज्य में सेवा की भावना से आये हैं तो कुछ अच्छा ही होगा. प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि राज्य में सरकार आने के बाद पीके का सहयोग भूला नहीं जायेगा.

पीके और उनका मैनेजमेंट
1977 में बिहार के साहिबाबाद में जन्में प्रशांत किशोर के लोहे को देश ने तब माना जब उन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी के लिए काम किया. राजनीतिक सलाहकार पीके नीतीश कुमार के लिए भी काम कर चुके हैं. इससे पहले वो प्रियंका गांधी के साथ भी काम कर चुके हैं. पीके जिस भी राज्य में और जिस भी नेता के लिए काम करते हैं उन नेताओं के भाषण लिखने से लेकर पोस्टर, बैनर, स्लोगन और रैलियों के मैनेजमेंट तक वही करते हैं.

मीडिया से दूरी
उत्तराखंड में भी प्रशांत किशोर ने पिछले 5 दिन से डेरा डाला हुआ है, सुबह 11 बजे से लेकर वो अलग-अलग जगहों पर प्रदेश कांग्रेस के मुख्य चेहरों की पाठशाला लगा रहे हैं. प्रशांत किशोर सभी नेताओं से मंथन करते हुए एक बात जरूर साफ़ कर चुके हैं कि उनकी रणनीति बाहर बिलकुल भी न जाए, खासकर मीडिया के पास तो बिलकुल भी नहीं.

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