
पूरा देश सदी के महानायक का 80वां जन्मदिन मना रहा है. पीवीआर ने भी इसी तर्ज पर इंडस्ट्री के मेगा स्टार के जन्मदिन पर उनकी बेस्ट फिल्मों का मूवी मैराथॉन रखा है. पीवीआर हॉल में एंटर करते ही आपको बिग बी से जुड़ी कई चीजें नजर आएंगी. खासकर उनके द्वारा शंहशाह फिल्म में पहना गया वो आइकॉनिक जैकेट एक्जीबिशन पर लगाया गया है. आपको बता दें, 1988 में रिलीज हुई फिल्म शंहशाह में महानायक ने जिस स्वैग से वो जैकेट कैरी किया है, उसके बाद से उनके स्टाइलिंग की अलग चर्चा होने लगी थी. इस फिल्म में जैकेट पहने एंग्री यंग मैन दुश्मनों को एक अनोखे अंदाज में मजा चखाते नजर आते हैं. इस फिल्म के डायरेक्टर टीनू आनंद इस फिल्म और बिग बी के उस जैकेट के पीछे की कुछ दिलचस्प बातें हमसे शेयर कर रहे हैं.
डिब्बा बंद होने वाली थी शहंशाह
1988 में रिलीज हुई इस फिल्म और उसके जैकेट के पीछे कई किस्से हैं. Aajtak.in से एक्सक्लूसिव बातचीत में टीनू बताते हैं, दरअसल वो जैकेट हमारी पहली पसंद नहीं थी. उस जैकेट के पीछे कहानी यही है कि मैंने और डिजाइनर अकबर ने मिलकर एक दूसरा जैकेट डिजाइन किया था. लेकिन उस वक्त अमित जी की हेल्थ बिगड़ गई थी. यहां तक की उन्हें डॉक्टर ने ये भी कह दिया था कि वे शायद अब काम नहीं कर पाएंगे. मांस पेशियों में कुछ डिसीज होने के कारण उन्होंने ही खुद अनाउंस भी कर दिया था कि वे फिल्में नहीं करेंगे. शहशांह तो उस वक्त बस अनाउंस हुई थी, शूटिंग की शुरूआत होनी थी.
टीनू ने कहा- हमने एक लंबा शेड्यूल बैंगलोर में प्लान किया था क्योंकि उस वक्त अमित जी वहीं थे. मैंने सारे आर्टिस्ट्स को साइन कर लिया था, तीन गाने रेकॉर्ड हो चुके थे. अचानक से यह खबर आ गई कि वे काम नहीं करेंगे. तो फिर क्या, मेरे घर व ऑफिस के आगे फाइनेंसर की लाइन लग गई थी. वो पैसे वापस मांगने लगे थे. उन दिनों मैं बहुत परेशान हो गया था. इसी बीच अमित जी के भाई बंटी से मिला, उसने जब हाल पूछा, तो मैंने कहा कि मैं बर्बाद हो चुका हूं. बंटी ने मेरी खबर अमित जी के पास पहुंचा दी थी. वे मेरे हालात से वाकिफ थे. पता चला कि वे अपने ईलाज के लिए अमेरिका गए हुए हैं. हो सकता है कि वे आकर अपनी छूटी हुई कुछ फिल्मों की शूटिंग कर लें. बस वहीं से आस जगने लगी थी. मैं तो रोजाना दुआ करने लगा कि भगवान वो ठीक होकर जल्दी वापस आ जाएं.
वो जैकेट जितेंद्र को चुपके से दे दिया
हालांकि दूसरी ओर जिस डिजाइनर अकबर संग मैंने यह जैकेट डिजाइन करवाया था. उसने जाकर वो जैकेट फिल्म आग और शोला के लिए जितेंद्र को दे दिया. उसकी इस हरकत ने मेरा दिल तोड़ दिया था. हम दोनों ने जैकेट डिजाइन के दौरान प्लान किया था कि कंधे पर एक रस्सी बंधी होती है, जिससे वो क्रिमिनल्स को पकड़ कर कोर्ट रूम में ड्रैग कर लाते हैं. मैंने जब आग और शोला का ऐड देखा, तो पता चला कि ये वही जैकेट है, जिसे मैं अमित जी के लिए प्लान कर रहा था. उस दिन ही मैंने निर्णय ले लिया था कि अगर अमित जी वापस आ गए, तो मैं वो जैकेट वापस रिपीट नहीं करूंगा. एक नया डिजाइन बनवाऊंगा लेकिन अकबर के साथ दोबारा काम नहीं करूंगा. इस दौरान मैं किशोर बजाज संग मिला और उन्हें पूरा किस्सा सुनाया. बजाज साहब ने मुझसे कहा कि तुम फिक्र मत करो, हम कुछ नया डिजाइन निकालेंगे.
टीनू आगे कहते हैं, मुझे बजाज का एक दिन कॉल आया. मैं पहुंचा, तो उसने एक फ्रेंच ऐड दिखाया, जिसमें एक लड़का जो आर्मर होता है, कुछ ऐसा ही जैकेट पहने हुआ था. मैंने पूछा कि क्या ऐसा जैकेट यहां बन सकता है. बजाज ने कहा, हां क्यों नहीं, कोशिश तो कर सकते हैं. मैंने उससे कहा कि जैसे ही अमित जी की वापसी की खबर मिलती है, तुम ये डिजाइन करना शुरू कर देना. अमित जी ने मुझसे एक दिन स्टूडियो में बुलाया और कहा कि मैं जो पेंडिंग फिल्में हैं, उसकी शूटिंग पूरी कर लूं, फिर शंहशाह दोबारा अनाउंस करूंगा. फिर एक दिन उन्होंने कहा कि चलो शुरू करते हैं और वो जैकेट का नाप ले लो. तो मैंने अकबर का वाक्या बताया, तो उन्हें भी शॉक्ड लगा था. वो हमेशा अकबर को ही अपने कपड़े डिजाइन करने देते थे क्योंकि वो उनकी बॉडी को जानता था और करेक्ट डिजाइन करता था. फिर मैंने उन्हें बजाज साहब के बारे में बताया.
जैकेट पहन खुद को दस मिनट तक शीशे में निहारते रहे
टीनू आगे बोले- मुझे याद है, जब जैकेट तैयार हुई, तो मैं उनकी फिटिंग के लिए मद्रास (चैन्नई) पहुंच गया था. वो उन दिनों वहां शूटिंग कर रहे थे. वो शूटिंग से वापस होटल में लौटे, तो थके हुए दिख रहे थे. फिर भी उन्होंने कहा कि ठीक है मैं अभी ही ट्राई कर लेता हूं. वो जैकेट लेकर बेडरूम में गए, तो पंद्रह मिनट तक दरवाजा नहीं खोला. मैं भी डर गया कि आखिर क्या हो गया. मैं घबराते हुए नॉक करते हुए दरवाजा खोल अंदर चला गया. वहां देखता हूं कि वे शीशे के सामने खड़े होकर खुद को एकटक निहार रहे थे. खुद को हर एंगल से देख रहे थे. वो कह रहे थे कि यह डिजाइन मुझे बहुत पसंद आया है, इसे फाइनल कर दो. बस उसके बाद से वो जैकेट अब हिस्टॉरिकल पीस बन चुका है. मैं तो चौड़े होकर कहता हूं, कि वो ही एक आदमी है, जो ऐसे जैकेट को कैरी कर सकता था, जितेंद्र के बस की बात नहीं है.
डिजाइनिंग में लगे थे तीन महीने
जैकेट की डिटेलिंग पर टीनू बताते हैं, वो जैकेट उस वक्त के लिए बहुत एक्स्पेंसिव था. लगभग 35 से 40 हजार रुपये में बनाया गया था. इतना मंहगा होना वो जैकेट डिजर्व करता था. बजाज रोज मोहम्मद अली रोड जाता था, वहां कारीगरों संग बैठकर उस जैकेट को बनाया है. वो स्टील, चेन और लेदर का बना हुआ है. स्टील को खास ऐसे डिजाइन किया गया था कि वो बाजुओं में परफेक्ट फिट हो जाए. इसे बनाने में तीन महीने लग गए थे. वो 16 किलो का जैकेट था. फिल्म खत्म होने के बाद प्रोड्यूसर के पास वो जैकेट चली गई थी. हमने आठ महीने पहले ही उसका ऑक्शन किया था, जिसके लाखों मिले हैं.