अक्षय कुमार की फिल्म 'केसरी चैप्टर 2' का जब ट्रेलर आया था, तभी से ऑडियंस इस फिल्म से इम्प्रेस हो रही थी. जलियांवाला बाग की कहानी बाहर लाने के लिए भारत के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ केस लड़ने वाले सी शंकरन शंकरन नायर की कहानी, ऐसी कहानी है जो इतिहास के पन्नों में दबकर रह गई,
'केसरी चैप्टर 2' का सबसे पहला वादा यही था कि फिल्म इस कहानी को बाहर लेकर आएगी. शंकरन नायर के किरदार में नजर आ रहे अक्षय के साथ अनन्या पांडे और आर माधवन भी हैं. ट्रेलर से एक पीरियड कोर्टरूम ड्रामा नजर आ रही इस फिल्म में अक्षय और माधवन का आमने-सामने होना, इसमें दिलचस्पी जगाने वाली एक और बड़ी वजह थी. 'केसरी चैप्टर 2' देखते हुए जो एक बात पक्की है वो ये कि तीनों एक्टर्स का काम तो आपको जरूर इम्प्रेस करेगा. मगर सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या 'केसरी चैप्टर 2' का ट्रेलर अपने सबसे बड़े और महत्वपूर्ण वादे को निभा पाया?
इतिहास की किताब से निकला 'केसरी 2' का पन्ना
अक्षय की फिल्म जलियांवाला बाग नरसंहार से शुरू होती है. 13 साल का एक लड़का वो किरदार है जो आपको जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 की शाम हुई 'खुनी बैसाखी' की वीभत्सता का एहसास करवाता है. इसके बाद कहानी फोकस करती है शंकरन नायर पर जो 'इंडिया के टॉप बैरिस्टर' हैं और ब्रिटिश सरकार को एक केस में जीत दिलाने के बाद उन्हें सरकार में एक बड़ा पद मिल जाता है.
इसी बीच जलियांवाला बाग की भयानक घटना बाहर आनी शुरू होती है और वो 13 साल का लड़का, नायर के अंदर देशभक्ति के साथ स्वतंत्रता की भावना जगाने का कारण बनता है. लेकिन अभी भी नायर के अंदर कुछ संकोच बचा हुआ है जो एक युवा महिला वकील दिलरीत (अनन्या) के आने पर टूटता है, जो उनसे इंस्पायर होकर इस पेशे में आई है. नायर ब्रिटिश राज में, ब्रिटिश जज की अदालत में, जलियांवाला बाग की घटना के लिए ब्रिटिश सरकार यानी 'द क्राउन' पर केस करते हैं.
सरकार की तरफ से केस लड़ने का जिम्मा मिलता है आधे ब्रिटिश-आधे भारतीय मैक'किनली (माधवन) को. इस केस में शंकर को जीत मिलती है या नहीं? जलियांवाला बाग में निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने का हुक्म देने वाला जनरल डायर कटघरे में आता है या नहीं? उस समय पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे माइकल ओ'ड्वायर की गलती तय होती है या नहीं? यही 'केसरी चैप्टर 2' आपको थिएटर में दिखाती है.
'केसरी 2' में क्या है दमदार?
अक्षय की फिल्म फर्स्ट हाफ में जिस तरह कहानी सेट करती है वो गंभीर भी है और इमोशनल भी. जिस तरह जलियांवाला बाग कांड पर्दे पर नजर आता है वो आपको अंदर तक झिंझोड़ने में कामयाब होता है. ब्रिटिश सरकार में बड़ा ओहदा पाने से लेकर, सरकार के खिलाफ केस लड़ने तक में नायर के किरदार का आर्क भी काफी इम्प्रेसिव है. अक्षय की परफॉरमेंस में वो गंभीरता पूरी तरह झलकती है जो फिल्म की जरूरत थी.
अनन्या का किरदार, इस तरह की कहानियों में कैटेलिस्ट वाला टिपिकल किरदार है. लेकिन वो अपने काम से आपको इम्प्रेस करती हैं और सेकंड हाफ में उन्हें चमकने के कुछ मोमेंट्स भी मिले हैं. माधवन की एंट्री दमदार है और कोर्ट में उनकी बॉडी लैंग्वेज और लहजा देखकर ही आपको लगने लगता है कि ये लॉयर तो नायर पर भारी पड़ने वाला है. कोर्ट के कई सीन्स में तो माधवन सिर्फ अपने कॉन्फिडेंस की वजह से डरावने लगते हैं. मगर ये पूरी दमदार सेटिंग फिल्म के सेकंड हाफ में बिगड़ने भी लगती है.
टेक्निकली 'केसरी 2' अच्छी दिख रही है. सिनेमेटोग्राफी के साथ बैकग्राउंड स्कोर भी सॉलिड है और कहानी का पूरा फील बनाए रखता है. स्कोर में म्यूजिक के साथ-साथ साइलेंस को भी अच्छे से यूज किया गया है. लीड एक्टर्स से लेकर सपोर्टिंग एक्टर्स के काम तक सारी परफॉरमेंस दमदार हैं और गाने कहानी को डिस्टर्ब नहीं करते. सिवाय मसाबा गुप्ता के एक डांस नंबर के, जो फर्स्ट हाफ में एक खलल पैदा करता है.
क्या है 'केसरी 2' की कमियां?
एक बार वापस 'केसरी 2' के ट्रेलर में किए गए वादे पर चलिए. वादा वो कहानी दिखाने का था कि कैसे अगर नायर केस नहीं लड़ते तो ब्रिटिश सरकार जलियांवाला बाग जैसा नृशंस नरसंहार दबा ले जाती और दुनिया को कानोंकान खबर नहीं होती. इस वादे को फिल्म निपुणता से नहीं दिखा पाती. इस घटना को लेकर पंजाब के बाहर लोगों को ज्यादा कुछ नहीं पता चल रहा, ये दिखाने में 'केसरी 2' पिछड़ती है. नायर की रियल लाइफ स्टोरी पढ़ने पर पता चलता है कि असल में सरकार में अंदर के लोगों को भी कुछ दिन बाद पता चला था कि पंजाब में ऐसा कुछ हुआ है. जबकि फिल्म में नायर का किरदार उस शुरुआती शॉक में नहीं नजर आता कि सरकार में रहते इस तरह की चीजों का पता नहीं चला.
एक बड़ा मशहूर भक्ति गीत है- 'राम से बड़ा राम का नाम'. इस गीत में कहानी ये है कि लंका वाला पुल बनने के बीच अपने नाम लिखे पत्थरों को तैरता देखकर भगवान राम खुद भी ये फॉर्मूला ट्राई करते हैं. लेकिन अपने ही हाथ से, उनका अपना ही नाम लिखे पत्थर पानी में तैरने की बजाय डूबने लगते हैं. 'केसरी 2' के सेकंड हाफ में कुछ ऐसा ही मामला हो गया है. ये फिल्म नायर के किरदार को, नायर के केस से ज्यादा हीरोइक बनाने की कोशिश करने लगती है. अक्सर राइटिंग में ऐसा तब भी होता है जब किरदार कोई बड़ा स्टार निभा रहा हो, जो इस केस में अक्षय हैं.
'केसरी 2' में जलियांवाला बाग से पहले हुई 'क्रॉलिंग लेन' की घटना और एक ब्रिटिश महिला मिस शेरवुड के साथ हुई घटना की तरह, एक रेप केस दिखाया गया है. इस रेप केस को कोर्ट में जिस तरह झूठा साबित होते दिखाया गया है, वो देखने में सही नहीं लगता. केस झूठा हो तो भी फिल्म जिस तरह कोर्ट में पूरी कार्रवाई दिखाती है, वो डिस्टर्बिंग है. यहां देखें 'केसरी 2' का ट्रेलर:
'केसरी 2' में वो समस्या भी है जो अक्सर बॉलीवुड के कोर्टरूम ड्रामा में पाई जाती है- फिल्म के मुद्दे को दिखा रहा लीडिंग वकील किरदार खुद ही फैंटम स्टाइल में इन्वेस्टिगेशन भी करने लगता है और वो मुजरिम को उकसाकर उससे कन्फेशन जैसी कोई चीज निकलवाता है. कोर्टरूम ड्रामा का मकसद होता है कि केस की कार्रवाई के माध्यम से समाज को फिल्म का मैसेज डिलीवर हो, ना कि हर बार हीरो के मोनोलॉग का सहारा लिया जाए. लेकिन 'केसरी चैप्टर 2' में अक्षय भी क्लाइमेक्स में मोनोलॉग ही देते नजर आते हैं.
इस सीक्वेंस में उन्होंने जान भी फूंकी है और लोगों को मजा भी आ सकता है. लेकिन सारा मुद्दा ये है कि 'केसरी 2' के मेकर्स के पास एक बहुत दमदार प्लॉट था, जो फर्स्ट हाफ तक पूरी तरह ट्रैक पर था. केस की कार्रवाई और वकीलों के तर्कों के जरिए जलियांवाला बाग की सच्चाई दुनिया के सामने आते हुए दिखाना, एक बेहतरीन फिल्म बना सकता था. लेकिन यहां डायरेक्टर करण सिंह त्यागी ने डिटेल्स में जाने की बजाय नायर को मोनोलॉग देने वाला हीरो बनाने का जो रास्ता चुना, वो 'केसरी 2' को कमजोर करता है. पढ़ने पर तो यह भी पता लगता है कि नायर के खिलाफ डायर ने लंदन' में मानहानि का केस किया था, मगर फिल्म ये सब दिखाना जरूरी नहीं समझती बल्कि इसका एक बहुत अलग वर्जन दिखाती है.
हालांकि, ऐतिहासिक तथ्यों की परख करना और उसपर बात करना इतिहास पढ़ने वालों की जिम्मेदारी है. इसलिए इस चीज से हटकर देखने पर 'केसरी 2' आम दर्शकों को बहुत इम्प्रेस कर सकती है. इतिहास को फिक्शन में घुलते देखकर होने वाला अविश्वास किनारे रखने पर ये फिल्म थोड़ा ज्यादा इम्प्रेस करेगी. लेकिन इस तरह की इतिहास-आधारित फिल्मों की सबसे बड़ी कामयाबी इस बात में होती है कि इन्हें देखने के बाद फिल्म के मुद्दे के बारे में जानने-समझने-पढ़ने की इच्छा आप में और ज्यादा बढ़ जाए. और इस मामले में 'केसरी चैप्टर 2' कामयाब होती है.
सुबोध मिश्रा