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Movie review: जानें क्यों फिल्माया गया था 'पार्च्ड' में न्यूड सीन

डायरेक्टर लीना इस बार एक अलग तरह की कहानी दर्शकों तक पहुचाने के लिए तैयार हैं जिसका नाम है 'पार्च्ड' यानी 'सूखा'. इस फिल्म को अभी तक 24 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाया गया है जिसमें से 18 बार इसे अवार्ड्स से सम्मानित भी किया गया है. कैसी बनी है यह फिल्म आइए जानते हैं:

'पार्च्ड' 'पार्च्ड'
पूजा बजाज
  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 4:46 PM IST

डायरेक्टर लीना यादव ने एक से बढ़कर एक टीवी सीरियल्स डायरेक्ट किए हैं साथ ही 'शब्द' और 'तीन पत्ती' जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया है. हालांकि उनकी डायरेक्ट की हुई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कमाल तो नहीं दिखा पाई हैं, लेकिन लीना इस बार एक अलग तरह की कहानी दर्शकों तक पहुचाने के लिए तैयार हैं जिसका नाम है 'पार्च्ड' यानी 'सूखा'. इस फिल्म को अभी तक 24 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाया गया है जिसमें से 18 बार इसे अवार्ड्स से सम्मानित भी किया गया है. कैसी बनी है यह फिल्म आइए जानते हैं:

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कहानी
पार्च्ड की कहानी भारत के उत्तर पश्चिमी इलाके कच्छ के बैकड्रॉप पर आधारित है जहां के एक गांव में रानी (तनिष्ठा मुखर्जी), लज्जो (राधिका आप्टे) रहा करती हैं, जहां रानी के पति की एक्सीडेंट की वजह से मौत हो गई है वहीं दूसरी तरफ लज्जो को उसका पति एक बांझ औरत समझता है. रानी अपने 14 साल के बेटे गुलाब की शादी पास के ही गांव की लड़की जानकी (लहर खान) से कर देती है, लेकिन गुलाब उसके छोटे बालों और खुद के दोस्तों की रोक टोक की वजह से जानकी को नापसन्द करता है. वहीं कहानी में बिजली (सुरवीन चावला) का भी अहम रोल है जो गांव के लोगों के मनोरंजन के लिए नाचती हैं. रानी, लज्जो और बिजली आपस में दोस्त हैं और एक दूसरे से मिलकर अक्सर अपने दुख दर्द शेयर करती हैं, कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब ये तीनों रूढ़िवादिता से आगे बढ़कर अपनी जिंदगी जीने की कोशिश करती हैं, तब कई सारे राज भी सामने आते हैं, और फिर कहानी को अंजाम मिलता है.

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स्क्रिप्ट
फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत ही तीक्ष्ण कटार की तरह है जो कई सारे मुद्दों की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करती है जैसे बाल विवाह, पंचायती राज, पुरुष प्रधानता और महिलाओं पर अत्याचार. फिल्म के बैकड्रॉप पर कहानी को बखूबी दर्शाने की कोशिश की गई है, वहीं हॉलीवुड फिल्म 'टाइटैनिक' के लिए अकैडमी अवॉर्ड विनिंग सिनेमैटोग्राफर रसेल कारपेंटर ने ही इस फिल्म की सिनेमैटोग्राफी की है, जिनका मैजिक टच आप कई सारे सीन्स में देख सकते हैं. वैसे कहीं-कहीं स्क्रीनप्ले थोड़ा खींचा भी दिखाई पड़ता है और कहानी में कुछ ऐसे किरदार भी हैं जिनको पूरी तरह से कैश नहीं किया गया है, जैसे लघु उद्योग चलाने वाले किशन का किरदार. फिल्म में कुछ इंटिमेट सीन भी हैं लेकिन उन्हें दर्शाने का ढंग काफी अलग है, जिससे ये सीन्स कहानी की मांग नजर आते हैं और अटपटे नहीं लगते.

अभिनय
पार्च्ड का हर किरदार अपने आप में खास है, रानी के रूप में तनिष्ठा मुखर्जी, लज्जो के किरदार में राधिका आप्टे, बिजली के रोल में सुरवीन या फिर जानकी का किरदार निभा रही लहर खान, सबने अपने अपने रोल को बेहतरीन तरीके से निभाया है. वहीं एक छुपे हुए लवर का छोटा रोल एक्टर आदिल हुसैन ने किया है जो कहानी की रफ्तार में अहम योगदान देता है. बाकी सह कलाकारों का काम भी सहज है.

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कमजोर कड़ी
फिल्म की कमजोर कड़ी शायद इसके मुद्दे हो सकते हैं, जो कि‍ हिंदी फिल्मों को देखने वाले दर्शकों के लिए नए नहीं हैं, बस फिल्मांकन का ढंग बदला है, शायद यही कारण है कि‍ खास तरह की ऑडियन्स ही सिनेमाघर तक पहुचे.

संगीत
फिल्म का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर काफी दिलचस्प है जो फिल्म के सीन्स के साथ बेहतरीन लगता है, इसके लिए हितेश सोनिक बधाई के पात्र हैं. गानों की क्वालिटी को देखकर उसके पीछे हुआ रिसर्च वर्क साफ नजर आता है.

क्यों देखें
अगर आप मुद्दों पर आधारित एक अलग तरह का सिनेमा पसंद करते हैं, तो आपको पार्च्ड जरूर देखनी चाहिए.

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