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क्या लता मंगेशकर की वजह से आशा को नहीं मिल पाया वाजिब मुकाम?

लता मंगेशकर की बहन आशा भोसले को अपनी पहचान बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. संगीत दोनों बहनों को पारिवारिक विरासत में मिला.

लता मंगेशकर और आशा लता मंगेशकर और आशा
पुनीत उपाध्याय
  • मुंबई,
  • 28 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:26 PM IST

सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने भारतीय संगीत की दुनिया में दशकों तक राज किया है. बॉलीवुड इंडस्ट्री में उनकी धाक रही है. लता के दौर में किसी के लिए भी बॉलीवुड में दाखिल होना ही ख्वाब सरीखा था. उस दौरान जिन बाकी सिंगर्स ने बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई वो ना तो ज्यादा गाने गा पाईं ना हीं बड़ा मुकाम ही हासिल कर पाईं.

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कहा तो यह भी जाता है कि लता की बहन आशा भोसले को भी अपनी पहचान बनाने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े. वैसे तो दोनों कलाकारों ने एक खास  मुकाम हासिल किया और दोनों का करियर सफल रहा है. मगर समय-समय पर दोनों में प्रतिस्पर्धा की ख्बारें भी आती रही हैं.

50 के दशक से ही लता का जादू लोगों के दिलों में छाने लगा था. नूरजहां, शमशाद बेगम और गीता दत्त जैसे मंझे हुए गायिकाओं के बावजूद लता ने आते ही अपनी एक अलग जगह बना ली. वो बहुत जल्द ही टॉप सिंगर्स में शुमार हो गईं. धीरे-धीरे वे पर्दे पर तमाम बड़े कलाकारों की आवाज बन गईं. उनके गाने दर्शकों के दिल में जगह बनाने लगे.

जहां एक तरफ लता कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही थीं वहीं दूसरी तरफ उनकी बहन आशा बॉलीवुड में अपना मुकाम बनाने के लिए संघर्ष कर रही थीं.कुछ को तो यह भी कहना है कि लता की वजह से आशा को वह मुकाम नहीं मिल पाया जिसकी वो हकदार थीं. कई और गायिकाएं हैं जिन्हें लेकर कहा जाता है कि लता की वजह से उन्हें सही मुकाम नहीं मिल पाया. 

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पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने लता ने जब 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया तो पंडित जी भी अपने आसूं नहीं रोक पाए. मगर बहुत कम लोग ये जानते हैं कि कभी इस गाने को लता और आशा दोनों मिलकर गाने वाली थीं. मगर किसी कारण से बाद में इसे सिर्फ लता ने गाया. इसको लेकर कॉन्ट्रोवर्सी भी है. दोनों के प्रशंसक वर्ग में इसे लेकर अपने अपने कलाकार के पक्ष में किस्से मौजूद हैं. मगर असल बात साफ तौर पर कभी सामने नहीं आई.

वैसे दोनों बहनों ने बॉलीवुड में ऐसी जगह बनाई कि नए सिंगरों की राह काफी कठिन हो गई. रोचक बात ये है कि 50, 60 और 70 के दशक में कॉम्पिटीशन सिर्फ लता और आशा के बीच में था. इसका असर दोनों की पर्सनल लाइफ में भी पड़ा. कहा जाता है कि उस दौर में जो गाने लता मंगेशकर छोड़ती थीं वो आशा भोसले की झोली में जाते थे. आशा ने वर्सेटाइल सिंगिंग के बलबूते पर अपनी पहचान बनाई. फिल्म निर्देशकों ने भी अपने अपने तरीके से दोनों की मदद की.

जहां एक तरफ लता का करियर संवारने में सी. रामचंद्र का नाम लिया जाता है, वहीं दूसरी तरफ आशा के करियर में ओपी नैयर ने महत्वपूर्ण रोल प्ले किया. आशा ने वो सभी सम्मान दर्शकों से पाया जो लता को मिला. इसी के साथ उनका परिवारिक जीवन भी ज्यादा उतार-चढ़ाव से भरा रहा. लता के भारत रत्न मिलने और आशा को ना दिए जाने पर भी काफी कॉन्ट्रोवर्सी हो चुकी है. खुद आशा ने कई सारे इंटरव्यू में इस बात को साफ तौर पर कहा है कि मेरे साथ पक्षपात किया गया.

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तुलनाएं होती रहेंगी. लोग तरह-तरह की बातें भी करते रहेंगे. कई किस्से विवाद बनकर उभरें या हाशिए पर चले जाएं. जो बात यतार्थ है वो ये कि दोनों ने अपनी आवाज से दर्जनों गानों को अमर कर चुकी हैं. दोनों बहनों ने संगीत प्रेमियों को गानों का जिस तरह से तोहफा दिया है उसे सदियों तक याद किया जाएगा.

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