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Mahabharat 18th may update- दुर्योधन का बालहठ, हस्तिनापुर का हुआ विभाजन

पांडवों के जीवित होने का समाचार जानकार शकुनि ने दुर्योधन के सामने हस्तिनापुर की राजगद्दी पाने के लिए नई चाल चली. उसने दुर्योधन को बालहठ करने का सुझाव दिया.

महाभारत से एक दृश्य महाभारत से एक दृश्य
साधना कुमार
  • मुंबई,
  • 19 मई 2020,
  • अपडेटेड 8:27 AM IST

लॉकडाउन में लोग एक बार फिर महाभारत का आनंद ले पा रहे हैं. आइए जानते हैं कि बीते सोमवार महाभारत की कहानी किस मोड़ तक पहुंची और आगे इसमें क्या-क्या दर्शकों को देखने को मिलेगा. पांडवों के जीवित होने का समाचार जानकार शकुनि ने दुर्योधन के सामने हस्तिनापुर की राजगद्दी पाने के लिए नया पासा फेंका. उसने दुर्योधन को बालहठ करने का सुझाव दिया.

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दुर्योधन का बालहठ

दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र के पास आता है और पांडवों के आने पर नाराज़गी जताता है. धृतराष्ट्र दुर्योधन को उसके लाक्षागृह के षड़यंत्र को गलत ठहरता है और युधिष्टर को हस्तिनापुर का पहला युवराज बताता है तो दुर्योधन क्रोधित होकर कहता है कि वो युवराज की गद्दी से नहीं हटेगा, और यदि धृतराष्ट्र ने उसे ऐसा करने को कहा तो वो आत्महत्या कर लेगा. ये सुनते ही धृतराष्ट्र चिंतित हो जाते हैं और उसे वचन देते हैं कि दुर्योधन का जो अधिकार है उसे मिलकर रहेगा लेकिन सही समय आने पर.

उधर कर्ण भी लाक्षागृह षडयंत्र के बारे में सोचकर शकुनि के ऊपर क्रोधित है तभी दुर्योधन वहां आकर उससे उसके क्रोध का कारण पूछता है. कर्ण उसे बताता है लाक्षागृह का षडयंत्र रचकर शकुनि मामा ने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा और ये बात पांडव भली भांति जानते हैं. अब दुर्योधन ये जानने की कोशिश में लगा है कि आखिर पांडव और कुंती वारणावत में बच कैसे गए. शकुनि उस सेनापति को बुलाते हैं जो उस रात लाक्षागृह के बाहर पहरा दे रहा था और उसे ज़हर देकर मृत्यु दंड देता है.

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पांडवों का पांचाल से हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान

उधर काम्पिल्य नगरी में विदुर धृतराष्ट्र के दूत बनकर पहुंच गए हैं पांचों पांडव के लिए हस्तिनापुर वापस आने का समाचार लेकर. युधिष्टर अपने काका विदुर से मिलने की आज्ञा लेता है लेकिन कृष्ण उन्हें रोकते हुए कहते हैं," नहीं युवराज, आज वे आपके काका श्री नहीं हैं. आज वो हस्तिनापुर नरेश के दूत बनकर आये हैं, इसलिए उचित यही होगा कि सबके सामने मिला जाए. ताकि सब सुन सकें कि उन्होंने क्या कहा और तुमने क्या उत्तर दिया. ये गलतफहमियों से बचने के दिन हैं युवराज."

हस्तिनापुर में गांधारी धृतराष्ट्र के पास आती है, और पांडवों के जीवित होने का समाचार जानकर अपनी खुशी व्यक्त करती है. धृतराष्ट्र भी गांधारी को अपनी प्रसन्नता दिखाता है और अपनी चिंता का विषय भी बताता है कि पुत्रमोह के चलते कहीं पांडवों के साथ कोई अन्याय न हो जाये. शकुनि भी अपने चौसर का पासा फेंककर नया षडयंत्र रच रहा है और दुर्योधन के सामने विदुर पर पक्षपाती का आरोप लगाते हुए कहता है कि,"पता नहीं वो दासी पुत्र काम्पिल्य नगरी में कैसे कैसे जाल फैला रहा होगा."

इधर काम्पिल्य नगरी में कुंती विदुर से मिलने आती हैं और अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहती हैं कि विदुर पांडवों को हस्तिनापुर ले जाने के लिए क्यों आये हैं. तभी विदुर हस्तिनापुर की वर्तमान स्तिथि के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि पांडव हस्तिनापुर की आत्मा हैं और उनका वहां जाना जरूरी है. विदुर महाराज द्रुपद से मिलते हैं, और साथ ही कुलवधू द्रौपदी के लिए हस्तिनापुर महाराज द्वारा भेजे गए उपहार भी भेंट करते हैं. उपहार के साथ वो पांडवों और गृहलक्ष्मी द्रौपदी को हस्तिनापुर ले जाने का आग्रह भी करते हैं. द्रुपद खुशी-खुशी अपनी बेटी द्रौपदी और पांचों पांडव को विदा करने का निर्णय लेते हैं, साथ ही द्रौपदी के ससुरालवालों से मिलने के बहाने श्री कृष्ण और बलराम भी हस्तिनापुर आने का निर्णय लेते हैं.

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यहां हस्तिनापुर में पांडवों के आने का समाचार सुनकर भीष्म पितामह बहुत खुश हैं. यही समाचार वो गांधारी और धृतराष्ट्र को भी देते हैं.

द्रौपदी के काम्पिल्य नगरी से विदाई की तैयारी शुरू हो जाती है. साज श्रृंगार कर वे अपने पिता द्रुपद और भाई धृष्टद्युम्न से विदा लेती है. कुंती, पांचों पांडव और कुलवधू द्रौपदी को लेकर हस्तिनापुर की ओर प्रस्थान करते हैं.

हस्तिनापुर में कुंती, पांडवों और कुलवधू द्रौपदी का स्वागत

पूरे हस्तिनापुर में पांडवों के स्वागत की तैयारियां शुरू हो गई हैं. भीष्म गंगा किनारे आते हैं अपनी मां से बात करने क्योंकि उन्हें डर है कि पांडवों के आने बाद कहीं रणभूमि ना सज जाए. तभी गंगा मां उन्हें कहती हैं कि अपनी प्रतिज्ञा और अपने वचन के परिणामों का सामना करो. मां का आदेश मानकर भीष्म हाथ जोड़कर कहते हैं कि "अब मैं गंगा तट नहीं आऊंगा, अब आपको आना होगा" यह कहकर वे वहां से चले जाते हैं.

वहां दुर्योधन पांडवों के हस्तिनापुर आने से क्रोधित हो रहा है, तभी भीष्म पितामह पहुंच जाते हैं और भीष्म से उसके क्रोध के बारे में पूछते हैं. दुर्योधन अपने अधिकारों की बात करते हुए कहता है कि युधिष्टर उसके प्रतिद्वंदी हैं और हस्तिनापुर का असली युवराज वो खुद है. दुर्योधन का आक्रोश देख भीष्म पितामह उसे समझाते हैं और कहते हैं कि, "युधिष्टर और दुर्योधन से ऊपर है हस्तिनापुर, जब तुम दोनों नहीं थे तब भी हस्तिनापुर था और आगे जब तुम दोनों नहीं रहोगे तब भी हस्तिनापुर रहेगा." यह कहते हुए भीष्म वहां से चले जाते हैं.

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पांचों पांडव, कुंती, कुलवधू द्रौपदी, श्री कृष्ण और बलराम के साथ हस्तिनापुर पहुंचते हैं. भीष्म पितामह, कृपाचार्य और द्रोणाचार्य उनका भव्य स्वागत होता है. कुंती और द्रौपदी इनका आशीर्वाद लेकर महल के अंदर चली जाती हैं. पांचों पांडव, श्री कृष्ण और बलराम सबका आशीर्वाद लेकर अंदर आ जाते हैं. सभी दासियां फूल बरसाकर उनका स्वागत करती हैं. गांधारी कुंती से और कुंती गांधारी से अपनी-अपनी बहुओं का परिचय करवाती हैं. सबसे भेंट करने के बार धृतराष्ट्र और गांधारी, श्री कृष्ण और बलराम से भी मिलते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं.

क्यों हुआ हस्तिनापुर का विभाजन ?

धृतराष्ट धर्मसंकट में हैं इसीलिए तातश्री भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और विदुर की बैठक बुलाते हैं जिसमें शकुनि भी शामिल है. धृतराष्ट्र सबसे सहायता मांगते हुए कहते हैं कि हस्तिनापुर में अब दो युवराज हो गए हैं. अब हस्तिनापुर के युवराज के पद में कौन बैठेगा इसका निर्णय कैसे लिया जाए. इस बात पर बहस भी होती है और कई सवाल भी उठते हैं और किसी के साथ अन्याय ना हो इसीलिए अंत में भीष्म हस्तिनापुर के विभाजन का प्रस्ताव रखते हैं. जिसे सुनकर शकुनि के अलावा सब हैरत में पड़ जाते हैं. बैठक समाप्त हो जाती है, धृतराष्ट्र युधिष्टर को अपने कक्ष में बुलाते हैं और कहते हैं," ये सिंघासन मेरा नहीं है, मैं तो अनुज पाण्डु का प्रतिनिधि हूं. मेरी समस्या ये है कि मैं हस्तिनापुर को किसी संकट के द्वार में नहीं रोक सकता.

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यदि राज्य तुम्हें देता हूं तो दुर्योधन का अभिमान आड़े आता है और अगर राज्य दुर्योधन को दूं तो तुम्हारे साथ अन्याय होगा." यह कहकर वो युधिष्टर के सामने हस्तिनापुर राज्य के विभाजन की बात रखते हैं, जिसे सुनकर युधिष्टर पीछे हट जाता है लेकिन धृतराष्ट्र ये अन्याय नहीं करना चाहते इसीलिए हस्तिनापुर का विभाजन कर दुर्योधन को खांडव देते हैं लेकिन दुर्योधन बिना धृतराष्ट्र के वहां नहीं जा रहा इसीलिए वो युधिष्टर से निवेदन करते हैं कि वो अपने भाइयों और कुलवधू द्रौपदी संग खांडवप्रस्थ की ओर प्रस्थान करें. धृतराष्ट्र की आज्ञा का पालन करते हुए युधिष्टर वहां जाने की तैयारी शुरू कर देते हैं.

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