
अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी ऋषि कपूर और तापसी पन्नू स्टारर फिल्म 'मुल्क' रिलीज से पहले चर्चाओं में आ गई है. ये कोर्ट रूम ड्रामा है जिसे 3 अगस्त को रिलीज किया जा रहा है. फिल्म की कहानी दिखाया गया है कि कैसे भारत में मुसलमानों को मजहब की वजह से परेशान होना पड़ता है. तापसी पन्नू ने एक वकील का किरदार निभाया है जो आतंक के आरोप से जूझ रहे मुस्लिम परिवार की कानूनी मदद करती हैं.
जब जला दिया गया तापसी का घर...
'दी लल्लनटॉप शो' के लिए ख़ास बातचीत में तापसी पन्नू ने धार्मिक आधार पर होने वाले दंगों और उससे घरवालों के बचने की कहानी साझा की. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मुझे देश में हो रही घटनाओं और बीते इतिहास के बारे में हमेशा जानने दिलचस्पी रही है. मैंने अपने घरवालों से 84 के सिख दंगों की दहला देने वाली कहानियां सुनी हैं." 1984 के हालात को लेकर तापसी ने बताया, "मेरा परिवार दिल्ली के शक्तिनगर में रहता था. उस वक्त हमारे मोहल्ले में अकेले मेरा परिवार सरदार (सिख) था और बाकी लोग हिंदू थे. उस वक्त पूरे इलाके में सिर्फ हमारे यहां ही कार थी. सरदारों की कार के रूप में उसकी पहचान थी. दंगों में हमारी कार जला दी गई."
ऐसे बची थी पापा की जान
तापसी ने बताया, "हमारे घर वाले जिस मकान में रहते थे उसके मालिक हिंदू थे. ग्राउंड फ्लोर पर मकान मालिक रहते थे जबकि हमारा परिवार पहले तल पर रहता था. ये किस्सा तब का है जब हमारे पापा की शादी नहीं हुई थी. सिखों के खिलाफ दंगा भड़कने के बाद कुछ लोग हमारे घरवालों को मारने आए थे. मेरे घरवाले मकान के एक कमरे में छिप गए थे. तब मोहल्ले में रहने वाले हिंदुओं ने मेरे परिवार की जान बचाई थी. उन्होंने दंगाइयों को ये कहकर वापस लौटा दिया कि जो सरदार परिवार यहां रहता था वो कुछ दिन पहले ही यहां से चले गए. अब यहां कोई सरदार नहीं रहता." तापसी ने बताया तब मेरे पापा, दादा-दादी और ताया के साथ रहते थे. 1986 में मां के साथ पापा की शादी हुई.
अनुभव सिन्हा ने सुनाया 84 के दंगों की दांस्ता
तापसी के साथ मौजूद 'मुल्क' के निर्देशक अनुभव सिन्हा ने भी सिख दंगों को लेकर अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा, "दरअसल, तापसी जिसे दंगा बता रही हैं वो हकीकत में वो एक नरसंहार था. दंगे में दो लोग आपस में लड़ते हैं." 84 को याद करते हुए अनभव ने बताया, "उस दौरान मैं अलीगढ़ में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. तब मैं बच्चा नहीं था. मैंने देखा कि कैसे लोगों का नरसंहार किया गया."
चीजों को भुलाकर आगे निकल चुके हैं सिख
अनुभव ने कहा, "सिखों के गुरु का शीश मुगलों ने काट दिया. सिखों को मैंने हिंदुओं से भी लड़ते देखा है. लेकिन ये बुरी यादों को भूलकर आगे बढ़ जाने वाली कौम है. वो आगे बढ़ चुके हैं. ये खासियत मैंने हिंदू-मुसलमानों में नहीं देखी. कभी स्वर्ण मंदिर के लिए सिखों ने तलवारें निकाली थीं. आज वहां कोई भी जाए सबका स्वागत है."