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मुगल-ए-आजम के इस गाने के लिए नौशाद ने इस्तेमाल किए थे 100 म्यूजिशियन्स

नौशाद अली संगीत की दुनिया में आए दिन नए आयाम स्थापित करते थे और उस दौर में टेक्नोलॉजी के बिना ही उन्होंने कई साउंडइफेक्ट्स के साथ प्रयोग किए. इसके अलावा उन्होंने मुगल ए आजम में भी अपनी तकनीक से लोगों को हैरान कर दिया था.

मुगल ए आजम फिल्म का एक दृश्य मुगल ए आजम फिल्म का एक दृश्य
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 मई 2020,
  • अपडेटेड 7:36 AM IST

हिन्दी फिल्मों के मशहूर संगीतकार नौशाद अली की आज पुण्यतिथि है. मुगल-ए-आजम जैसी फिल्म में अपने संगीत से जबरदस्त सफलता हासिल करने वाले नौशाद ने 64 सालों तक बॉलीवुड में अपने संगीत का जादू बिखेरा. 5 मई 2006 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था.

नौशाद अली का जन्म 26 दिसंबर 1919 को नवाबों के शहर लखनऊ में हुआ. नौशाद को बचपन से ही म्यूजिक काफी पसंद था और उन्होंने एक म्यूजिक आइटम से जुड़ी दुकान में काम करना शुरू कर दिया था. नौशाद के परिवारवाले हिंदी फिल्मों और संगीत के सख्त खिलाफ थे. कहा जाता है कि जब नौशाद की शादी तय की गई, तब उनके ससुरालवालों को बताया गया कि वह पेशे से एक दर्जी हैं.

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म्यूजिक में अपनी तकनीक से हैरान कर देते थे नौशाद

नौशाद अली संगीत की दुनिया में आए दिन नए आयाम स्थापित करते थे, उस जमाने में टेक्नोलॉजी के बिना ही उन्होंने संगीत में एक से बढ़कर एक साउंड इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया. इसके अलावा उन्होंने मुगल-ए-आजम में भी अपनी तकनीक से लोगों को हैरान कर दिया था. उन्होंने इसी फिल्म के गाने ए मोहब्बत जिंदाबाद के लिए कोरस पार्ट के लिए 100 म्यूजिशिन्स का इस्तेमाल किया था. मुगल-ए-आजम में 'प्यार किया तो डरना क्या' गाने में ईको इफेक्ट लाने के लिए नौशाद ने लता मंगेशकर को बाथरूम में खड़े होकर गाने के लिए कहा था.

नौशाद एक कवि भी थे और उन्होंने उर्दू कविताओं की एक किताब लिखी थी, जिसका नाम है 'आठवां सुर'. उन्हें भारतीय सिनेमा में संगीत के योगदान के लिए 1981 में 'दादा साहेब फाल्के' सम्मान से नवाजा गया. साल 1992 में उन्हें भारत सरकार ने 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था.

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