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महात्मा गांधी के पोते से थी Arvind Trivedi की राजनीतिक लड़ाई, चुनाव में 'रावण' की हुई थी जीत

aajtak.in
  • नई द‍िल्ली ,
  • 06 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST
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लंकाध‍िपति 'लंकेश' या कहें 'रावण' बनकर जनता के दिल में गहरी छाप छोड़ने वाले अरव‍िंद त्रिवेदी का 82 की उम्र में निधन हो गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक अरव‍िंद लंबे समय से बीमार थे और बीती रात दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्होंने अंतिम सांसे लीं. अरव‍िंद ने बड़े और छोटे पर्दे पर कई किरदार निभाए और रावण के पात्र से पहचान प्राप्त की. अपने कर‍ियर के सुनहरे दौर को जीने के बाद अरव‍िंद ने राजनीतिक खेमे में भी झंडे गाड़े थे.

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1987-1988 तक प्रसार‍ित रामायण ने शो के कलाकारों को ख्याति मिली. सीता के रोल में दीप‍िका च‍िखल‍िया को भारत की जनता माता सीता का दर्जा देने लगे. उन्होंने अभ‍िनय के बाद राजनीति का रुख किया और उन्हीं के साथ-साथ 'लंकेश' यानी अरव‍िंद त्रिवेदी भी राजनीति के अखाड़े में उतरे. 
 

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अरव‍िंद त्रिवेदी ने गुजरात के साबरकांठा लोकसभा सीट से भाजपा की ट‍िकट पर चुनाव लड़ा था. उन्होंने अपने चुनावी कैंपेन में 'राम मंद‍िर' का मुद्दा रखा था. राम मंद‍िर का मुद्दा आज भी बहस का सबसे बड़ा मुद्दा है. और रामायण जैसे लोकप्र‍िय धारावाह‍िक से पॉपुलर होने के बाद अध‍िकांश वोट 'रावण' के हक में नजर आ रहे थे. 

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जब टीवी के रावण अरव‍िंद त्रिवेदी भाषण देने मंच पर उतरे तो उन्होंने कहा- 'राम का विरोध करने का पर‍िणाम मुझसे बेहतर कौन जान सकता है'. उनके शब्दों में दम था, इसल‍िए रावण के किरदार पर पहले से दिल हार चुकी जनता एक बार फिर 'रावण' के भाषण से मंत्रमुग्ध हो गई. 

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दिलचस्प बात ये थी कि अरव‍िंद की टक्कर महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी से थी. एक ओर रामायण के रावण और दूसरी ओर महात्मा गांधी के पोते. दो दिग्गज शख्स‍ियत के बीच जनता ने अरव‍िंद को अपना राजा चुना और चुनाव में 'रावण' ने अपनी जीत दर्ज की. अरव‍िंद को एक लाख 68 हजार वोट अध‍िक मिले. 
 

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अरव‍िंद त्रिवेदी ने अपने कार्यकाल को पूरा किया और फिर 1996 में दोबारा उसी सीट से चुनाव लड़ा. लेक‍िन इस बार उनकी किस्मत इतनी मजबूत नहीं थी. 1996 के चुनाव में अरव‍िंद को कांग्रेस की निशा अमरसिंह चौधरी से श‍िकस्त मिली. 

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राजनीतिक हार के बाद अरव‍िंद ने 1998 में एक गुजराती फिल्म 'देश रे जोया दादा परदेश जोया' में काम किया. दादा की भूमिका में उन्हें लोगों ने बहुत प्यार दिया. ये अरव‍िंद के फिल्मी कर‍ियर की आख‍िरी फिल्म थी, जिसके बाद उन्होंने फिल्मों से सन्यास ले लिया.

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छोटे पर्दे पर रामायण के अलावा अरव‍िंद विक्रम बेताल और विश्वामित्र सीर‍ियल में काम कर चुके हैं. एक इंटरव्यू में उनकी नातिन डॉ. अनेरी ने बताया था कि उनके नाना अरव‍िंद त्रिवेदी को रावण के अलावा एक और रोल निभाने की दिली तमन्ना थी. अरव‍िंद स्वामी विवेकानंद को पर्दे पर पेश करना चाहते थे. हालांकि उनकी यह ख्वाह‍िश अधूरी ही रह गई.   

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अरव‍िंद त्रिवेदी ने अपने पूरे कर‍ियर में कम से कम 300 हिंदी और गुजराती फिल्मों में काम किया है. गुजराती सिनेमा के प्रति उनका योगदान हमेशा याद किया जाता रहेगा. 

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गुजराती सिनेमा में उन्होंने कई वर्षों तक योगदान दिया है. गुजराती दर्शकों के बीच उन्हें अच्छी खासी पहचान मिली और अपने शानदार अभ‍िनय के लिए वे सम्मान‍ित भी किए जा चुके हैं.
 

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