
21 अप्रैल 2019 को श्रीलंका में एक के बाद एक नौ आत्मघाती बम विस्फोट हुए. इसका सेंटर तो कोलंबो था, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में छापेमारी के दौरान विस्फोटक मिले. चरमपंथी हमले में करीब पौने 3 सौ लोगों की मौत हुई, और 5 सौ लोग घायल हुए. इनमें भारतीयों समेत विदेशी नागरिक भी थे. अब हमले की पांचवी बरसी के पास आने पर श्रीलंकन कैथोलिक चर्च ने एक बड़ा एलान किया. वो हमले में मारे लोगों को संत का टाइटल देगा.
ईसाई धर्म में संत कहलाने की प्रोसेस
लगभग सारे ही धर्मों में संत के दर्जे की बात होती है. ये वो पवित्र शख्स होता है, जो धर्म और लोगों के लिए काम करता है. ईसाई धर्म में रोमन कैथोलिक चर्च ये तय करता है कि किसे संत की उपाधि दी जाए, और किसे नहीं. वो एक प्रोसेस के जरिए इसे वैरिफाई करता है. माना जाता है कि चर्च ने अब तक करीब 10 हजार लोगों को संत माना है.
कौन होते हैं संत
कैथोलिक धर्म में संत वो है, जो मरीज की बड़ी बीमारियां जादुई ढंग से ठीक कर देता है, या दूसरे चमत्कार करता है. संत को मृत्यु के बाद कथित तौर पर स्वर्ग ही मिलता है. ऐसे संतों के नाम बुक ऑफ सेंट्स में लिखे हुए हैं.
क्या होता है अगर कोई संत का दर्ज पा जाए
क्रिश्चियैनिटी में इस प्रक्रिया को कैननजेशन कहते हैं, मतलब मौत के बाद चमत्कारिक या पवित्र व्यक्ति को संत का दर्जा देना. कैननजेशन के बाद संत का नाम किताब में शामिल कर लिया जाता है और सभाओं में भी बोला जाता है.
इसके बाद उस संत का नाम प्रार्थनाओं में लिया जाने लगता है.
उसके नाम पर चर्च का नाम रख दिया जाता है.
यहां तक कि उसकी तस्वीर लगाई जाती है, जिसके पीछे रोशनी या प्रभामंडल बना होता है.
बपतिस्मा के बाद पेरेंट्स बच्चों को भी उस संत का नाम दे सकते हैं. ये ऐसे ही है, जैसे ईश्वर के नाम पर बच्चों का नामकरण. संत के जन्म और मृत्यु की जगह तीर्थ कहलाने लगती है.
कैसे तय होता है कि कौन संत कहलाएगा
इसका एक आसान नियम ये है कि मौत के पांच सालों बाद ही किसी को संत की उपाधि मिल सकती है. इस दौरान पता किया जाता है कि मृत शख्स ने कोई गलत काम तो नहीं किया. यानी ये एक तरह का वैरिफिकेशन पीरियड होता है. कई बार पांच साल से पहले ही कोई संत माना जा सकता है, जैसे मदर टेरेसा के साथ हुआ.
होती है सालों तक जांच
चर्च के लोकल अधिकारी उस व्यक्ति की सारी जांच-पड़ताल करते हैं. सारे सबूत जुटाए जाते हैं. इसे पॉस्ट्युलेशन कहते हैं. वेटिकन सिटी में अधिकारियों का एक ग्रुप होता है, जो इसी पर काम करता है. इनका काम संत बनने से पहले किसी की सारी पड़ताल करवाना है. उनकी रजामंदी के बाद ही ऐसा हो सकता है. सबूत जमा होने के बाद 9 धार्मिक गुरु दस्तावेजों की जांच करते हैं. अगर बहुमत रहा तो डॉक्युमेंट पोप के पास चले जाते हैं. पोप की हामी के बाद शख्स को सम्माननीय का दर्जा मिलता है, लेकिन संत का अब भी नहीं.
संत कहलाने के लिए दो पड़ाव अभी बाकी हैं. इसमें कोई व्यक्ति संत क्यों है, सामान्य इंसान क्यों नहीं, इसे साइंस के नजरिए से देखा जाता है. साइंटिफिक कमीशन बैठती है, जो तय करती है कि मृतक ने जो काम किए, वो चमत्कार से कम नहीं थे. कमीशन के बाद पोप भी इसे मानते हैं.
इसके बाद है आखिरी चरण
इसमें दूसरा कोई चमत्कार देखा जाता है. अगर चमत्कार इतना बड़ा है कि साइंस की समझ में न आए तो मान लिया जाता है कि फलां व्यक्ति संत है और खुद ईश्वर ने उससे ये काम करवाए. जैसे मदर टेरेसा के मामले में पोप और बाकी अधिकारियों ने माना कि उन्होंने एक बंगाली महिला के पेट का ट्यूमर, और एक फ्रांसीसी पुरुष का ब्रेन ट्यूमर ठीक कर दिया था.
पोप इसके बाद सभा करते और संतों का नाम और उनके चमत्कारों की बात बताते हैं. ये आधिकारिक एलान है.
शहीदों को संतों का दर्जा क्यों
श्रीलंकाई हमले में मारे सैकड़ों लोगों को एक साथ संत कैसे बनाया जा सकता है? ये सवाल लगातार आ रहा है. मारे गए लोग असल में शहादत के चलते संतों की श्रेणी में आने जा रहे हैं. इसमें चमत्कार की जांच-पड़ताल नहीं होगी.
वो गुट जिसने आतंकी हमला किया
जाते हुए उस चरमपंथी गुट के बारे में भी जानते चलें, जिसपर आत्मघाती हमलों का आरोप लगा. नेशनल तौहीद जमात नाम का ये गुट इस्लामिक एक्सट्रीमिस्ट समूह है. ये मानते हैं कि ऊपरवाला एक ही है, और वो है अल्लाह. इसकी विचारधारा ISIS से मिलती है. संगठन को खुलकर सामने आए एक दशक से भी कम समय हुआ. बौद्ध-बहुल इस देश में फैल चुका ये संगठन बौद्धों पर भी हमले कर चुका.