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गोल्डन पासपोर्ट में ऐसा क्या है, जो अमीर मुल्कों के लोग भी उसके लिए होड़ लगाए रहते हैं, कौन जारी करता है ये?

पासपोर्ट के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन हाल में एक और टर्म सुनाई पड़ रही है- गोल्डन पासपोर्ट. कई देश ये पासपोर्ट जारी कर रहे हैं. अगर आपके पास पैसे हों तो तय राशि देकर गोल्डन पासपोर्ट खरीद लीजिए. इसके बाद आप उस देश के नागरिक बन जाएंगे और सारी सुविधाएं ले सकेंगे. मतलब ये नागरिकता बेचने की तरह है.

कई देश निवेश पर नागरिकता की स्कीम चला रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash) कई देश निवेश पर नागरिकता की स्कीम चला रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:02 PM IST

कुछ समय पहले यूरेशियन देश साइप्रस से एक खबर आई. इसके मुताबिक साल 2014 से अगले 6 सालों के भीतर 66 भारतीयों ने साइप्रस गोल्डन पासपोर्ट हासिल किया. इनमें कई बड़े नाम बताए जा रहे हैं. वाकई में ऐसा हुआ है, या नहीं, फिलहाल इसकी सच्चाई सामने आने में समय लग सकता है, लेकिन गोल्डन पासपोर्ट के बारे में बात काफी हो रही है. दुनिया के बहुत से देश लगातार इस स्कीम का विरोध करते आए हैं. समझिए, क्या है ये स्कीम और किसलिए बखेड़ा हो रहा है. 

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क्या है गोल्डन पासपोर्ट

यह एक तरह की इनवेस्टमेंट स्कीम है. इसके तहत कोई भी किसी खास देश में पैसों का निवेश करके, या प्रॉपर्टी खरीदकर वहां की सिटिजनशिप ले सकता है. यहां बता दें कि नागरिकता के लिए दुनिया के ज्यादातर देशों में अलग नियम है. केवल प्रॉपर्टी लेने या इन्वेस्टमेंट से कोई सिटिजन नहीं बन जाता, लेकिन कई देश अपने यहां निवेश बढ़ाने के लिए ये तरीका अपना रहे हैं. 

ये देश हैं सबसे ऊपर

- ऑस्ट्रिया में इन्वेस्टमेंट का कोई तय पैमाना नहीं, जबकि यहां के नागरिक होकर आप 180 देशों में वीजा-फ्री या वीजा-ऑन-अराइवल सफर कर सकते हैं. 

- माल्टा में 5.4 करोड़ रुपए के निवेश पर नागरिकता मिल सकती है. ये भी टैक्स हेवन है. 

- डॉमिनिका और सेंटर लूसिया में मात्र 83 लाख रुपए में नागरिकता ली जा सकती है. यहां से भी दुनिया के ज्यादातर देशों की वीजा-फ्री यात्रा की जा सकती है. 

- तुर्की भी आजकल इस लिस्ट में है. यहां 3.3 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट करना होता है.

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साइप्रस भी इनमें से एक था. इन्वेस्टमेंट स्कीम के तहत वो धड़ाधड़ विदेशियों को अपनी नागरिकता देने लगा. हालांकि साल 2020 में इसे बंद करना पड़ा. इसकी वजह ये थी कि देश में कथित तौर पर आपराधिक लोग बसने लगे थे. इससे साइप्रस के इंटरनेशनल रिश्तों पर भी असर होने लगा था. ये तो हुई साइप्रस की बात, लेकिन अब भी बहुत से देश इस तरह से नागरिकता बेच रहे हैं. 

क्यों बेच रहे हैं अपनी नागरिकता

इसमें ज्यादातर ऐसे देश हैं, जिनके पास जगह की कमी नहीं. अपने यहां निवेश को प्रमोट करने के लिए ये एक तरह से सिटिजनशिप बेच रहे हैं. लगभग 20 ऐसे देश हैं. इसमें कुछ देशों में तय है कि कितने निवेश के बाद वे नागरिकता देंगे, वहीं कई देश अपने यहां रिसर्च या चैरिटी में पैसे लगाने के लिए कहते हैं. सबकी अलग-अलग शर्तें हैं, जो कुछ लाख से शुरू होकर कई करोड़ तक जाती हैं. 

कब हुई थी शुरुआत

पासपोर्ट फॉर सेल जैसी इस स्कीम की शुरुआत उन देशों ने की, जो ब्रिटेन से आजाद हुए थे. जैसे सेंटर कीट्स को ही लें. आजादी के बाद उसे हर चीज बाहर से खरीदने की जरूरत पड़ रही थी. सरकार के पास पैसे थे नहीं. ऐसे में वो नागरिकता बेचने लगी, बदले में लोग देश में पैसे लगाने लगे.

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क्यों खरीद रहे हैं लोग

- अधिकतर देशों का पासपोर्ट काफी ताकतवर है. ऐसे में वहां का नागरिक बनने पर बहुत से देश वीजा-फ्री एंट्री देने लगते हैं. 

- अगर साइप्रस या फिर मोनैको की बात करें तो ये टैक्स हेवन हैं. यहां बिजनेस करने पर टैक्स नहीं देना होता.
 
- आपराधिक या राजनैतिक तौर पर संदेहास्पद लोग भी यहां जाकर रहने लगें तो भारत का कानून उनपर लागू नहीं हो सकेगा. यानी ये जगहें अपराधियों के लिए शरणगाह बन सकती हैं. 

- कुछ महीनों से लेकर अधिकतम सालभर के अंदर निवेशकर्ता के पूरे परिवार को नागरिकता मिल जाती है. 

अमेरिकी लोग खरीदने में सबसे आगे 

रिसर्च फर्म हेनली एंड पार्टनर्स का साल 2022 का डेटा कहता है कि सबसे ज्यादा अमेरिकी लोग गोल्डन पासपोर्ट खरीद रहे, या खरीदने की कतार में हैं. साल 2019 से लेकर अगले दो सालों में अमेरिका से आ रही इंक्वायरी में 447 प्रतिशत का उछाल आया. इससे पहले चीन और रूस के लोग गोल्डन पासपोर्ट खरीदने में सबसे आगे थे. 

क्यों हो रहा विरोध

सिर्फ ज्यादा पैसों के जरिए संदेहास्पद लोग भी किसी देश के नागरिक बन सकते हैं. ये बात पहले-पहले यूरोपियन यूनियन को खटकी. उसने अपने देशों से अपील की कि वे इनवेस्टर्स को नागरिकता बेचना बंद कर दें. इसके तुरंत बाद बल्गेरिया. आयरलैंड और पुर्तगाल ने अपने यहां इसे बंद करने की बात कही. ईयू का एक डर ये भी है कि उसके मूल निवासी कम हो रहे हैं, जबकि बाहरी लोग बढ़ रहे हैं.

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