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अब AI के जरिए हमास को मिटाएगा इजरायल, इंसानी युद्ध से कितना घातक हो सकता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस?

इजरायल ने एक खास सिस्टम तैयार किया, जिससे वो एक दिन में हमास के सौ से ज्यादा ठिकानों को टारगेट कर सकेगा. यहां तक कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से ये भी पता लग जाएगा कि अटैक में कितनों की मौत हुई है. कथित तौर पर इजरायल डिफेंस फोर्स ने इसका इस्तेमाल शुरू भी कर दिया है. ये अपनी तरह की पहली लड़ाई है, जो जंग का चेहरा बदल देगी.

इजरायल और हमास का युद्ध दो महीनों से जारी है. सांकेतिक फोटो (AP) इजरायल और हमास का युद्ध दो महीनों से जारी है. सांकेतिक फोटो (AP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:51 PM IST

इजरायल और हमास की जंग से बीच गाजा की हेल्थ मिनिस्ट्री ने दावा किया कि उसके 17 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं. इस बीच ये खबर भी आ रही है कि IDF अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर रही है ताकि सुरंगों में छिपे आतंकियों और गोला-बारूद पर निशाना साधा जा सके. इसे हसबोरा कहा जा रहा है, हिब्रू में जिसका अर्थ है- द गॉस्पल. इससे न केवल टारगेट पहचाना जा सकेगा, बल्कि कैजुअलिटी का भी अनुमान मिल जाएगा. 

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इजरायली सेना मान चुकी है कि घनी आबादी और सुरंगों के चलते हमास आतंकियों को खोजना आसान नहीं. यही वजह है कि करीब दो महीने युद्ध के बाद भी हमास के आतंकी खत्म नहीं हो सके. ह्यूमन इंटेलिजेंस की क्षमता जहां सीमित है, वहीं AI की गॉस्पल तकनीक से रोज 100 टारगेट पता लग सकते हैं.  

माना जा रहा है कि गाजा में 5 सौ किलोमीटर में ही 13 सुरंगों का जाल फैला हुआ है. आमतौर पर ये सुरंगें 30 मीटर तक गहरी होती हैं. लेकिन कुछ-कुछ सुरंगें 70 मीटर तक गहरी हैं. इन सुरंगों को इजरायली बमबारी से बचाने के लिए मजबूत कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया है. यहां बिजली भी है. यही सुरंगें अब इजरायली डिफेंस फोर्स के लिए खतरा बन गई हैं. इजरायल लगातार सुरंगों को खत्म कर रहा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग भी इसी का हिस्सा है. 

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ये सिस्टम कैसे काम करता है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी, लेकिन बाकी AI की तरह ही ये सिस्टम भी मशीन लर्निंग एल्गोरिदम पर आधारित होगा.

खुद IDF की आधिकारिक वेबसाइट पर गॉस्पल के बारे में लिखा हुआ है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पहले अलग-अलग सूत्रों से जानकारी जमा करता है. इसमें ड्रोन फुटेज, बाधित कम्युनिकेशन्स और सर्विलांस डेटा शामिल हैं. इन सबको देखते हुए नतीजा निकाला जाता है कि सेना को कहां हमला करना चाहिए. इससे एक तरह से युद्ध ऑटोमेटेड हो चुका, जिसमें एक तरफ इंसान हैं, दूसरी तरफ मशीनें. 

अब तक लड़ाई में इंसान आपस में लड़ते रहे. तकनीकें इसमें हमला करने या संदेश पहुंचाने तक ही सीमित थीं. लेकिन इजरायल के प्रयोग से कई नई चीजें होंगी. अगर देश तकनीकी और इकनॉमिक तौर पर मजबूत है तो वो ऐसा सिस्टम तैयार कर लेगा. फिर उसके सैनिक सुरक्षित रहते हुए दुश्मन सेना या ठिकानों को तबाह कर सकेंगे. तो इस तरह ये इंसानों और मशीनों की लड़ाई हो जाएगी. 

लंदन स्थित नॉन-प्रॉफिट कंपनी एयरवॉर्स ऐसी लड़ाइयों पर नजर रखती हैं, जिसमें एयर स्ट्राइक शामिल हो. इसका दावा है कि मशीन से लड़ना ज्यादा खतरनाक है क्योंकि मशीनें गलत डेटा भी दे सकती हैं. ये संस्था नागरिकों की मौत का आंकड़ा देती है. इसका कहना है कि इस्लामिक स्टेट पर खत्म करने के दौर में मशीन लर्निंग का खूब उपयोग हुआ, इसमें सिर्फ आतंकी ही नहीं मरे, बल्कि सिविलियन कैजुएलिटी भी हुई. यानी अगर मशीन पर पूरी तरह यकीन किया जाएगा तो वो भ्रामक जानकारी भी दे सकती है, जिसके नतीजे जाहिर तौर पर खराब ही होंगे. साथ ही, सैन्य कैजुएलिटी न होने की वजह से देश ज्यादा से ज्यादा लड़ाई में शामिल होना चाहेंगे, जिसका नतीजा खराब ही होगा. 

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किन देशों के पास है मिलिट्री AI 
इस बारे में पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन अमेरिका ने कई बार खुद ही इसपर हाभी भरी कि वो सेना में मशीन को शामिल कर रहा है. सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी के मुताबिक, अमेरिका के अलावा चीन भी इसपर खरबों डॉलर लगा चुका है. फिलहाल दोनों ही देश रिसर्च पर ध्यान दे रहे हैं. रशियन मिलिट्री ऑफ डिफेंस के पास भी रोबोटिक कॉम्बेट सिस्टम है. इसके अलावा लगभग सारे मजबूत देश अपना सैन्य सिस्टम मजबूत करने के सिलसिले में मिलिट्री AI पर काम कर रहे हैं.

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