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केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक? आखिर क्या थी परेशानियां

केंद्र सरकार ने 20 मार्च को फैक्ट चेक यूनिट को बनाने का नोटिफिकेशन जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर शुक्रवार को रोक लगा दी. फैक्ट चेक यूनिट केंद्र सरकार के कामकाज से जुड़ी खबर को फर्जी, गलत या भ्रामक बता सकती है.

केंद्र सरकार ने 20 मार्च को फैक्ट चेक यूनिट का नोटिफिकेशन जारी किया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर) केंद्र सरकार ने 20 मार्च को फैक्ट चेक यूनिट का नोटिफिकेशन जारी किया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST

केंद्र की मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने फैक्ट चेक यूनिट के नोटिफिकेशन पर फिलहाल रोक लगा दी है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने ये फैसला दिया है.

केंद्र सरकार ने 20 मार्च को आईटी रूल्स 2021 के तहत, पीआईबी के अंडर में फैक्ट चेक यूनिट बनाने का नोटिफिकेशन जारी किया था.

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि फैक्ट चेक यूनिट का नोटिफिकेशन बॉम्बे हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले के बीच आया है, इसलिए इस पर अभी रोक लगनी चाहिए. अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है और इस पर नियम 3(1)(b)(5) के असर का विश्लेषण हाईकोर्ट में जरूरी है. इसलिए जब तक हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक नोटिफिकेशन पर रोक रहेगी.

केंद्र सरकार ने आईटी रूल्स, 2021 के नियम 3(1)(b)(5) में दी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ही पीआईबी की फैक्ट चेक यूनिट को केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट के रूप में नोटिफाई किया था.

फैक्ट चेक यूनिट... क्या?

पिछले साल केंद्र सरकार ने इंटरमीडियरी गाइडलाइन और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड रूल्स, 2021 में संशोधन किया था. ये नियम इंटरमीडियरीज को नियंत्रित करते हैं, जिनमें टेलीकॉम सर्विस, वेब होस्टिंग सर्विस, फेसबुक-यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और गूगल जैसे सर्च इंजन आते हैं.

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इन संशोधित नियमों में कहा गया कि सरकार के पास एक फैक्ट चेक यूनिट बनाने का अधिकार होगा. अगर यूनिट को लगता है तो वो केंद्र सरकार के कामकाज से जुड़ी खबर को 'फर्जी', 'गलत' या 'भ्रामक' बता सकती है.

अगर किसी खबर या पोस्ट को 'फर्जी', 'गलत' या 'भ्रामक' बताया जाता है तो फिर उसे हटाना होगा. न्यूज वेबसाइट सीधे इसके दायरे में नहीं आते, लेकिन सोशल मीडिया वेबसाइट और वेब होस्टिंग सर्विस आती हैं. इसका मतलब ये हुआ कि गलत बताई गई खबर को इंटरनेट से हटाना होगा.

हालांकि, आईटी नियमों के तहत इंटरमीडियरीज को लीगल इम्युनिटी यानी कानूनी प्रतिरक्षा भी मिली हुई है. लेकिन उन्हें ये भी ध्यान रखना होगा कि कोई गलत, फर्जी या भ्रामक कंटेंट पोस्ट न हो. 

फैक्ट चेक यूनिट की तरफ से अगर किसी कंटेंट या पोस्ट को फर्जी, गलत या भ्रामक बताया जाता है और तब भी उसे हटाया नहीं जाता, तो फिर इंटरमीडियरी के खिलाफ लीगल एक्शन लिया जा सकता है.

कोर्ट क्यों पहुंचा मामला?

केंद्र सरकार तर्क दे रही है कि फैक्ट चेक यूनिट से सोशल मीडिया पर फर्जी, गलत और भ्रामक खबरों पर लगाम लगाई जा सकेगी. हालांकि, इसे लेकर कुछ चिंताएं भी सामने आईं हैं.

स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा और एडिटर्स गिल्ड ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. संपादकों की संस्था एडिटर्स गिल्ड ने सरकार से 2023 के संशोधन को वापस लेने की मांग की थी.

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कुणाल कामरा ने कोर्ट में तीन दलीलें रखी थीं. पहली- फैक्ट चेक यूनिट सिर्फ केंद्र सरकार के लिए होगी, जबकि इसे सबके लिए होना चाहिए. दूसरी- फैक्ट चेक यूनिट वही करेगी, जो केंद्र सरकार कहेगी. और तीसरी- चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में फैक्ट चेक यूनिट केंद्र का एक टूल बन जाएगी, जिससे तय होगा कि वोटर्स तक कौनसी जानकारी पहुंचाई जाए.

कामरा के वकील डेरियस खंबाटा ने कोर्ट में ये भी दलील दी थी कि फैक्ट चेक यूनिट का मैकेनिज्म जानकारी पर केंद्र को नियंत्रण देता है, जिससे अपने मामले में सरकार खुद जज बन जाएगी.

वहीं, एडिटर्स गिल्ड ने इस संशोधित नियमों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया था. एडिटर्स गिल्ड के वकील ने कहा था कि चुनावी प्रक्रिया में दो पक्ष होते हैं और ये जनता के ऊपर होता है कि वो इनमें से किसी एक को चुने. ऐसे में इन नियमों को लागू करने का ये सबसे खराब समय है, जब जनता को 5 साल के कामकाज पर फैसला लेना है.

हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया था?

केंद्र सरकार की ओर से आईटी रूल्स, 2021 में संशोधन को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. मामला जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस नीला गोखले की बेंच के पास गया. 

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इस बेंच ने मामले पर बंटा हुआ फैसला दिया. जस्टिस जीएस पटेल ने संशोधन को रद्द करने का फैसला सुनाया. जबकि, जस्टिस गोखले ने संशोधन के पक्ष में फैसला दिया. 

बाद में इस बेंच में जस्टिस एएस चंदूरकर को भी शामिल किया गया. इस बेंच ने 13 मार्च को अंतरिम फैसला दिया. अंतरिम फैसले में कोर्ट ने संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. साथ ही केंद्र सरकार को फैक्ट चेक यूनिट बनाने का नोटिफिकेशन जारी करने की इजाजत भी दे दी थी.

दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से अभी कोई अंतिम फैसला नहीं आया है. 13 मार्च को हाईकोर्ट ने अंतरिम फैसला दिया था. इसके बाद ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

केंद्र का क्या है कहना?

केंद्र सरकार लंबे समय से फैक्ट चेक यूनिट को बनाने की बात कह रही थी. सरकार का तर्क है कि इससे सोशल मीडिया पर फैल रही झूठी और भ्रामक खबरों पर लगाम लगाई जा सकेगी.

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि फैक्ट चेक यूनिट सिर्फ सरकार के कामकाज से जुड़ी खबरों की निगरानी करेगी. उन्होंने कहा था कि अगर कोई प्रधानमंत्री की आलोचना करता है, तो वो इसके दायरे में नहीं आएगा. 

एसजी मेहता ने फेसबुक पर हाल ही में चली कुछ फर्जी खबरों का उदाहरण देते हुए फैक्ट चेक यूनिट के गठन को जरूरी बताया था. उन्होंने कहा था कि अगर फैक्ट चेक यूनिट किसी खबर को फ्लैग करती है, तो कंपनियों को उस पोस्ट के नीचे एक डिस्क्लेमर लगाना होगा और बताना होगा कि ये खबर गलत है.

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उन्होंने इन नियमों का बचाव करते हुए समझाया था, 'मान लीजिए कि मैं फेसबुक हूं और मुझे लगता है कि ये खबर झूठी नहीं है और मैं डिस्क्लेमर नहीं लगाता हूं, तो उसका क्या नतीजा होगा? अगर किसी व्यक्ति को उस पोस्ट से कोई नुकसान होता है और वो कोर्ट का रुख करता है तब इंटरमीडियरीज ये नहीं कह पाएंगी कि उनके पास लीगल इम्युनिटी है. तब उन्हें फर्जी पोस्ट का बचाव करना होगा.'

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