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दुनियाभर की शांति का जिम्मा लेने वाला UN क्यों नहीं रोक पा रहा जंग, क्या कर रहा है इजरायल-फिलिस्तीन में?

हमास ने जब इजरायली नागरिकों पर हमला किया, तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि युद्ध इतना भयावह रूप ले लेगा. इजरायल फिलहाल मूड में है कि हमास को मिट्टी में मिला दे. असर दोनों तरफ दिख रहा है. बर्बादी की दिल दहलाने वाली तस्वीरें आ रही हैं. लेकिन दुनियाभर में शांति का जिम्मा लेने का दावा करने वाला संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशन्स) पिक्चर से लगभग गायब है.

इजरायल और फिलिस्तीन दोनों तरफ तबाही मची हुई है. सांकेतिक फोटो (AP) इजरायल और फिलिस्तीन दोनों तरफ तबाही मची हुई है. सांकेतिक फोटो (AP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 2:02 PM IST

शांति की बात छिड़ते ही यूनाइटेड नेशन्स का नाम आ जाता है. वो गरीब देशों की मदद करता है. युद्ध-प्रभावित देशों से दोस्ती की अपील करता है. यूएन का असर इतना ज्यादा है कि देश इसकी सदस्यता लेने के लिए परेशान रहते हैं. लेकिन सवाल ये है कि इंटरनेशनल पीस के बढ़-चढ़कर दावे करने वाला यूएन फिलहाल कहां है. क्या फिलिस्तीन और इजरायल की जंग में वो मध्यस्थता कर रहा है, या फिर लोगों को किसी तरह की मदद दे रहा है?

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फिलहाल क्या हैं हालात

हाल ही में यूनाइटेड नेशन्स सिक्योरिटी काउंसिल (UNSC) की 90 मिनट लंबी बैठक हुई, जिसमें ताजा युद्ध पर चर्चा हुई. 15 देशों ने मिलकर हमास को बुरा-भला कहा, और इजरायल से शांति की अपील की. इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ. यूएन की अपील हवा में लटककर रह गई. इधर जंग और भीषण होती जा रही है. यहां तक कि पड़ोसी और दूर-दराज के देश भी आग में घी डालने में जुट गए हैं. बिल्कुल यही हाल रूस-यूक्रेन लड़ाई में भी हुआ. संयुक्त राष्ट्र कहता रहा और युद्ध अब तक चला आ रहा है. 

दो देशों की लड़ाई में यूएन क्यों बनता है मुखिया

जैसे घर के हेड का काम परिवार को चलाए रखना होता है, वैसा ही जिम्मा यूएन का भी है. साल 1945 जब ये इंटरनेशनल संगठन बना तो सबसे बड़ा मकसद था शांति बनाए रखना. दुनिया कुछ ही समय के भीतर दो विश्व युद्ध झेल चुकी थी. ऐसे में ताकतवर देशों ने मिलकर तय किया कि एक अंब्रेला बनाया जाए और कई काम किए जाएं. साथ ही उन देशों पर शांति के लिए दबाव बनाया जाए जो लड़ाई-भिड़ाई का इरादा रखते हों.

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शुरुआत 50 देशों से हुई, जो दो चीजों पर फोकस कर रहे थे- एक युद्ध से हर हाल में बचना और ह्यूमन राइट्स को बचाए रखना. धीरे-धीरे इसमें 193 देश शामिल हो गए.

इसके पास है शांति का ठेका

यूएन की एक सिक्योरिटी काउंसिल है, जिसमें 15 सदस्य हैं. ये संगठन का सबसे शक्तिशाली हिस्सा माना जाता है, जो किसी देश पर पाबंदियां लगा सकता है या मिलिट्री दखल भी दे सकता है. 

ये हिस्सा सबसे विवादित भी रहा

अक्सर कहा जाता रहा कि सिक्योरिटी काउंसिल बड़े देशों की गलतियों को अनदेखा करती है. मजे की बात ये है कि दुनिया से शांति की अपील करने वाली इस शाखा के परमानेंट सदस्य वो देश हैं, जिन्होंने दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान तमाम कत्लेआम मचाया, मसलन- अमेरिका, ब्रिटेन, चीन फ्रांस और रूस (तब सोवियत संघ). 

क्या यूएन चाहे तो युद्ध रुकवा सकता है? 

इसका जवाब जानने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं ताकि देख सकें कि क्या ये संगठन कभी युद्ध रुकवा सका है. जवाब है- नहीं. पहला मामला इजरायल-फिलिस्तीन का ही लें. साल 1948 में यहूदी देश बनने के बाद से लगातार इजरायल और फिलिस्तान के बीच तनाव रहा. इससे अगले तीन ही सालों के भीतर हजारों नागरिक मारे गए, और फिलिस्तीन के लाखों लोग शरणार्थी बन गए. यूनाइटेड नेशन्स की सिक्योरिटी काउंसिल ने कई बार कोशिश की लेकिन लड़ाई अब भी जारी है.

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- रूस और यूक्रेन के बीच भी इसने दखल देने की कोशिश की, लेकिन फायदा नहीं हुआ. 

- इराक और ईरान के बीच करीब 8 सालों तक युद्ध चला, 10 लाख लोग मारे गए. लेकिन यूएन खास कुछ नहीं कर सका. 

-  वियतनाम और अमेरिका की जंग को रोकने में ये पूरी तरह से नाकामयाब रहा. 

- कई अफ्रीकी देशों के गृहयुद्ध में भी सिक्योरिटी काउंसिल ने अंदर जाना चाहा, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, जैसे सोमालिया. 

क्या है फेल्योर की वजह

इसका कोई पक्का कारण नहीं, लेकिन एक्सपर्ट मानते हैं कि सारी ताकत दो-चार देशों के पास रह जाना ही असल गड़बड़ी है. वर्तमान में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस को वीटो पावर मिला हुआ है. ये सभी देश अपनी-अपनी तरह से यूएन को देख रहे हैं. सबके अपने हित भी हैं. जैसे कोई किसी एक देश को सपोर्ट करेगा, तो दूसरा किसी और को. ऐसे में कोई भी बड़ा फैसला यूनाइटेड नेशन्स की सिक्योरिटी काउंसिल नहीं ले पाती है. 

फिर UN आखिर करता क्या है

उसका काम फिलहाल युद्ध से जूझ रहे, या गरीब देशों को खाना-पानी और दवाएं पहुंचाने तक सीमित दिख रहा है. वो पैसों की मदद भी करता है. लेकिन सीधे-सीधे जंग रोकने की ताकत का कोई उदाहरण वो अब तक नहीं दे सका है. 

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गाजा में क्या कर रहा है

यूनाइटेड नेशन्स रिलीफ एंड वर्क्स एजेंसी फिलिस्तीन में पहले से एक्टिव है. यहां  13 हजार के करीब नेशनल और इंटरनेशनल स्टाफ हैं, जो लोगों को शिविरों तक ले जा रहे हैं. खाना और बेसिक जरूरत की सारी चीजें मुहैया करवा रहे हैं. मोबाइल टॉयलेट्स बन चुके हैं. शिविरों की संख्या बढ़ाई जा रही है. यूएन का पीसकीपिंग मिशन डरे हुए लोगों को बाहर निकलने में भी मदद कर रहा है. इसका दावा है कि इजरायल- लेबनान बॉर्डर पर उसके लोग चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं. 

ह्यूमेनिटेरियन कॉरिडोर बनाया जा रहा 

गुस्साए हुए इजरायल ने गाजा तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद कर दिए. इससे मानवाधिकार कार्यकर्ता और नई सप्लाई भी यहां तक नहीं जा पा रही. इस बीच यूएन की कई एजेंसियां और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन कोशिश कर रहे हैं कि ह्यूमेनिटेरियन कॉरिडोर बनाकर वहां तक मदद पहुंचाई जा सके. ये जानकारी यूएन की अपनी वेबसाइट पर दी गई है. 

इधर अपनी चुप्पी को लेकर यूएन घिरा हुआ है

संघ की ओर से अब तक शांति पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया. सिर्फ महासचिव एंटोनियो गुटेरेस बयान दिया है, जिसमें वे इजरायल से कानून के तहत एक्शन लेने की गुजारिश करते लग रहे हैं. इसी बात को लेकर सोशल मीडिया पर यूएन की ट्रोलिंग तक हो रही है. इस ट्रोलिंग में मुस्लिम देशों के लीडर आगे हैं, जो यूएन को बेकार कहते हुए उसे खत्म कर देने की बात तक कर रहे हैं. 

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