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क्या होता है परिसीमन जो महिला आरक्षण के लिए है जरूरी, लेकिन विरोध कर रहे हैं दक्षिणी राज्य

अगर संसद के इस विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पास भी हो जाता है तो इसे लागू करने तक की राह में कई रोड़े हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावों में महिलाओं को आरक्षण का फायदा जनगणना और फिर परिसीमन के बाद ही मिलने वाला है और अभी तक न तो जनगणना की तस्वीर साफ है और न इसके बाद होने वाले परिसीमन की...

दक्षिण के राज्यों को परिसीमन से क्या दिक्कत? दक्षिण के राज्यों को परिसीमन से क्या दिक्कत?
सत्यम बघेल
  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 11:48 PM IST

लोकसभा में आज महिला आरक्षण बिल पेश हुआ. कांग्रेस भी इस बिल के समर्थन में है. लेकिन महिला आरक्षण बिल की कहानी इतनी भी आसान नहीं जितनी कि दिख रही है. इस बिल के पारित होने के बाद भी लागू होने तक की राह में कई रोड़े हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावों में महिलाओं को आरक्षण का फायदा जनगणना और फिर परिसीमन के बाद ही मिलने वाला है. 

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अभी तो दूर का ढोल है महिलाओं को आरक्षण

वैसे तो देश में 2021 में ही जनगणना होनी थी, जो कि आज तक हो नहीं पाई है. आगे यह जनगणना कब होगी इसकी भी कोई जानकारी नहीं है. खबरों में कहीं 2027 तो 2028 की बात कही गई है. इस जनगणना के बाद ही परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा, तब जाकर महिलाओं को आरक्षण मिल सकेगा. ऐसे में आइए यह समझ लेते हैं कि परिसीमन आखिर है क्या और यह कैसे होता है? 

क्या होता है परिसीमन? 

बढ़ती जनसंख्या के आधार पर वक्त-वक्त पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है कि हमारे लोकतंत्र में आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके, सभी को समान अवसर मिल सकें. इसलिए लोकसभा अथवा विधानसभा सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित या उनका पुनर्निधारण किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया के तीन मुख्य उदेश्य हैं- 

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1. चुनावी प्रक्रिया को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने के लिए परिसीमन जरूरी होता है. हर राज्य में समय के साथ जनसंख्या में बदलाव होते हैं, ऐसे में बढ़ती जनसंख्या के बाद भी सभी का समान प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निधारण होता है.

2. बढ़ती जनसंख्या के मुताबिक निर्वाचन क्षेत्रों का सही तरीके से विभाजन हो सके, ये भी परिसीमन प्रक्रिया का अहम हिस्सा है. इसका उद्देश्य भी यही है कि हर वर्ग के नागरिक को प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिले. 

3. चुनाव के दौरान 'आरक्षित सीटों' की बात कई बार की जाती है. जब भी परिसीमन किया जाता है, तब अनुसूचित वर्ग के हितों को ध्यान में रखने के लिए आरक्षित सीटों का भी निर्धारण करना होता है.

सीटों के परिसीमन का क्या है नियम?

संविधान का अनुच्छेद 81 कहता है कि देश में लोकसभा सांसदों की संख्या 550 से ज्यादा नहीं होगी. हालांकि, संविधान ये भी कहता है कि हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद होना चाहिए. किसी राज्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या कितनी होगी? इसका काम परिसीमन आयोग करता है. 1952 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. अनुच्छेद 82 में आयोग का काम भी तय किया गया है. पहले आम चुनाव के समय लोकसभा सीटों की संख्या 489 थी. आखिरी बार 1971 की जनगणना के आधार पर 1976 में परिसीमन हुआ था, जिसके बाद सीटों की संख्या बढ़कर 543 हो गई.

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जो आज साथ हैं कल न होंगे?

अब परिसीमन को राजनीतिक नजरिए से देखें तो देश में जो दल अभी महिला आरक्षण के मुद्दे पर सरकार के साथ दिख रहे हैं वही दल परिसीमन पर सरकार की खिलाफत में दिखेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम खुद ट्वीट कर इसका विरोध किया है. परिसीमन की कोई प्रक्रिया या चर्चा शुरू होने से पहले ही कांग्रेस नेता ने ट्वीट किया, दक्षिणी राज्यों को दंडित करने वाले परिसीमन संबंधी किसी भी दुस्साहस का विरोध किया जाएगा और उसे अस्वीकार कर दिया जाएगा.

दक्षिण भारत का परिसीमन से पुराना विवाद

दरअसल दक्षिण का परिसीमन से विवाद आज का नहीं है. दक्षिण के राज्य और राजनीतिक दल इस बात से ज्यादा चिंतित रहते हैं कि अगर 2026 में लोकसभा चुनावों को लेकर परिसीमन हुआ तो नतीजा उनके पक्ष में नहीं आएगा. जानकारी के मुताबिक लोकसभा सीटों के लिए साल 1976 में आखिरी बार आबादी के आधार पर परिसीमन हुआ था. अब 2026 में यही प्रक्रिया दोबारा शुरू होनी है. ऐसे में आइए यह समझ लेते हैं कि दक्षिण के नेताओं और पार्टियों को परिसीमन से आपत्ति क्यों है. 

परिसीमन हुआ तो दक्षिणी राज्यों को होगा नुकसान

इसे बेहतर समझने के लिए दक्षिण भारत की मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति पर नजर डालते हैं. फिलहाल लोकसभा में दक्षिण भारत से कुल 129 सांसद चुने जाते हैं. वहीं हिंदी भाषी राज्यों की बात करें तो केवल UP, बिहार और झारखंड से ही 134 सांसद लोकसभा के लिए चुने जाते हैं.

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इतने सालों में हिंदी बेल्ट में आबादी बढ़ी है, जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और जागरूकता की वजह से हेल्थ इंडिकेटर्स ही नहीं सुधरे हैं, आबादी भी नियंत्रित हो गई है. अब अगर आबादी के आधार पर परिसीमन होता है तो दक्षिण भारतीय राज्यों में लोकसभा सीटें घट जाएंगी और हिंदी बेल्ट के सांसद और बढ़ जाएंगे. यानी हेल्थ, इंडस्ट्री और रोजगार के आंकड़े सुधारने के बावजूद दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व संसद में कम हो जाएगा.

क्या सच में 2026 में परिसीमन होगा?

हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि 2026 में परिसीमन होगा ही. ऐसा इसलिए क्योंकि परिसीमन से पहले जनगणना होना बहुत जरूरी है. जोकि 2021 में होनी थी और अब तक नहीं हो सकी है. लिहाजा इस देरी की वजह से यह भी नहीं कहा जा सकता कि परिसीमन 2026 में होगा या नहीं. 

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