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बेहद अमीर अरब देश भी फिलिस्तीनियों को नागरिकता देने से क्यों बचते रहे, जॉर्डन ने भी खींच लिए हाथ

इजरायल और फिलिस्तीन आर-पार के इरादे से लड़ते दिख रहे हैं. इस बीच मिस्र में अरब देशों की बैठक हुई. वे इजरायल से गुस्से पर ठंडा पानी डालने की गुजारिश करते हुए जंग रोकने की बात कर रहे हैं. साथ ही तबाह हुए इलाकों में खाना-दवा जैसी चीजें भी भेजी जा रही हैं. वैसे बाहर से फिलिस्तीनियों के हमदर्द दिखते अरब देश उन्हें नागरिकता देने के नाम पर चुप हो जाते हैं.

आजाद फिलिस्तीन का मुद्दा काफी समय से चला आ रहा है. सांकेतिक फोटो (Unsplash) आजाद फिलिस्तीन का मुद्दा काफी समय से चला आ रहा है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 5:34 PM IST

मार्च 1959 में अरब लीग रिजॉल्यूशन 1547 लागू हुआ था. ये कहता है फिलिस्तीनियों को 'उनके अपने देश ' की नागरिकता दिलवाने के लिए अरब देशों को सपोर्ट करना चाहिए. अरब देश ये तर्क देते हैं कि अगर उन्होंने अपने देशों में फिलिस्तीन के लोगों को नागरिक अधिकार देना शुरू कर दिया, तो ये एक तरह से फिलिस्तीन को खत्म करने जैसा होगा. लोग भाग-भागकर बाहर बसने लगेंगे और फिलिस्तीन पर पूरी तरह से इजरायल का कब्जा हो जाएगा. 

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एक समस्या है कागजों की कमी

मदद का दावा करते अरब देशों की अक्सर यही दलील रहती है. गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और येरूशलम में रह रहे फिलिस्तीनी इजरायल के स्थाई नागरिक माने जाते हैं. उनके पास इजरायली कागजात होते हैं. अगर वे उन्हें छोड़कर दूसरी नागरिकता अपने फिलिस्तीनी होने के आधार पर चाहें, तो पेलेस्टीनियन अथॉरिटी उन्हें कुछ डॉक्युमेंट्स देती है. 

ये कागज सिर्फ ट्रैवल के ही काम आ सकते हैं. इनके आधार पर यह साबित नहीं हो सकता कि वे फिलिस्तीनी हैं. यानी इजरायली सिटिजनशिप छोड़ने के बाद वे कहीं के नागरिक नहीं रह जाते. ऐसे में अरब देश किसी हाल में उन्हें नहीं स्वीकारते. 

दूर से सगा बनना चाहता है अरब

फिलिस्तीनियों को नागरिकता न देने के पीछे ग्लोबल पॉलिटिक्स भी काम करती है. इजरायल भले ही छोटा लेकिन ताकतवर देश है. उसके पास मॉर्डन हथियार हैं. साथ ही वो अमेरिका, यूरोप और भारत जैसी ताकतों का अच्छा दोस्त है. फिलहाल तेल पर निर्भर कई अरब देश टूरिज्म पर भी फोकस कर रहे हैं. ऐसे में अगर वे इजरायल के खुलेआम खिलाफ गए तो उन देशों के साथ केमिस्ट्री गड़बड़ा सकती है, जहां से सैलानी आते हैं. 

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अस्थिरता आ सकती है उनके अपने यहां

अरब देश भले ही काफी अमीर हैं, लेकिन उनके अपने दायरे हैं. फिलहाल कई अरब देश फिलिस्तीन से आए लोगों को रिफ्यूजी स्टेटस दे रहे हैं. उनके लिए काम और कॉलोनियों का बंदोबस्त भी है, लेकिन अगर सारे के सारे फिलिस्तीनी भागकर अरब में रहने लगें तो डेमोग्राफी पर असर होगा. भले ही यूनाइटेड नेशन्स इसमें पैसों की मदद करे, लेकिन जुर्म और अस्थिरता बढ़ सकती है. मूल निवासियों में भी गुस्सा भर सकता है. यही वजह है कि अरब ने उनसे दूरी बना रखी है. 

जॉर्डन देता रहा नागरिकता

इजरायल का एक हिस्सा पश्चिम में जॉर्डन से सटा है, जो वेस्ट बैंक कहलाता है. यह भी फिलिस्तीनियों का इलाका है. वेस्ट बैंक से भागकर काफी सारे लोग एक समय पर जॉर्डन पहुंचे और वहां के नागरिक भी बन गए. देखा जाए तो अरब देशों में जॉर्डन अकेला है, जिसने फिलिस्तीन के लोगों को स्थाई नागरिकता दी. हालांकि अस्सी के दशक के आखिर में उसने भी ये बंद कर दिया. 

क्या वजह थी इस उदारता के पीछे

साल 1967 से पहले जॉर्डन वेस्ट बैंक को अपना हिस्सा मानता था. यही वजह है कि इस दौरान और इसपर इजरायल के आने के बाद भी लगभग 2 दशक तक वो लोगों को नागरिकता देता है. ये सिर्फ वही फिलिस्तीनी थे, वेस्ट बैंक में रहते थे. गाजा पट्टी से जॉर्डन का कोई वास्ता नहीं था. जॉर्डन जब मानवीय आधार पर नागरिकता देने की बात करता है, तो यही बात उसके खिलाफ भी जाती है कि वो एक तरफ के फिलिस्तीनियों को अपने यहां बसा रहा है, जबकि दूसरी तरफ से कोई सरोकार नहीं रखता. 

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लगभग एक जैसा कल्चर भी बना कड़ी

इजरायल और अरब देशों में कई बार लड़ाइयां हुईं. हर युद्ध के दौरान फिलिस्तीन से काफी शरणार्थी भागकर जॉर्डन पहुंचते रहे. धीरे-धीरे वे यहीं पर घुल-मिल गए. यहां तक कि जॉर्डन की इकनॉमी और प्रशासन का हिस्सा बन गए.ये एक ही भाषा बोलते और एक जैसे रीति-रिवाज मानते थे. ऐसे में जॉर्डन के लिए इन्हें अपनाना मुश्किल नहीं था. 

बीते सालों में नागरिकताएं छीनी भी गईं

फिलहाल यहां पर करीब सवा 2 मिलियन रजिस्टर्ड लोग हैं, जो फिलिस्तीन से आए. UNRWA के मुताबिक इनमें से अधिकतर को जॉर्डन की नागरिकता भी मिल चुकी. हालांकि समय के साथ कई चीजें बदलीं. जॉर्डन की अपनी इकनॉमी अस्थिर हो रही थी. साथ ही लोकल्स और नए लोगों में फसाद भी होने लगा था. तभी जॉर्डन सरकार ने एक फैसला लिया. वो ऐसे लोगों की नागरिकता लेने लगी, जो मुश्किलें पैदा कर रहे थे.

ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था के अनुसार, साल 2004 से अगले 4 सालों में करीब 3 हजार नागरिकताएं ले ली गईं. वैसे इसकी शुरुआत साल 1988 से ही हो गई थी, जब तत्कालीन शासक हुसैन बिन तलाल ने वेस्ट बैंक से सारे नाते तोड़ने का एलान कर दिया था. इसके तहत, अगर कोई इजरायल में काम कर रहा हो उसकी नागरिकता छीनी जाने लगी. कई और कंडीशन्स भी थीं. 

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काम में होता है भेदभाव

अरब देश फिलिस्तीनियों को काम के लिए तो स्वीकार रहे हैं, लेकिन कई शर्तों के साथ. जैसे लेबनान में बहुत सी ऐसी नौकरियां हैं, जिनके लिए फिलिस्तीनी नागरिकों को कतई नहीं लिया जाता. ये वे जॉब्स हैं, जिनमें पैसे ज्यादा हैं. लेबनान ने अब तक इसपर आधिकारिक बयान नहीं दिया कि वहां ऐसा क्यों है. इसी तरह बाकी अरब देशों में भी फिलिस्तीनियों के साथ किसी न किसी तरह का फर्क किया जाता है.

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