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बिहार उपचुनाव: बिना लालू के तेजस्वी ने बचा ली सीटें, बढ़ा कद

अररिया लोकसभा सीट पर एक बार फिर से आरजेडी का कब्जा हो गया. 2014 में यहां आरजेडी के मोहम्मद तस्लीमुद्दीन जीते थे. उस समय जनता दल यू और बीजेपी ने अलग- अलग चुनाव लडा था.

तेजस्वी यादव तेजस्वी यादव
केशवानंद धर दुबे/मोनिका गुप्ता/सुजीत झा
  • नई दिल्ली,
  • 14 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 6:41 PM IST

बिहार के उपचुनाव में मामला बराबरी पर छूटा ये कहा जा सकता है. क्योंकि इसमें वही पार्टी जीती जो सीटिंग रही है. लेकिन इसके बावजूद मतदाताओं का यह फैसला कुछ सोचने पर मजबूर करता है. 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में मतदाताओं के रुख को परखने के लिए यह पहला मौका राजनीतिक दलों के लिए था. क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद चीजें काफी बदल गई हैं. या यूं कहे कि उल्ट गई हैं.

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27-28 महीनों के इस कार्यकाल में पहले महागठबंधन की सरकार बनी बाद में वो एनडीए की सरकार हो गई. इस बीच बिहार में शराबबंदी हुई. बालू को लेकर जमकर बवाल हुआ. लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले के मामले में जेल गए और उनके परिवार पर भ्रष्ट्राचार का आरोप लगा. लेकिन इसके बावजूद स्थिति जस की तस यह सोचने पर राजनीतिक दलों को मजबूर करती है.

अररिया लोकसभा सीट पर एक बार फिर से आरजेडी का कब्जा हो गया. 2014 में यहां आरजेडी के मोहम्मद तस्लीमुद्दीन जीते थे उस समय जनता दल यू और बीजेपी ने अलग- अलग चुनाव लडा था. दोनों को मिलाकर तस्लीमुद्दीन से ज्यादा वोट आए थे. लेकिन इस बार जनता दल यू और बीजेपी मिलकर भी तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम को नहीं हरा सके. अभी तक सरफराज जनता दल यू के निलंबित विधायक थे.

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यही हाल जहानाबाद का रहा जहां 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के मुद्रिका प्रसाद यादव ने एनडीए को 30 हजार मतों से हराया था. उनके निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर खड़े उनके बेटे सुदय यादव ने जनता दल यू के अविराम शर्मा को 35 हजार मतों से हराया. इस चुनाव में जहानाबाद वो सीट थी जिस पर आरजेडी और जनता दल यू का सीधा मुकाबला था ये वो पार्टियां हैं जो 28 महीने पहले महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ी थी और जीती थी. लेकिन इस बार दोनों आमने- सामने, लेकिन बाजी आरजेडी ने मारी.

भभुआ विधानसभा में जीती बीजेपी

वहीं बात अगर भभुआ विधानसभा सीट की करें तो यहां पहले भी बीजेपी जीती थी और आज भी जीती है. हांलाकि दोनों बार बीजेपी के सामने अलग- अलग गठबंधन रहा. 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का यहां मुकाबला जनता दल यू से था लेकिन भले ही इस बार बदल कर कांग्रेस मुकाबले में खड़ी रही. लेकिन इसका कोई फर्क मतदाताओं पर नहीं दिखा. यहां न तो शराबबंदी का असर दिखा और ना ही बालू का. लालू यादव के जेल जाने का असर भी नहीं दिखा.

बता दें कि दो जगहों अररिया और जहानाबाद में बेटों को सफलता मिली जबकि भभुआ में पत्नी ने परचम लहराया. यानि सहानूभूति का असर भी जरूर इस चुनाव पर पड़ा. इसलिए यह चुनाव परिणाम किसी भी पार्टी को खुश होने का ज्यादा मौका नहीं देती है. नए नवेले और युवा नेता तेजस्वी यादव अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि बिना आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के वो अपनी दोनों सीट बचाने में कामयाब रहें.

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जनता दल यूनाइटेड को लगा झटका

बीजेपी यह कह सकती है कि गठबंधन बदलने से उन्हें न कोई फायदा हुआ ना ही नुकसान. लेकिन सबसे ज्यादा इसमें जनता दल यूनाइटेड को धक्का लगा है. जनता दल यूनाइटेड उपचुनाव में हिस्सा नहीं लेना चाहती थी. लेकिन बीजेपी के कहने पर वो जहानाबाद से चुनाव लड़ी. राज्य के इस एक मात्र सीट पर उसकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. पूरी ताकत भी झोंकी लेकिन नतीजा सिफर रहा. हांलाकि उसका बहुत ज्यादा कारण उम्मीदवार का चयन भी रहा. अविराम शर्मा 2010 में यहां से विधायक थे लेकिन उस दौरान उनके व्यवहार से जनता दुखी दिखी. जनता दल यू के वोटरों में उत्साह नहीं दिखा और बीजेपी के कार्यकर्ता भी खुलकर सामने नहीं आए.

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